x
लाइफस्टाइल

आजादी से पहले ही सुभाष चंद्र बोस ने बना दी थी भारत की अस्थाई सरकार, कई देशों ने मान्यता भी दी, जानें पूरी कहानी


सरकारी योजना के लिए जुड़े Join Now
खबरें Telegram पर पाने के लिए जुड़े Join Now

नई दिल्लीः भारत की आजादी में अनेक लोगों ने अपनी-अपनी भूमिकाएं निभाईं लेकिन जो भूमिका सुभाष चंद्र बोस की थी उसे शायद ही कोई टक्कर दे पाया। आज भारत नेताजी सुभाष चंद्र बोस की 127वीं जयंती पर उन्हें नमन कर रहा है। बता दें कि साल 2021 में केंद्र सरकार ने बोस की जयंती को पराक्रम दिवस के रूप में मनाने का ऐलान किया था। क्या आप जानते हैं कि 1947 में भारत की आजादी से पहले ही सुभाष चंद्र बोस ने भारत की सरकार का गठन कर दिया था? आइए जानते हैं ये पूरा किस्सा।

23 जनवरी 1897 को ओडिशा के कटक में जन्म

‘जय हिन्द’ का नारा देने वाले नेताजी सुभाष चंद्र बोस का जन्म 23 जनवरी 1897 को ओडिशा के कटक में हुआ. बोस के पिता का नाम ‘जानकीनाथ बोस’  और माँ का नाम ‘प्रभावती’ था. जानकीनाथ बोस कटक शहर के मशहूर वक़ील थे. सुभाष चंद्र बोस 14 भाई-बहनें थे, जिसमें 6 बहनें और 8 भाई थे. सुभाष चंद्र अपने माता-पिता की नौवीं संतान और पाँचवें बेटे थे. संपन्न बंगाली परिवार में जन्मे नेताजी ने अपनी प्रारंभिक पढ़ाई कटक के रेवेंशॉव कॉलेजिएट स्कूल में की. इसके बाद उनकी शिक्षा कलकत्ता के प्रेज़िडेंसी कॉलेज और स्कॉटिश चर्च कॉलेज से हुई. देशभक्ति की भावना का उदाहरण तो उनके शुरुआती जीवन में ही देखने को मिल गया था. बचपन में उन्होने अपने शिक्षक के भारत विरोधी बयान पर घोर आपत्ति जताई थी और तभी सबको अंदाजा लग गया था कि वो गुलामी के आगे सिर झुकाने वालों में से नहीं है.

आजाद हिंद सरकार का किस्सा

भारत को अंग्रेजों से आजादी साल 1947 में मिली थी। हालांकि, इससे 4 साल पहले ही सुभाष चंद्र बोस ने भारत की पहली सरकार का गठन कर दिया था। बोस ने 21 अक्टूबर 1943 को आजादी से पहले ही सिंगापुर में आजाद हिंद सरकार की स्थापना की थी। इस कदम से उन्होंने अंग्रेजों को सख्त संदेश दिया था कि अब भारत में अंग्रेजी शासन ज्यादा दिन नहीं रहने वाला।

कब हुआ आजाद हिंद फौज का गठन?

आजाद हिंद फौज का गठन पहली बार राजा महेंद्र प्रताप सिंह, रास बिहारी बोस एवं निरंजन सिंह गिल ने 29 अक्तूबर 1915 को किया, जिसे उस वक्त आजाद हिंद सरकार की सेना कहा गया. इसे आजाद हिंद फौज का नाम तब मिला जब नेताजी सुभाष चंद्र बोस को इस सेना का सर्वोच्च कमांडर नियुक्त किया गया. उन्हें यह जिम्मेदारी दी थी रास बिहारी बोस ने, जो खुद आजादी के बड़े दीवाने थे. उन्हें नेताजी में एक ऐसी आग दिखती थी, जो अंग्रेजों को जलाकर राख करने में सक्षम थी. शुरू में इसे अंग्रेजों ने बहुत गंभीरता से नहीं लिया लेकिन नेताजी के कमान संभालने के बाद अंग्रेज सक्रिय हुए. गिरफ्तारियां शुरू हो गई और फौज के सिपाहियों को प्रताड़ित किया जाने लगा.

कई बड़े देशों से मिली थी मान्यता

4 जुलाई 1943 को सिंगापुर के कैथे भवन में हुए समारोह में रासबिहारी बोस सुभाष को आजाद हिंद फौज की कमान सौंपी थी। इसके बाद 21 अक्टूबर 1943 को आजाद हिंद सरकार की स्थापना हो गई थी। इस सरकार को जापान फिलिपिंस, जर्मनी जैसे करीब 9 देशों से मान्यता भी मिली थी। जानकारी के मुताबिक, सुभाष चंद्र बोस इस सरकार में प्रधानमंत्री, विदेश मंत्री और रक्षा मंत्री थे। उन्होंने वित्त विभाग एस.सी चटर्जी को, प्रचार विभाग एस.ए. अय्यर को और महिला संगठन कैप्टन लक्ष्मी स्वामीनाथन को सौंपा था। इस अस्थायी सरकार ने कई देशों में दूतावास भी खोले थे।

अंग्रेजों ने एक साथ उताता था मौत के घाट

भारत की आजादी से समय जलियांवाला बाग नरसंहार सबसे चर्चित घटना है. उस घटना में कितने लोगों को अंग्रेजी हुकूमत ने मार डाला था, यह आज तक स्पष्ट नहीं है. माना जाता है कि सैकड़ा लोग मारे गए थे, बड़ी संख्या में लोग घायल भी हुए थे. आजाद हिंदी फौज से जुड़े 2300 लोगों को एक साथ पश्चिम बंगाल के नीलगंज इलाके में ब्रिटिश आर्मी ने मशीन गन लगाकर भून दिया था. यह दुस्साहसिक घटना 25 सितंबर 1945 को हुई थी और इसकी चर्चा बहुत कम होती है. आज उसी धरती से भारत सरकार का सेंट्रल इंस्टीट्यूट फॉर जूट एंड एलायड रिसर्च संचालित हो रहा है.

अपना बैंक, डाक टिकट

सुभाष चंद्र बोस ने आजाद हिंद फौज और अस्थायी सरकार के लिए बैंक था, मुद्रा थी और डाक टिकट भी बनवाया था। पीएम मोदी ने भी कुछ दिनों पहले बोस द्वारा राष्ट्रीय आजाद बैंक, आजाद हिन्द रेडियो और रानी झांसी रेजीमेंट के निर्माण को महत्वपूर्ण बताया था। बता दें कि बोस ने आजाद हिंद फौज में उस दौर में महिला यूनिट बनाई जब महिलाओं का घर से निकलना भी मुश्किल था। महिला यूनिट की सिपाहियों को मेडिकल और जासूसी में महारत हासिल थी।

आजाद हिंद फौज में थी महिला यूनिट

नेताजी ने आजाद हिन्द फौज में उस जमाने में महिला यूनिट खड़ी कर दी थी जब लोग महिलाओं को घर से निकलने तक नहीं देते थे. उन्होंने महिलाओं को इस तरह की ट्रेनिंग दी कि उन्हें मेडिकल और जासूसी में महारत हासिल थीं. नीरा आर्या और सरस्वती राजामणि जैसे जासूसों का नाम गर्व से लिया जाता है. ये लोग विभिन्न रूप में अंग्रेजों की यूनिट में पहुंचते और सूचनाएं एकत्र कर नेता जी तक पहुंचाते थे.

खुले में चलता था मुकदमा

आजाद हिंद फौज के सिपाहियों से अंग्रेज इतने गुस्से में थे कि उन पर खुले में मुकदमा चलाने का फैसला कर लिया. दिल्ली के लाल किले में इन्हें बंदी बनाकर रखा गया. यहीं इन पर मुकदमा चलाने का फैसला हुआ था. जानकारी मिलते ही महात्मा गांधी फौज के सिपाहियों से मिलने पहुंचे तो उन्हें हिन्दू-मुस्लिम चाय की जानकारी मिली. उस समय फौज में सभी जाति-धर्म के लोग थे. अंग्रेज जब हिन्दू-मुस्लिम कहकर अलग-अलग चाय परोसते तो आजाद हिंद फौज के दीवाने उसे एक में मिलाकर बांटकर पी लेते.

आजाद हिंद फौज के पास थी अपनी बैंक

नेताजी सुभाष चंद्र बोस के पास अपना बैंक था, मुद्रा थी और डाक टिकट था. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कुछ साल पहले लाल किले की प्राचीर से उनके कुछ अच्छे कार्यों को याद करते हुए आजाद हिंद सरकार का गठन, राष्ट्रीय आजाद बैंक, आजाद हिन्द रेडियो और रानी झांसी रेजीमेंट के निर्माण को महत्वपूर्ण बताया. उन्होंने यह भी कहा नेताजी ने सबसे महत्वपूर्ण बात देशवासियों को आजादी का मतलब बताया. देश उनके योगदान को कभी भुला नहीं सकता है.गांधी पहले से ही जानते थे कि अंग्रेज हिन्दू-मुसलमानों को लड़ाकर राज करना चाहते थे. जब उन्हें यह घटना पता चली तो उन्हें अपने विचारों को पुख्ता करने का कारण मिला और अनेक असहमतियों के बीच उन्होंने नेताजी सुभाष चंद्र बोस को सच्चे अर्थों में सेनानी कहा. क्योंकि यह नेताजी की ट्रेनिंग का ही असर था कि अंग्रेजों की दी हुई हिन्दू-मुस्लिम चाय इंसानी चाय बन जाती थी.

कितनी थी आजाद हिंद फौज की ताकत?

आजाद हिंद फौज का गठन पहली बार राजा महेंद्र प्रताप सिंह, रास बिहारी बोस एवं निरंजन सिंह गिल ने 29 अक्तूबर 1915 को किया था। इसके आगे चलकर सुभाष चंद्र बोस को सौंप दिया गया। विभिन्न रिपोर्ट्स के मुताबिक, तब उनके पास 85 हजार सशस्त्र सैनिक थे। 30 दिसंबर 1943 को अंग्रेजो को हराकर अंडमान-निकोबार में पहली बार तिरंगा फहराया था। ये काम भी सुभाष चंद्र बोस ने ही किया था।

आजादी से पहले हिन्दुस्तान की पहली सरकार

उस वक्त भारत पर अंग्रेजों का राज था, लेकिन नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने 21 अक्बूर 1943 को वो कारनामा कर दिखाया, जिसे अब तक किसी ने करने के बारे में सोचा तक नहीं था. उन्होंने आजादी से पहले ही सिंगापुर में आजाद हिंद सरकार की स्थापना की. नेताजी ने इस सरकार के जरिए अंग्रेजों को साफ कर दिया कि अब भारत में उनकी सरकार का कोई अस्तित्व नहीं है और भारतवासी अपनी सरकार चलाने में पूरी तरह से सक्षम हैं. आजाद हिंद सरकार के बनने से आजादी की लड़ाई में एक नए जोश का संचार हुआ. करीब 8 दशक पहले 21 अक्टूबर 1943 को देश से बाहर अविभाजित भारत की पहली सरकार बनी थी. उस सरकार का नाम था आजाद हिंद सरकार. अंग्रेजी हुकूमत को नकारते हुए ये अखंड भारत की सरकार थी. 4 जुलाई 1943 को सिंगापुर के कैथे भवन में हुए समारोह में रासबिहारी बोस ने आज़ाद हिंद फ़ौज की कमान सुभाष चंद्र बोस के हाथों में सौंप दी. इसके बाद 21 अक्टूबर 1943 को आजाद हिंद सरकार की स्थापना हुई. आज़ाद हिंद फौज के सर्वोच्च सेनापति की हैसियत से सुभाष चन्द्र बोस ने स्वतंत्र भारत की अस्थायी सरकार बनाई.

आज़ाद हिन्द को 9 देशों ने दी थी मान्यता

जापान ने 23 अक्टूबर 1943 को आज़ाद हिंद सरकार को मान्यता दी. जापान ने अंडमान और निकोबार द्वीप आजाद हिंद सरकार को दे दिए. सुभाष चंद्र बोस उन द्वीपों में गए और उनका नया नामकरण किया. अंडमान का नया नाम शहीद द्वीप और निकोबार का स्वराज द्वीप रखा गया. 30 दिसंबर 1943 को ही अंडमान निकोबार में पहली बार सुभाष चंद्र बोस ने तिरंगा फहराया था. ये तिरंगा आज़ाद हिंद सरकार का था. सुभाष चंद्र बोस भारत की पहली आज़ाद सरकार के प्रधानमंत्री, विदेश मंत्री और रक्षा मंत्री थे. वित्त विभाग एस.सी चटर्जी को, प्रचार विभाग एस.ए. अय्यर को और महिला संगठन कैप्टन लक्ष्मी स्वामीनाथन को सौंपा गया. आज़ाद हिंद सरकार को 9 देशों की सरकारों ने अपनी मान्यता दी थी, जिसमें जर्मनी, जापान फिलीपींस जैसे देश शामिल थे. आजाद हिंद सरकार ने कई देशों में अपने दूतावास भी खोले थे.

आज़ाद हिंद सरकार में हर क्षेत्र के लिए योजना

नेताजी सुभाष चंद्र बोस के नेतृत्‍व में आज़ाद हिंद सरकार ने हर क्षेत्र से जुड़ी योजनाएं बनाई थीं. इस सरकार का अपना बैंक था, अपनी मुद्रा थी, अपना डाक टिकट था, अपना गुप्तचर तंत्र था. नेताजी ने देश के बाहर रहकर, सीमित संसाधनों के साथ, शक्तिशाली साम्राज्‍य के खिलाफ व्‍यापक तंत्र विकसित किया. नेताजी सुभाष चन्द्र बोस ने बैंक और स्वाधीन भारत के लिए अपनी मुद्रा के निर्माण के आदेश दिए. आजाद हिंद सरकार की अपनी बैंक थी, जिसका नाम आजाद हिंद बैंक था. आजाद हिंद बैंक ने दस रुपये के सिक्के से लेकर एक लाख रुपये का नोट जारी किया था. एक लाख रुपये के नोट पर सुभाष चंद्र बोस की तस्वीर छपी थी. सुभाष चंद्र बोस ने जापान और जर्मनी की मदद से आजाद हिंद सरकार के लिए नोट छपवाने का इंतजाम किया था. जर्मनी ने आजाद हिन्द सरकार के लिए कई डाक टिकट जारी किए थे, जिन्हें आजाद डाक टिकट कहा जाता था. ये टिकट आज भारतीय डाक के स्वतंत्रता संग्राम डाक टिकटों में शामिल हैं. आजाद हिंद सरकार सशक्त क्रांति का अभूतपूर्व उदाहरण था. नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने अंग्रेजी हुकूमत यानी एक ऐसी सरकार के खिलाफ लोगों को एकजुट किया, जिसका सूरज कभी अस्‍त नहीं होता था, दुनिया के एक बड़े हिस्‍से में जिसका शासन था.

नेताजी थे आज़ाद हिंद सरकार के प्रधानमंत्री

आज़ाद हिंद सरकार ने राष्ट्रीय ध्वज के रूप में तिरंगा को चुना था, रवींद्र नाथ टैगोर रचित ‘जन-गण-मन’ को राष्ट्रगान बनाया था. एक दूसरे से अभिवादन के लिए जय हिंद का प्रयोग करने की परंपरा शुरू की गई थी. 21 मार्च 1944 को ‘दिल्ली चलो’ के नारे के साथ आज़ाद हिंद सरकार का हिंदुस्तान की धरती पर आगमन हुआ. आजाद हिंद सरकार के पहले प्रधानमंत्री के रूप में शपथ लेते हुए नेताजी ने ऐलान किया था कि लाल किले पर एक दिन पूरी शान से तिरंगा लहराया जाएगा. आजाद हिंद सरकार ने देश से बाहर अंग्रेज हुकूमत के खिलाफ लड़ाई लड़ी थी और आजादी की लड़ाई में अहम भूमिका निभाई थी. इस सरकार ने अंग्रेजों को बता दिया कि भारत के लोग अब अपनी जमीन पर बाहरी हुकूमत को किसी कीमत पर बर्दाश्त नहीं करेंगे.आजाद हिंद सरकार की स्थापना के 75वीं वर्षगांठ पर 2018 में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने लाल किले की प्राचीर से तिरंगा झंडा फहराया था.

‘तुम मुझे खून दो मैं तुम्हें आजादी दूंगा’

‘तुम मुझे खून दो मैं तुम्हें आजादी दूंगा’ का नारा बुलंद करने वाले महान देशभक्त सुभाष चंद्र बोस एक ऐसी शख्सियत थे, जिन्होंने न सिर्फ देश के अंदर बल्कि देश के बाहर भी आज़ादी की लड़ाई लड़ी. राष्ट्रीय आंदोलन में नेताजी का योगदान कलम चलाने से लेकर आज़ाद हिंद फौज का नेतृत्व कर अंग्रेज़ों से लोहा लेने तक रहा है. नेताजी सुभाष चन्द्र बोस ने अपने कॉलेज के शुरुआती दिनों में ही बंगाल में क्रांति की वो मशाल जलाई, जिसने भारत की आज़ादी की लड़ाई को एक नई धार दी.

हिटलर से भी मिले थे सुभाष चंद्र बोस

सुभाष चंद्र बोस ने 1937 में अपनी सेक्रेटरी और ऑस्ट्रियन युवती एमिली से शादी की. उन दोनों की एक अनीता नाम की एक बेटी भी हुई. विदेशी प्रवास के दौरान नेताजी हिटलर से भी मिले. उन्होंने 1943 में जर्मनी छोड़ दिया. वहां से वे जापान पहुंचे. फिर जापान से  सिंगापुर पहुंचे. 18 अगस्त 1945 को टोक्यो (जापान) जाते समय ताइवान के पास एक हवाई दुर्घटना में उनका निधन हो गया, लेकिन उनका शव नहीं मिल पाया. नेताजी की मौत का सही कारण आज तक पता नहीं चल पाया है. नेताजी सुभाष चंद्र बोस स्वतंत्र भारत की अमरता का जयघोष करने वाला राष्ट्रप्रेम की दिव्य ज्योति जलाकर अमर हो गए.

Back to top button