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भारत

लाल बहादुर शास्त्री की जयंती,ईमानदारी और सरलता की बाते

नई दिल्ली – आज के दिन देश के दो महान व्यक्ति का जन्म हुआ था. 2 अक्टूबर को जहां महात्मा गांधी की जयंती मनाई जाती है तो वहीं आजाद भारत के दूसरे प्रधानमंत्री लाल बहादुर का जन्म भी आज के ही दिन हुआ था.शास्त्री जी का जीवन संघर्षों से भरा रहा। वे ऐसे प्रधानमंत्री थे, जिन्होंने राजनीति में रहकर भी कई आदर्श प्रस्तुत किए.

लाल बहादुर शास्त्री बारे में

भारत के दूसरे प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री का जन्म मुगलसराय, उत्तर प्रदेश में 2 अक्टूबर, 1904 में हुआ था. पूर्व प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू के निधन के बाद 1964 में लाल बहादुर शास्त्री देश के दूसरे प्रधानमंत्री (Second Prime Minister) बन गए थे. वे सादगी भरा जीवन व्यतीत करते थे और मुसीबतों में भी शांत बने रहते थे. प्रधानमंत्री बनने से पहले लाल बहादुर शास्त्री ने रेल मंत्री, परिवहन एंव संचार मंत्री, वाणिज्य एवं उद्योग मंत्री और गृह मंत्री का भी कार्यभार संभाला था. वे स्वतंत्रता सैनानी भी रहे थे. लाल बहादुर शास्त्री जी के जीवन से बहुत कुछ सीखा जा सकता है.

लाल बहादुर शास्त्री जीवन मंत्रा

लाल बहादुर शास्त्री देश के प्रधानमंत्री बने और इससे पहले भी वे रेल मंत्री और गृह मंत्री जैसे पद पर भी रहें, लेकिन उनका जीवन एक साधारण व्यक्ति जैसा ही रहा. वे प्रधानमंत्री आवास में खेती करते थे. कार्यालय से मिले भत्ते और वेतन से ही अपने परिवार का गुराजा करते थे. एक बार शास्त्री जी के बेटे ने प्रधानमंत्री कार्यलय की गाड़ी इस्तेमाल कर ली तो शास्त्री जी ने सरकारी खाते में गाड़ी के निजी इस्तेमाल का पूरा भुगतान भी किया. प्रधानमंत्री पद पर रहते हुए भी उनके पास न तो खुद का घर था और ना ही कोई संपत्ति.

शास्त्री जी ने दिया जय जवान जय किसान का नारा

लाल बहादुर शास्त्री जी ‘जय जवान जय किसान’ नारे के उद्घोषक थे. जब वे प्रधानमंत्री बने तब देश में अनाज का संकट था और मानसून भी कमजोर था. ऐसे में देश में अकाल की नौबत आ गई थी. अगस्त 1965 में दशहरे के दिन दिल्ली के रामलीला मैदान में लाल बहादुर शास्त्री जी ने पहली बार जय जवान जय किसान का नारा दिया. इस नारे को भारत का राष्ट्रीय नारा भी कहा जाता है, जोकि किसान और जवान के श्रम को दर्शाता है. साथ ही उन्होंने लोगों से हफ्ते में एक दिन का उपवास भी रखने को कहा और खुद भी ऐसा किया.

लाल बहादुर शास्त्री की कुछ बाते

हम रहें ना रहें, ये देश मजबूत रहना चाहिए और ये झंडा लहराता रहना चाहिए.
देश की ताकत और मजबूती के लिए सबसे जरूरी काम है लोगों में एकता स्थापित करना.
मैं किसी दूसरे को सलाह दूं और उसे मैं खुद पर अमल ना करूं, तो मैं असहज महसूस करता हू.
जब स्वतंत्रता और अखंडता खतरे में हो, तो पूरी शक्ति से उस चुनौती का मुकाबला करना ही एकमात्र कर्तव्य होता है.हमें एक साथ मिलकर किसी भी प्रकार के अपेक्षित बलिदान के लिए दृढ़तापूर्वक तत्पर रहना है.
हम सिर्फ अपने लिए ही नहीं, बल्कि समस्त विश्व के लिए शांति और शांतिपूर्ण विकास में विश्वास रखते है.
देश के प्रति निष्ठा सभी निष्ठाओं से पहले आती है और यह एकदम पूर्ण निष्ठा है, क्योंकि इसमें कोई प्रतीक्षा नहीं करता की इसके बदले उसे क्या मिलता है.

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