World Aids Day 2023 : जानें विश्व एड्स दिवस का इतिहास, महत्व और थीम
नई दिल्लीः : एचआईवी/ एड्स एक जानलेवा बीमारी है, जिसका अब तक कोई इलाज नहीं है। एचआईवी से संक्रमित होने वाला पीड़ित जीवनभर के लिए इस वायरस से ग्रसित हो जाता है। हालांकि विशेषज्ञों ने एचआईवी से बचने के कुछ उपाय बताएं हैं। वहीं एड्स रोगी के लिए कुछ दवाएं भी हैं, जिसके माध्यम से रोग की जटिलता को कम किया जा सकता है। एड्स को लेकर कई सारे मिथक और गलत जानकारियां भी व्याप्त हैं, जिसे दूर करने और एचआईवी के प्रति लोगों को जागरूक करने के लिए हर साल दुनियाभर में विश्व एड्स दिवस मनाया जाता है। इस दौरान लोगों को जानकारी दी जाती है कि एड्स को लेकर बहुत ज्यादा घबराने की जरूरत नहीं है। इस बीमारी में औसत आयु भले ही कम हो जाती है लेकिन पीड़ित सामान्य जिंदगी जी सकता है।
एचआईवी/एड्स का इतिहास
एचआईवी की शुरुआत जानवरों से हुई। जानकारी के मुताबिक, सबसे पहले 19 वीं सदी में अफ्रीका में खास प्रजाति के बंदरों में एड्स का वायरस पाया गया। बंदरों से इस बीमारी का प्रसार इंसानों तक हुआ। अफ्रीका में बंदर खाए जाते थे। ऐसे में माना गया कि इंसानों में बंदर खाने के कारण वायरस पहुंचा।प्राप्त जानकारी के मुताबिक, 1920 में अफ्रीका के कांगो में एचआईवी संक्रमण का प्रसार हुआ। 1959 में एक आदमी के खून के नमूनों में सबसे पहला एचआईवी वायरस पाया गया। इस संक्रमित व्यक्ति को ही एचआईवी का सबसे पहला मरीज माना जाता है। कांगो की राजधानी किंशासा यौन ट्रेड का केंद्र था। इसलिए दुनिया के कई देशों तक यौन संबंधों के माध्यम से एचआईवी का प्रसार हुआ।
एड्स का पुराना नाम
पहली बार एड्स की पहचान 1981 में हुई। लाॅस एंजेलिस के डॉक्टर ने पांच मरीजों में अलग अलग तरह के निमोनिया को पहचाना। इन मरीजों की रोग प्रतिरोधक क्षमता अचानक कमजोर पड़ गई थी। हालांकि पांचों मरीज समलैंगिक थे। इसलिए चिकित्सकों को लगा कि यह बीमारी केवल समलैंगिकों को ही होती है। इसलिए इस बीमारी को ‘गे रिलेटेड इम्यून डिफिशिएंसी’ (ग्रिड) नाम दिया गया। लेकिन बाद में दूसरे लोगों में भी यह वायरस पाया गया, तब जाकर 1982 में अमेरिका के सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन ने इस बीमारी को एड्स नाम दिया।
विश्व एड्स दिवस का महत्व
विश्व एड्स दिवस एचआईवी/एड्स के खिलाफ लड़ाई में हुई प्रगति को प्रतिबिंबित करने का एक क्षण है। पिछले कुछ वर्षों में, चिकित्सा अनुसंधान में प्रगति, जागरूकता में वृद्धि और उपचार तक बेहतर पहुंच ने एचआईवी/एड्स प्रबंधन के परिदृश्य को बदल दिया है। हालाँकि, यह दिन लगातार आने वाली चुनौतियों और आगे आने वाले कार्यों पर चिंतन करने के लिए भी प्रेरित करता है।काफ़ी प्रगति के बावजूद, एचआईवी/एड्स से जुड़ा कलंक एक बड़ी बाधा के रूप में बना हुआ है। विश्व एड्स दिवस खुली बातचीत, गलत धारणाओं को चुनौती देने और प्रभावित लोगों के लिए अधिक सहायक वातावरण को बढ़ावा देने को प्रोत्साहित करता है।
विश्व एड्स दिवस कब और क्यों मनाते हैं?
पहली बार विश्व स्वास्थ्य संगठन ने 1987 में विश्व एड्स दिवस मनाया। हर साल 1 दिसंबर को एड्स दिवस मनाने का फैसला लिया गया। इस दिन को मनाने का उद्देश्य हर उम्र और वर्ग के लोगों को एड्स के बारे में जागरूक करना है।
विश्व एड्स दिवस 2023 की थीम
एचआईवी/एड्स पर संयुक्त राष्ट्र के संयुक्त कार्यक्रम यूएनएड्स ने कहा कि बीमारी के बारे में जागरूकता फैलाने और इसके प्रसार को रोकने में समुदायों के महत्व पर जोर देने के लिए विषय का निर्णय लिया गया है।”लेकिन समुदायों को उनके नेतृत्व से रोका जा रहा है। धन की कमी, नीति और नियामक बाधाएं, क्षमता की कमी, और नागरिक समाज और हाशिए पर रहने वाले समुदायों के मानवाधिकारों पर कार्रवाई, एचआईवी की रोकथाम और उपचार सेवाओं की प्रगति में बाधा डाल रही है। यदि ये बाधाएं हैं हटा दिए गए हैं, तो समुदाय के नेतृत्व वाले संगठन वैश्विक एचआईवी प्रतिक्रिया में और भी अधिक गति जोड़ सकते हैं, जिससे एड्स की समाप्ति की दिशा में प्रगति हो सकती है,” यूएनएड्स ने कहा।
वैश्विक एकजुटता
विश्व एड्स दिवस वैश्विक एकजुटता की शक्ति का प्रमाण है। यह एचआईवी के प्रसार को समाप्त करने, उपचार की सार्वभौमिक पहुंच सुनिश्चित करने और प्रभावित लोगों का समर्थन करने के लिए साझा प्रतिबद्धता में राष्ट्रों, समुदायों और व्यक्तियों को एक साथ लाता है।एचआईवी/एड्स की व्यापकता में असमानताओं को दूर करने और यह सुनिश्चित करने में अंतर्राष्ट्रीय समुदाय का सहयोग महत्वपूर्ण है कि संसाधनों को वहीं आवंटित किया जाए जहां उनकी सबसे अधिक आवश्यकता है।
रोकथाम के लिए जागृतता
एचआईवी/एड्स की रोकथाम में शिक्षा एक आधारशिला बनी हुई है। विश्व एड्स दिवस की पहल सटीक जानकारी प्रसारित करने, सुरक्षित प्रथाओं को बढ़ावा देने और नियमित परीक्षण को प्रोत्साहित करने पर केंद्रित है। वायरस के प्रसार को रोकने और गलतफहमियों को दूर करने के लिए व्यक्तियों को ज्ञान के साथ सशक्त बनाना मौलिक है।