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विज्ञान

क्या है ई-वेस्ट? ,क्या E-Waste के सामने दुनिया हार जाएगी ? -जानें


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नई दिल्लीः हम सबके पास मोबाइल फोन है. घर में टीवी है, लैपटॉप है. और भी ऐसे बहुत से electronic सामान है जो हर रोज इस्तेमाल होते हैं. लेकिन क्या आपने कभी ये सोचा है कि नया smartphone खरीदने के बाद पुराने फोन का क्या हुआ? नया टीवी घर में आने के बाद पुराने टीवी का क्या हुआ? उस laptop का क्या हुआ जिसे खराब होने के बाद आपने फेंक दिया? शायद ही आपने इसके बारे में सोचा हो.. आज जिस तरह से देश दुनिया में electronic सामान की चाहत बढ़ती जा रही है, वो Gadget जहर बनकर अब हमारे वातावरण का गला घोंट रहे है. E-Waste पर UN की The Global E-Waste Monitor 2024 रिपोर्ट जारी हुई है. जिसमें E-Waste वाली सुनामी का जिक्र है.

2010 के बाद से E-Waste में 82 फीसदी की बढ़ोतरी

इस रिपोर्ट के मुताबिक वैश्विक स्तर पर सालाना 6.2 करोड़ टन electronic कचरा पैदा हो रहा है. 2010 के बाद से देखें तो इस कचरे में 82 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है. रिपोर्ट में कहा है कि E-Waste अगर ऐसे ही बढ़ता रहा तो वर्ष 2030 तक 32 फीसदी की वृद्धि के साथ बढ़कर 8.2 करोड़ टन पर पहुंच सकता है. E-Waste का वार्षिक उत्पादन 23 लाख टन प्रतिवर्ष की दर से बढ़ रहा है. जिन electronic सामानों ने हम सबकी जिंदगी को आसान बना दिया है वही सामान अब जिन्दगी में ज़हर भी घोल रहे है.

क्या है ई-वेस्ट?

E-Waste आखिर होता क्या है? आमतौर पर हम अपने घरों और दफ्तरों में जिन Mobile, Laptop, TV, Tablet, Solar Panels समेत दूसरे electronic gadget और दूसरे अन्य उत्पादों को इस्तेमाल के बाद फेंक देते हैं. वही बेकार फेंका हुआ कचरा, electronic waste यानि E-Waste कहलाता है. आप भी अपने पुराने टीवी, टेबलेट, समेत इलेक्ट्रोनिक सामान को या तो कबाड़ी की दुकान पर बेच देते होंगे या फिर फेंक देते होंगे…लेकिन E-Waste की असली समस्या तब शुरू होती है जब इस कचरे का सही तरीके से collection और recycling नहीं होती. जिससे मिट्टी, पानी और हवा जहरीली हो रही है.

UN की रिपोर्ट

UN की रिपोर्ट कहती है कि वर्ष 2022 में यूरोप, ओशिनिया कंट्रीज़ और अमेरिका ने प्रति व्यक्ति सबसे ज्यादा electronic कचरा पैदा किया. इस कचरे में यूरोप प्रति व्यक्ति 17.6 किलोग्राम के हिसाब से सबसे आगे है. इसके बाद ओशिनिया ने प्रति व्यक्ति 16.1 किलोग्राम E-Waste पैदा किया…ओशिनिया ऐसे द्वीपों के समुह को कहा जाता है जो प्रशांत महासागर में फैले हुए है. जबकि अमेरिका ने 14.1 किलोग्राम कचरा पैदा किया था. इन देशों में E-Waste को इकट्ठा करने और recycling के साधन मौजूद है इसलिए इन देशों में E-Waste की recycling दर भी ऊंची है. लेकिन बहुत से ऐसे देश हैं जहां E-Waste बड़ी मात्रा में निकला, लेकिन ना यहां ऐसे कचरे को इकट्ठा करने के पर्याप्त संसाधन है और ना recycling के.

बुरा असर पड़ रहा

रिपोर्ट के मुताबिक 2022 में पैदा हुए E-Waste का सिर्फ 22.3 प्रतिशत हिस्सा ही इकट्ठा और Recycle हो पाया था. वर्ष 2030 तक electronic कचरे को इकट्ठा करने और recycling की दर घटकर सिर्फ 20 फीसदी रह जाएगी. आप जानकर हैरान रह जाएंगे कि दुनिया का करीब एक तिहाई यानी 2,000 करोड़ किलोग्राम इलेक्ट्रॉनिक कचरा खिलौने, microwave oven, vacuum cleaner और e-cigarette जैसे छोटे उपकरणों के रूप में पैदा हो रहा है. ये वो समस्या है जिसका अभी हमें बहुत ज्यादा पता नहीं चल रहा है. लेकिन धीरे-धीरे ये समस्या बढ़ रही है. जिसका पर्यावरण के साथ-साथ हमसब पर भी बहुत बुरा असर पड़ रहा है.

पूरी दुनिया की समस्या

जिस तरह से जलवायु परिवर्तन किसी एक देश की नहीं बल्कि पूरी दुनिया की समस्या है ठीक उसी तरह से E-Waste भी किसी एक देश की नहीं बल्कि पुरी दुनिया की समस्या है. पूरी दुनिया में E-Waste की मात्रा कितनी ज्यादा है, इसका अंदाजा आप इस बात से लगा सकते हैं कि अगर इस electronic waste को 40 metric ton क्षमता के ट्रकों में भरा जाए तो इसके लिए करीब 15.5 लाख से ज्यादा ट्रकों की जरूरत पड़ेगी. इन ट्रकों को एक के पीछे एक लगाया जाए तो ये भूमध्य रेखा के चारों और एक लाइन बना सकते हैं.

दुनिया में सबसे कम E-Waste किस देश से निकलता है?

दुनियाभर में electronic waste के बढ़ने की सबसे बड़ी वजह electronic सामान की तेजी से बढ़ती खपत है. आज के समय में बाजार में उपलब्ध electronic सामान की उम्र कम होती है. खराब होते ही इन्हें फेंक दिया जाता है. जैसे ही नई technology आती है, पुराने को dump कर दिया जाता है. अब आपसे हम general knowledge का एक सवाल पूछते हैं. सवाल है कि दुनिया में सबसे कम E-Waste किस देश से निकलता है. हो सकता है आपको इसका जवाब नहीं पता हो.. तो इसका जवाब है अफ्रीका. अफ्रीका सबसे कम E-Waste पैदा कर रहा है. लेकिन साथ ही वो इसे Recycle करने के लिए भी संघर्ष कर रहा है. जहां इस कचरे के recycling की दर एक फीसदी से भी कम है.

लाखों महिलाओं और बच्चों के स्वास्थ्य पर खतरा

E-Waste के चलते लाखों महिलाओं और बच्चों के स्वास्थ्य पर खतरा मंडरा रहा है. विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट ‘Children and Digitally Connected Site’ की रिपोर्ट के मुताबिक 1.29 करोड़ महिलाएं E-Waste से जुड़े क्षेत्र में काम करती हैं, ये महिलाएं या तो E-Waste को इकट्ठा करती है या फिर recycle के काम में लगी हैं. ये महिलाएं E-Waste के संपर्क में आती है इससे न केवल इन महिलाओं के स्वास्थ्य पर बल्कि उनके अजन्में बच्चों को भी खतरा होता है. इसी तरह करीब 1.8 करोड़ बच्चे और किशोर, जिनमें से कुछ की उम्र तो पांच वर्ष से भी कम है वो इस काम में जुटे है. E-Waste में मौजूद सीसा और पारा इन बच्चों की दिमागी क्षमता को नुकसान पहुंचा सकता है.

भारत में पैदा हो रहा है सालाना 413.7 करोड़ किलोग्राम ई-कचरा

आंकड़ों से यह भी पता चला है कि अफ्रीका सबसे कम ई-कचरा पैदा कर रहा है, लेकिन साथ ही वो इसे रीसायकल करने के लिए भी संघर्ष कर रहा है, जहां इस कचरे के रीसाइक्लिंग की दर एक फीसदी से भी कम है।
यदि भारत से जुड़े आंकड़ों को देखें तो देश में 2022 के दौरान 413.7 करोड़ किलोग्राम इलेक्ट्रॉनिक कचरा पैदा हुआ था। वहीं चीन में यह आंकड़ा 1,200 करोड़ किलोग्राम दर्ज किया गया था।

E-Waste वाली सुनामी

E-Waste: जिस तरह से देश दुनिया में electronic सामान की चाहत बढ़ती जा रही है, वो Gadget जहर बनकर अब हमारे वातावरण का गला घोंट रहे हैं. E-Waste पर UN की The Global E-Waste Monitor 2024 रिपोर्ट जारी हुई है, जिसमें E-Waste वाली सुनामी का जिक्र है. इस रिपोर्ट के मुताबिक, वैश्विक स्तर पर सालाना 6.2 करोड़ टन electronic कचरा पैदा हो रहा है.

नई तकनीक है बड़ी प्रॉब्लम

बीते कुछ सालों में इलेक्ट्रॉनिक कचरा काफी तेजी से बढ़ा है। इसका कारण है हमारी लाइफ में तेजी से तकनीक का विस्तार होना। क्योंकि दिन-ब-दिन तकनीकें आ रही हैं और जैसे ही कोई तकनीक आती है, तो ज्यादातर लोग पुरानी तकनीक के साथ आने वाले गैजेट्स को किनारे कर देते हैं। जो कुछ समय बाद ई-कचरा में परिवर्तित हो जाता है।

ऐसे कम कर सकते हैं ई-वेस्ट

ई-वेस्ट की मात्रा तेजी से बढ़ रही है और आने वाले सालों में इस पर लगाम नहीं लगाई गई तो भविष्य में ये एक बड़ी समस्या बनकर हमारे सामने खड़ी होगी। ऐसे में अगर आप छोटी-छोटी पहल करते हैं तो इस पर काफी हद तक लगाम लगाई जा सकती है।

कम से कम नए इलेक्ट्रॉनिक प्रोडक्ट की खरीददारी करें।
कोशिश करें नया खरीदने से पहले पुराना ही रिपेयर करा लिया जाए।
गैरजरूरी इलेक्ट्रॉनिक सामान न खरीदें।

पर्यावरण के साथ-साथ जलवायु से जुड़ी समस्याओं

रिपोर्ट के अनुसार यह ई-कचरा पर्यावरण के साथ-साथ जलवायु से जुड़ी समस्याओं को भी पैदा कर रहा है। देखा जाए तो इन इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों के लिए दुर्लभ धातुओं और कच्चे माल की आवश्यकता होती है, जो ज्यादातर जीवाश्म ईंधन की मदद से प्राप्त होती हैं। ऐसे में इनकी बढ़ती मांग और रीसायकल की घटती दर के साथ वैश्विक कार्बन उत्सर्जन में भी वृद्धि हो रही है।

ई-कचरे का सही निपटान और प्रबंधन न करें से पर्यावरण और स्वास्थ्य पर गहरा प्रभाव

रिपोर्ट में यह भी सामने आया है कि इस ई-कचरे का सही निपटान और प्रबंधन न करें से पर्यावरण और स्वास्थ्य पर गहरा प्रभाव पड़ रहा है। यह बढ़ते उत्सर्जन के साथ-साथ हर साल करीब 58 हजार किलोग्राम पारा और साढ़े चार करोड़ किलोग्राम प्लास्टिक युक्त ब्रोमिनेटेड फ्लेम रिटार्डेंट पर्यावरण में मुक्त कर रहा है।ऐसे में यदि इस इलेक्ट्रॉनिक कचरे का प्रभावी प्रबंधन और निपटान किया जाता तो न केवल पर्यावरण पर बढ़ते दबाव को कम किया जा सकता था, साथ ही यह आर्थिक रूप से भी फायदेमंद होता। इसके साथ ही इससे वैश्विक स्तर पर बढ़ते उत्सर्जन को कम करने में मदद मिलती।

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