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लाइफस्टाइल

विभीषण के इस मंदिर में होता है हिरण्यकश्यप के पुतले का दहन

नई दिल्ली – राजस्थान अपनी कला, संस्कृति, लोककथाओं और परंपराओं के लिए जाना जाता है. इन परंपराओं को संजोए रखने में यहां के निवासियों की अहम भूमिका रही है. हालांकि कई परंपराएं लुप्तप्राय भी हो रही हैं, लेकिन कुछ परंपराएं ऐसी हैं जो सदियों से चली आ रही हैं और लोग अब भी उनका पालन कर रहे हैं. ऐसी ही एक परंपरा है, हिरण्यकश्यप दहन की. यह कोटा से 15 किलोमीटर की दूरी पर कैथून कस्बे में आज भी जीवंत है.

इकलौता विभीषण मंदिर

कोटा के पास कैथून कस्बे में देश का इकलौता विभीषण मंदिर है और इस मंदिर में विभीषण की पूजा की जाती है. लेकिन यहां की सबसे अनूठी परंपरा है, होलिका दहन वाले दिन होलिका की जगह हिरण्यकश्यप के पुतले का दहन. यहां पर लोग धुलेंडी के दिन दोपहर तक होली मनाते हैं और इसके बाद नहा-धोकर शोभायात्रा निकाली जाती है. इसमें चारभुजा मंदिर, जागों, सुनारों और तेलियों के मंदिर से विमान शामिल होते हैं.यहां की सबसे खास बात ये हैं कि खास बात है कि देश भर में यहां सिर्फ हिरण्यकश्यप का पुतला दहन किया जाता है जो प्रहलाद को मारना चाहता था. भगवान विष्णु ने हिरण्यकश्यप का वध करके भक्त प्रहलाद की रक्षा की थी. इसलिए यहां होलिका दहन के दूसरे दिन हिरण्यकश्यप के पुतले का दहन किया जाता है.

होली पर लगता है विभीषण मेला

विभीषण मेला आयोजन समिति के अध्यक्ष सत्यनारायण सुमन ने बताया कि होली फूलडोल के अवसर पर यहां सात दिवसीय मेले का आयोजन होगा. जिसमें 24 मार्च की रात्रि को भव्य जागरण होगा. 25 मार्च को दोपहर 3:00 बजे से भव्य शोभायात्रा निकाली जाएगी, जो नगर के मुख्यमार्गों से होती हुई सायं 7:00 बजे विभीषण मंदिर पर पहुंचेगी. जहां पर आकर्षक आतिशबाजी के साथ 60 फीट ऊंचे हिरण्यकश्यप के पुतले का दहन होगा. इसके बाद कथा प्रवचन एवं विभीषण का राज्याभिषेक इत्यादि कार्यक्रम होंगे.

पौराणिक कथा में छुपा है स्थापना का राज

कोटा के कैथून कस्बे में देश का एकमात्र विभीषण का मंदिर है, जहां हर साल बड़ी संख्या श्रद्धालु आते हैं। होली पर इस मंदिर की रौनक देखते ही बनती है.पौराणिक मान्यताओं के अनुसार यह मंदिर 5000 हजार साल पुराना है। मंदिर से एक पौराणिक कहानी जुड़ी है। कहा जाता है कि भगवान राम के राज्याभिषेक के समय शिवजी ने मृत्युलोक की सैर करने की इच्छा प्रकट की.जिसके बाद विभीषण ने कांवड़ पर बिठाकर भगवान शंकर और हनुमान को सैर कराने की ठानी। इस पर शिवजी ने शर्त रख दी कि जहां भी उनका कांवड़ जमीन को छुएगा, यात्रा वहीं खत्म हो जाएगी। विभीषण शिवजी और हनुमान को लेकर यात्रा पर निकले। कुछ स्थानों के भ्रमण के बाद विभीषण का पैर कैथून कस्बे में धरती पर पड़ गया और यात्रा खत्म हो गई.कांवड़ का अगला सिरा करीब 12 किलोमीटर आगे चौरचौमा में और दूसरा हिस्सा कोटा के रंगबाड़ी इलाके में पड़ा। ऐसे में रंगबाड़ी में भगवान हनुमान और चौरचौमा में शिव शंकर का मंदिर स्थापित किया गया और जहां विभीषण का पैर पड़ा, वहां विभीषण मंदिर का निर्माण करवाया गया.

500 साल पुरानी है परंपरा

रात्रि में स्वर्णकार समाज के लोग विभीषण मंदिर पर एकत्र होते हैं. जिन भी परिवारों में बीते साल में पुत्ररत्न की प्राप्ति हुई होगी, वह लड्डू बांटते हैं. स्वर्णकार समाज अपनी इस परंपरा को 500 साल से भी पुरानी बताता है. सात दिवसीय मेले का आयोजन होगा, जिसमें कई सांस्कृतिक कार्यक्रम पेश किए जाएंगे.

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