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Navratri 2023 7th Day: नवरात्रि के सातवें दिन मां कालरात्रि की पूजा

नई दिल्ली – आज शारदीय नवरात्रि का सातवां दिन है, जिसे महासप्तमी के नाम से जानते हैं।इस साल महासप्तमी त्रिपुष्कर योग में है।इस योग में किए गए कार्यों के तीन गुने फल प्राप्त होते हैं।महासप्तमी को मां दुर्गा के सातवें स्वरूप मां कालरात्रि की पूजा करते हैं।

नवरात्रि के सातवें दिन दुर्गा माता के सातवें स्वरूप मां कालरात्रि

नवरात्रि के सातवें दिन दुर्गा माता के सातवें स्वरूप मां कालरात्रि की पूजा की जाती है। माता कालरात्रि का स्वरूप देखने में अत्यंत भयानक है, लेकिन भक्तों को सदैव शुभ फल प्रदान करने वाला है। इन्हें शुभंकरी भी कहा जाता है। मां कालरात्रि का वाहन गर्दभ यानी गधा है, जो सभी जीव-जंतुओं में सबसे ज्यादा मेहनती माना जाता है। मां कालरात्रि अपने इस वाहन पर पृथ्वीलोक का विचरण करती हैं। मां कालरात्रि की पूजा करने से अकाल मृत्यु का भय खत्म हो जाता है। इनकी पूजा मात्र करने से समस्त दुखों एवं पापों का नाश हो जाता है। साथ ही इनकी आरती करने और मंत्र जपने से जीवन में खुशियां आती हैं।

मां कालरात्रि का भोग

महासप्तमी के दिन मां कालरात्रि को गुड़ और गुड़ से बनी चीजें जैसे मालपुआ का भोग लगाया जाता है। इन चीजों का भोग लगाने से माता प्रसन्न होती हैं और सभी मनोकामनाएं पूरी करती हैं। पूजा के समय माता को 108 गुलदाउदी फूलों से बनी माला अर्पित करें।

माता कालरात्रि का प्राकट्य

असुर शुंभ निशुंभ और रक्तबीज ने सभी लोगों में हाहाकार मचाकर रखा था, इससे परेशान होकर सभी देवता भोलेनाथ के पास पहुंचे और उनसे रक्षा की प्रार्थना करने लगे। तब भोलेनाथ ने माता पार्वती को अपने भक्तों की रक्षा करने को कहा। भोलेनाथ की बात मानकर माता पार्वती ने मां दुर्गा का स्वरूप धारण कर शुभ व निशुंभ दैत्यों का वध कर दिया। जब मां दुर्गा ने रक्तबीज का भी अंत कर दिया तो उसके रक्त से लाखों रक्तबीज उत्पन्न हो गए। यह देखकर मां दुर्गा का अत्यंत क्रोध आ गया। क्रोध की वजह से मां का वर्ण श्यामल हो गया। इसी श्यामल रूप को से देवी कालरात्रि का प्राकट्य हुआ। इसके बाद मां कालरात्रि ने रक्तबीज समेत सभी दैत्यों का वध कर दिया और उनके शरीर से निकलने वाले रक्त को जमीन पर गिरने से पहले अपने मुख में भर लिया। इस तरह सभी असुरों का अंत हुआ। इस वजह से माता को शुभंकरी भी कहा गया।

मां कालरात्रि की पूजा विधि

आज सुबह में स्नान और सूर्य को अर्घ्य देने के बाद मां कालरात्रि की पूजा करें।उनको लाल फूल या रातरानी का फूल, अक्षत्, सिंदूर, फल, नैवेद्य, धूप, दीप, गंध आदि चढ़ाएं।मां कालरात्रि का मंत्रोच्चार करें।उनको खुश करने के लिए गुड़ का नैवेद्य ​अर्पित करें।पूजा के अंत में मां कालरात्रि की आरती करें।फिर अपनी मनोकामना माता के सामने व्यक्त कर दें।

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