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Navratri 2023 6th Day: छठे दिन होती है महिषासुर मर्दिनी मां कात्यायनी की पूजा

नई दिल्लीः नवरात्रि का हर दिन किसी न किसी देवी को समर्पित किया है और इनका अपना अलग ही महत्व है। इसी तरह से नवरात्र का छठा दिन भी है। शारदीय नवरात्रि के पावन दिन चल रहे हैं. नवरात्रि के छठे दिन (Navratri 6th Day) माता के अलौकिक स्वरूप मां कात्यायनी की पूजा की जाती है. आदि शक्ति मां दुर्गा के नौ रूपों में छठा रूप कात्यायनी देवी का है.इस दिन मां कात्यायनी की विधिवत पूजा अर्चना की जाती है मां को महिषासुर मर्दिनी के नाम से भी जाना जाता है. मां के इस स्वरूप की पूजा करने से विवाह में आ रही परेशानी दूर हो जाती हैं. आइए जानते हैं नवरात्रि के छठे दिन मां कात्यायनी की पूजा विधि, मंत्र, और भोग के बारे में..

मां कात्यायनी किसका प्रतीक हैं’

नवरात्रि के छठे दिन देवी दुर्गा के कात्यायनी स्वरूप की पूजा अर्चना की जाती है। इन्हें सफलता और यश का प्रतीक माना जाता है। यह ब्रज मंडल की अधिष्ठात्री देवी के नाम से भी जानी जाती हैं।नवरात्र के छठे दिन मां दुर्गा के अलौकिक स्वरूप मां कात्यायनी की पूजा की जाती है। उन्हें महिषासुर मर्दिनी के नाम से भी जाना जाता है।

मां कात्यायनी किसकी पुत्री हैं’

मां कात्यायनी का जन्म महार्षि कात्यायन के आश्राम में हुआ था। दरअसल, महार्षि कात्यायन ने देवी आदिशक्ति की घोर तपस्या की थी। जिसके परिणामस्वरूप उन्हें देवी उनकी पुत्री के रूप में प्राप्त हुई थीं और इनकी पुत्री होने के कारण ही इन्हें कात्यायनी पुकारा जाता है।ऋषि कात्यायन की पुत्री होने के कारण इनका नाम कात्यायनी रखा गया।

दिव्य है मां कात्यायनी का स्वरूप

मां कात्यायनी का स्वरूप बहुत ही भव्य और दिव्य है। मां कात्यायनी माता शेर पर सवार हैं. उनके सिर पर मुकुट सुशोभित है. मां की 4 भुजाएं हैं.इनका वर्ण स्वर्ण के समान चमकीला और भास्वर है। शेर पर सवार मां की चार भुजाएं हैं, इनके बाएं हाथ में कमल, तलवार और दाहिनें हाथों में स्वास्तिक और आशीर्वाद की मुद्रा अंकित है।

मां कात्यायनी की पूजा का महत्व क्या है’

मां कात्यायनी की पूजा बहुत ही महत्वपूर्ण मानी जाती है। कहा जाता है अगर यह किसी पर प्रसन्न हो जाएं तो उसे अर्थ, धर्म, काम और मोक्ष की प्राप्ति होती है। मान्यता के मुताबिक इनकी आराधना से गृहस्थ जीवन सुखमय रहता है और जातक के रोग, शोक, संताप और भय आदि सर्वथा नष्ट हो जाते हैं। शत्रुओं पर विजय प्राप्ति के लिए भी मां कात्यायनी की पूजा की जाती है यह स्वयं नकारात्मक शक्तियों का अंत करने वाली देवी हैं।
मां कात्यायनी के जन्म के पीछे क्या रहस्य है’

हर साल नवरात्रि के छठे दिन बड़े ही भक्ति भाव से मां कात्यायनी की पूजा अर्चना की जाती है, लेकिन बहुत ही कम लोग जानते हैं, कि इनके जन्म के पीछे उद्देश्य क्या था। पौराणिक कथा के मुताबिक मां कात्यायनी का जन्म महिषासुर नाम के असुर का वध करने के लिए हुआ था।

पूजा विधि

नवरात्रि के छठे दिन माता के कात्यायनी स्वरूप की पूजा के लिए सुबह नहाने के बाद साफ कपड़े पहनें और मां का ध्यान करें. इसके बाद पूजा का संकल्प ले. मां कात्यायनी को पीला रंग अत्यंत प्रिय है इसलिए पूजा के लिए पीले रंग के कपड़े पहनना शुभ होता है. मां को अक्षत, रोली, कुमकुम, पीले पुष्प और भोग चढ़ाएं. माता की आरती और मंत्रों का जाप करें.

मां कात्यायनी का पसंदीदा रंग

धार्मिक ग्रंथों के अनुसार देवी कात्यायनी को मां को लाल और पीला रंग प्रिय है. इसलिए मां का ऋंगार भी लाल रंग का करना चाहिए.

मां कात्यायनी का भोग

धर्म शास्त्रों में वर्णित है कि मां कात्यायनी को शहद और पीले रंग का भोग बहुत प्रिय है. इसलिए नवरात्रि के छठे दिन मां को शहद से तैयार हलवे का भोग लगाना चाहिए.

मंत्र जाप


मां कात्यायनी की पूजा के समय इस मंत्र का जाप करें.
या देवी सर्वभूतेषु मां कात्यायनी रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।

मां कात्यायनी व्रत कथा

पौराणिक कथा के अनुसार एक बार महर्षि कात्यायन ने संतान प्राप्ति के लिए मां भगवती की कठोर तपस्या की। महर्षि कात्यायन की कठोर तपस्या से मां भगवती प्रसन्न हुई और उन्हें साक्षात दर्शन दिए। कात्यायन ऋषि ने मां के सामने अपनी इच्छा प्रकट की, इसपर मां भगवती ने उन्हें वचन दिया कि वह उनके घर उनकी पुत्री के रूप में जन्म लेंगी। एक बार महिषासुर नाम के एक दैत्य का अत्याचार प्रितिदित तीनों लोकों पर बढ़ता ही जा रहा था। इससे सभी देवी-देवता परेशान हो गए।

तब त्रिदेव – ब्रह्मा, विष्णु और महेश अर्थात भगवान शिव के तेज से देवी को उत्पन्न किया जिन्होने महर्षि कात्यायन के घर जन्म लिया। महर्षि कात्यायन के घर जन्म लेने के कारण उन्हें कात्यायनी नाम दिया गया। माता रानी के घर में पुत्री के रूप में जन्म लेने के बाद ऋषि कात्यायन ने सप्तमी, अष्टमी और नवमी तिथि पर मां कात्यायनी की विधि-विधान पूर्वक पूजा-अर्चना की। इसके बाद मां कात्यायनी ने दशमी के दिन महिषासुर का वध किया और तीनों लोकों को उसके अत्याचारों से मुक्ति दिलाई।

धार्मिक मान्यताएं हैं कि मां कात्यायनी की पूजा करने से साधक को सभी प्रकार के सुख मिलते हैं. इसके साथ ही जीवन में व्याप्त दुख और संकट दूर हो जाते हैं. धन संबंधी परेशानी भी दूर हो जाती है. बता दें कि यजुर्वेद में प्रथम बार ‘कात्यायनी’ नाम का उल्लेख मिलता है. माना जाता है कि देवताओं का कार्य सिद्ध करने के लिए आदि शक्ति देवी के रूप में महर्षि कात्यायन के आश्रम में प्रकट हुई थीं.

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