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आजाद भारत के दूसरे प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री की आखिर कैसे हुई थी मौत?,आज भी है रहस्य


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नई दिल्लीः लाल बहादुर शास्‍त्री देश के दूसरे प्रधानमंत्री थे. वे एक ऐसे नेता थे, जिन्‍हें हर कोई पसंद करता था. बतौर प्रधानमंत्री 18 महीने के कार्यकाल में उन्‍होंने इतना कुछ किया, जिसकी चर्चा आज भी की जाती है. भारत-पाकिस्‍तान का युद्ध उन्‍हीं के कार्यकाल के दौरान हुआ, जिसमें पाकिस्‍तान को करारी शिकस्‍त मिली. वहीं अनाज के संकट की चुनौती होते हुए भी देश के मान से उन्‍होंने देशवासियों को कोई समझौता नहीं करने दिया.

लाल बहादुर शास्त्री की ताशकंद में अचानक हुई मौत

लाल बहादुर शास्त्री की 11 जनवरी 1966 की रात ताशकंद में अचानक मृत्यु आज भी रहस्य के घेरे में है. उसे लेकर तमाम सवाल आज भी पूछे जाते हैं. आज भी ज्यादातर लोग ये मानने को तैयार नहीं हैं कि उनकी वो मृत्यु स्वाभाविक तौर पर दिल के दौरे से हुई थी. आखिर क्या हुआ था उस रात उनके साथ आखिरी 03-04 घंटों में. उनके साथ के लोग उस दौरान घटी घटनाओं के बारे में क्या बताते हैं.

शास्त्री जी के कार्यकाल में भारत ने जीती 1965 की जंग

देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू के निधन के बाद लाल बहादुर शास्त्री ने 9 जून 1964 को देश की कमान संभाली थी। वह करीब 18 महीने ही भारत के प्रधानमंत्री रहे। भारत ने लाल बहादुर शास्त्री के प्रधानमंत्री रहने के दौरान ही पाकिस्तान से 1965 की जंग जीती थी। इस दौरान अयूब खान पाकिस्तान के राष्ट्रपति थे। पंडित नेहरू के निधन के बाद पाकिस्तान ने शास्त्री जी के साथ साल 1964 में एक बैठक की थी। इसके बैठक के बाद शास्त्री जी और अयूब खान की मुलाकात हुई थी, जिसमें शास्त्री की सादगी को देखकर अयूब खान को लगा कि वह भारत से कश्मीर जबरन हथिया सकते हैं।

शास्त्री के सादगी से अयूब खान धोखा खा गए थे

अयूब खान ने यहीं पर गलती कर दी और कश्मीर पर कब्जा करने के लिए अगस्त 1965 में घुसपैठियों को भेज दिया। शास्त्री के सादगी से अयूब खान धोखा खा गए और पाकिस्तान को यह जंग भारी पड़ गई। पाकिस्तान सेना ने चंबा सेक्टर हमला बोला, तो प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री ने भारतीय सेना को पंजाब से मोर्चा खोलने का आदेश दे दिया। नतीजा यह हुआ है कि भारतीय सेना लाहौर कूच कर गई। सितंबर 1965 में भारत ने लौहार पर लगभग कब्जा कर लिया। अपने इस शहर को पाकिस्तान खोने की कंगार पहुंच गया था, लेकिन यूनाइटेड नेशंस ने 23 सितंबर 1965 को हस्थक्षेप किया। इसके बाद भारत ने युद्धविराम की घोषणा की।

दबाव में आया हार्ट अटैक

दरअसल साल 1965 में हुए भारत-पाकिस्तान युद्ध में भारत ने पाकिस्तान की एक बड़ी भूमि को जीत लिया था, लेकिन ताशकंद में हुए शांति समझौते के दौरान लाल बहादुर शास्त्री ने वह सारी जमीन वापस पाकिस्तान को दे दी थी। इस समझौते के बाद लाल बहादुर शास्त्री ने अपने घर फोन लगाया तो उनके बेटे ने बताया कि, ‘आपने भारत का जीता हुआ हिस्सा पाकिस्तान को क्यों दे दिया? अम्मा आपसे नाराज है और वह आपसे बात नहीं करना चाहती,’ कहा जाता है कि इस फोन कॉल के बाद शास्त्री जी दुखी हो गए थे। उन्हें समझ आ गया था कि वह एक बड़ी गलती कर चुके हैं। ऐसे में माना जाता है कि इस दबाव में चलते ही ह्दय संबंधी बीमारी से पीड़ित शास्त्री को रात में हार्ट अटैक आया और उनका निधन हो गया।

टाइम्स ऑफ इंडिया ने इस खबर को छापा था

दरअसल तत्कालीन प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री ताशकंद समझौते के लिए सोवियत संघ के शहर ताशकंद गए हुए थे. वहां उन्होंने 10 जनवरी 1966 में पाकिस्तान के राष्ट्रपति अयूब खान के साथ ऐतिहासिक समझौते पर हस्ताक्षर किए. इस समझौते को लेकर उन पर काफी दबाव भी था.समझौते के बाद रात में 1.32 बजे दिल का दौरा पड़ने से मृत्यु हो गई. देश के बहुत से अखबार इस घटना को नहीं छाप पाए लेकिन टाइम्स ऑफ इंडिया ने रात के सिटी संस्करण को रोककर इस खबर को छापा.

क्या है ताशकंद का राज?

भारत और पाकिस्तान में जंग रुकने के बाद ताशकंद की कहानी की शुरुआत होती है। 1965 की इस जंग के बाद भारत और पाकिस्तान के बीच बातचीत के लिए ताशकंद को चुना गया। सोवियत संघ के तत्कालीन प्रधानमंत्री एलेक्सेई कोजिगिन ने समझौते की पेशकश की थी। 10 जनवरी 1966 का ताशकंद में समझौते के लिए दिन तय किया गया था। इसके समझौते के तहत दोनों देशों को अपनी-अपनी सेना को 25 फरवरी 1966 तक सीमा से पीछे हटानी थी। समझौते पर हस्ताक्षर के बाद प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री की11 जनवरी की रात में रहस्यमयी परिस्थितियों में निधन हो गया।

अमेरिका पर भी शक

लाल बहादुर शास्त्री की हत्या का शक अमेरिका पर भी जाता है। इसका बड़ा कारण यह था कि भारत ने अमेरिका के सहयोगी पाकिस्तान को युद्ध में हरा दिया था। साथ ही भारत ने अमेरिका के दबाव के बावजूद परमाणु कार्यक्रम बंद करने से इंकार कर दिया था। ऐसे में माना जाता है कि अमेरिका ने ही शास्त्री की हत्या करवाई थी। इस थ्योरी को इस बात से भी बल मिलता है कि शास्त्री के निधन के 13 दिन बाद ही परमाणु बम बनाने में लगे वैज्ञानिक होमी जहांगीर भाभा भी एक विमान दुर्घटना में मारे गए। उस समय अमेरिकी खुफिया एजेंसी सीआईए के वरिष्ठ अधिकारी रहे रॉबर्ट क्राउली ने साल 1993 में एक इंटरव्यू में कहा था कि शास्त्री और होमी भाभा की हत्या में सीआईए का हाथ था।

मौत आज भी है रहस्य

बताया जाता है कि ताशकंद में हुए समझौते के बाद शास्त्री जी दवाब में थे। जानकार बताते हैं कि पाकिस्तान को हाजी पीर और ठिथवाल वापस देने के कारण शास्त्री की भारत में आलोचना की जा रही थी। वरिष्ठ पत्रकार कुलदीप नैयर उस समय शास्त्री के मीडिया सलाहकार थे। उन्होंने ही परिवार को शास्त्री के निधन की खबर दी थी। नैयर ने एक इंटरव्यू में बताया था कि हाजी पीर और ठिथवाल को पाकिस्तान को वापस देने से शास्त्री की पत्नी भी बेहद नाराज थीं। यहां तक कि उन्होंने शास्त्री से फोन पर बात करने से भी इंकार कर दिय

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