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राजनीति

क्या है PMLA जिसके तहत हुई अरविंद केजरीवाल की गिरफ्तारी,जानें क्या कहता है एक्ट

नई दिल्लीः प्रवर्तन निदेशालय ने अरविंद केजरीवाल को प्रिवेंशन ऑफ मनी लॉन्ड्रिंग एक्ट 2002 के तहत गिरफ्तार किया है जिसमें जमानत मिलना बमुश्किल होता है। यह कानून 2002 में बनाया गया था और 1 जुलाई 2005 को लागू किया गया था। आम आदमी पार्टी सरकार के तीन मंत्री पहले ही इस कानून के तहत सजा काट रहे है। इसमें पूर्व मंत्री मनीष सिसोदिया सत्येंद्र जैन और संजय सिंह का नाम शामिल है।बता दें कि दिल्ली के सीएम को शराब घोटाले से संबंधित मनी लॉन्ड्रिंग मामले में ईडी ने धन शोधन निवारण अधिनियम, 2002 (PMLA) के तहत गिरफ्तार किया। केजरीवाल को जिस कानून के तहत गिरफ्तार किया गया है, उनके सामने कई मुश्किलें आ सकती हैं। आपको विस्तार से बताते हैं।

क्या है मनी लॉन्ड्रिंग?

आसान भाषा में समझें तो गैर-कानूनी तरीकों से कमाए गए पैसों को छिपाने को मनी लॉन्ड्रिंग कहते है। यह एक अवैध प्रक्रिया है जो काले धन को सफेद धन में बदलती है। इसी धन की हेरा-फेरी करने वाले को लाउन्डर कहा जाता है।

जमानत मिलना होता है मुश्किल

पीएमएलए में जमानत मिलना मुश्किल होता है। यह कानून 2002 में बनाया गया था और 1 जुलाई 2005 को लागू किया गया था। इस कानून का मुख्य उद्देश्य मनी लॉन्ड्रिंग को रोकना है। इसके दायरे में बैंक, म्यूचुअल फंड और बीमा कंपनियां को भी 2012 में शामिल किया गया। इस एक्ट के अंतर्गत अपराधों की जांच की जिम्मेदारी प्रवर्तन निदेशालय के पास होती है।

AAP के तीन नेता पहले ही इस कानून के तहत काट रहे सजा

आम आदमी पार्टी सरकार के तीन मंत्री पहले ही इस कानून के तहत सजा काट रहे है। इसमें पूर्व मंत्री मनीष सिसोदिया और सत्येंद्र जैन का नाम शामिल है। यह दोनों पीएमएलए के तहत जेल में हैं। वहीं, आप नेता संजय सिंह भी पीएमएलए में गिरफ्तार हुआ और जेल में बंद हैं।

क्या कहता है यह कानून?

पीएमएलए की धारा 45 का जिक्र दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने पहले भी किया था। इस धारा के तहत जमानत मिलना बहुत मुश्किल होता है। आरोपी व्यक्ति के लिए अपनी रिहाई कराना चुनौतीपूर्ण हो जाता है। पीएमएलए के तहत सभी अपराध संज्ञेय और गैर-जमानती हैं, जिनमें अग्रिम जमानत का कोई प्रावधान नहीं है।आसान भाषा में समझें तो PMLA के तहत गिरफ्तार व्यक्ति को अपनी बेगुनाही साबित करनी होगी कि उनके खिलाफ लगे सभी आरोप निराधार हैं। हालांकि, यब साबित करना बेहद मुश्किल हो सकता है।

धारा 45 के तहत जमानत के लिए दो सख्त शर्तें

वर्तमान सरकार ने 2018 में पीएमएलए में संशोधन किया था, जिसके मद्देनजर धारा 45 के तहत जमानत के लिए दो सख्त शर्तें है। पहला यह कि कोर्ट को यह मानना होगा कि आरोपी दोषी नहीं है और दूसरा यह कि जमानत के दौरान आरोपी का अपराध करने की कोई भी मंशा नहीं होगी। सुप्रीम कोर्ट ने 2018 में ईडी की शक्तियों और पीएमएलए अधिनियम में संशोधन को बरकरार रखते हुए कहा कि मनी लॉन्ड्रिंग एक जघन्य अपराध है, जो देश के सामाजिक और आर्थिक मामले को प्रभावित करता है।

मुश्किल से मिलती है जमानत

दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को पीएमएलए के तहत गिरफ्तार किया गया है. पीएमएलए यानी प्रिवेंशन ऑफ़ मनी लांड्रिंग एक्ट (2002). जिसे साल 2002 में पारित किया गया था. जो साल 2005 में लागू किया गया था. इस एक्ट धारा 45 में तहत सारे अपराध संज्ञेय और गैर जमाती होंगे. संज्ञेय अपराध वह अपराध होते हैं. आरोपी की गिरफ्तारी के लिए वारंटी की जरूरत नहीं होती.ईडी को पीएमएलए के तहत यह अधिकार मिले हुए होते हैं कि वह बिना किसी वारंटी के आरोपी के परिसर की तलाशी ले सकती है और उसे गिरफ्तार कर सकती है. इसमें संपत्ति की नीलामी और कुर्की का भी प्रावधान शामिल है. पीएमएलए के तहत फिलहाल आम आदमी पार्टी के तीन बड़े नेता मनीष सिसोदिया सत्येंद्र जैन और संजय सिंह भी जेल में बंद है.

कोर्ट इस शर्त पर देता है जमानत

प्रिवेंशन ऑफ़ मनी लांड्रिंग एक्ट के तहत जमानत मिलना बहुत मुश्किल काम इसलिए भी है. क्योंकि जमानत के लिए एक्ट में कोई साफ-साफ आधार नहीं रखा गया है. एक्ट की धारा 45 में जमानत के लिए दो शर्तें रखी गई है. अदालत ऐसे मामलों में सिर्फ तब जमाना दे सकती है जब वह पूरी तरह से संतुष्ट हो कि अपराधी संबंधित अपराध का दोषी नहीं है. और उसके जमानत पर रहते हुए कोई अपराध करने की संभावना नहीं है.

क्या जेल से दिल्ली की सरकार चलाएंगे अरविंद केजरीवाल?

जेल में रहकर सरकार चलाना वैसे देखा जाए तो प्रैक्टिली मुश्किल है, लेकिन ऐसा कोई कानून भी नहीं है जो मुख्यमंत्री को ऐसा करने से रोके. कानून के अनुसार, किसी मुख्यमंत्री को तभी पद से हटाया जा सकता है अगर उस पर दोष सिद्ध हो जाता है. यानी किसी मामले में अगर मुख्यमंत्री पर लगे आरोप सही साबित हो जाते हैं तो वह अयोग्य हो जाता है और फिर उसको पद छोड़ना पड़ेगा. रिप्रेजेंटेशन ऑफ द पीपल एक्ट, 1951 में कुछ अपराधों के लिए अयोग्यता के प्रावधान हैं, लेकिन वो तभी हैं जब पद संभाल रहे व्यक्ति को सजा हुई हो. अगर कोर्ट ने दोषी करार देकर सजा सुना दी है तो इस एक्ट के तहत वह डिस्क्वालिफाई हो जाता है.

क्या मुख्यमंत्री के लिए गिरफ्तारी से प्रोटेक्शन के लिए कानून है?

मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को दिल्ली हाईकोर्ट ने गिरफ्तारी से प्रोटेक्शन देने से इनकार कर दिया था. कोर्ट ने कहा था कि उन्हें ईडी के सामने पेश होना होगा और गिरफ्तारी से प्रोटेक्शन नहीं है. हाईकोर्ट के इस फैसले के खिलाफ उन्होंने कल सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की थी. ईडी ने 9 बार समन भेजकर केजरीवाल को पेश होने के लिए बुलाया था, लेकिन वह पहुंच नहीं रहे थे. उन्होंने हाईकोर्ट से प्रोटेक्शन मांगी थी कि अगर वह ईडी के सामने पेश हों तो उनको गिरफ्तार न किया जाए, लेकिन कोर्ट ने उनकी याचिका खारिज कर दी और कहा कि उन्हें ईडी के सामने पेश होना पड़ेगा.

सिर्फ राष्ट्रपति और राज्यपाल को गिरफ्तारी से प्रोटेक्शन

संविधान के आर्टिकल 361 में सिर्फ राष्ट्रपति और राज्यों के गवर्नर को गिरफ्तारी से प्रोटेक्शन है, जब तक वह पद पर रहेंगे उन पर कोई कार्रवाई नहीं हो सकती है. कानून में कहा गया है कि राष्ट्रपति और राज्यपाल अपने आधिकारिक कर्तव्यों के निर्वहन में किए गए किसी भी कार्य के लिए किसी भी अदालत के प्रति जवाबदेह नहीं हैं.

क्या यह पहला मामला, जब सीएम रहते हुई केजरीवाल की गिरफ्तारी?

अरविंद केजरीवाल से पहले कई मामले ऐसे हैं, जब मुख्यमंत्रियों पर शिकंजा कस चुका है. हालांकि, यह पहला ऐसा केस है जब मुख्यमंत्री रहते हुए अरविंद केजरीवाल की गिरफ्तारी हुई. झारखंड के पूर्व सीएम हेमंत सोरेन, कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री बीएस येदियुरप्पा, तमिलनाडु की पूर्व सीएम जे. जयललिता, बिहार के पूर्व सीएम लालू यादव और मध्य प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती, इन सभी ने गिरफ्तारी से पहले ही अपने पद से इस्तीफा दे दिया था.


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