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घातक है पैंक्रियाज का कैंसर,जानें लक्षण और बचाव के तरीके


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नई दिल्लीः कैंसर को सबसे घातक रोगों की सूची में शीर्ष पर माना जाता है। हर साल दुनियाभर में लाखों लोगों की मौत कैंसर के कारण हो जाती है। स्वास्थ्य विशेषज्ञों के मुताबिक वैसे तो हर प्रकार का कैंसर बड़ा चुनौतीकारक होता है, इसमें पैंक्रियास कैंसर (अग्नाशय का कैंसर) को सबसे घातक माना जाता है। इस कैंसर का न केवन निदान काफी कठिन होता है, साथ ही इसे सबसे दर्दकारक कैंसर का भी एक रूप माना जाता है। जब कैंसर कोशिकाएं अग्न्याशय या उसके आसपास अनियंत्रित रूप से बढ़ने लगती हैं तो वहां ट्यूमर का निर्माण हो जाता है। विशेषज्ञों के अनुसार, 50 फीसदी रोगियों को शरीर के कई हिस्सों में दर्द की समस्या हो सकती है।

पैंक्रियाटिक कैंसर

कैंसर कई प्रकार का होता है उन्ही में से एक प्रकार है पैंक्रियाटिक कैंसर. पैंक्रियाटिक यानी अग्नाशय का कैंसर वह कैंसर है जो पेट के निचले हिस्से के पीछे स्थित अंग से शुरू होता है. यह तब होता है जब अग्नाशय की कोशिकाएं अपने डीएनए में परिवर्तन करने लगती हैं. इन कोशिकाओं में होने वाली वृद्धि ट्यूमर बनाने का काम करती हैं जो आगे चलकर कैंसर का रूप ले लेता है. आइए जानते हैं कि इस कैंसर के प्रारंभिक लक्षण क्या होते हैं.

कैंसर एक घातक बीमारी है

कैंसर एक घातक बीमारी है जिसमें अधिकांश लोगों की मौत हो जाती है. इस बीमारी का कोई परमानेंट इलाज नहीं है लेकिन अगर समय पर इसका इलाज कराया जाए तो खतरे को कुछ हद तक टाला जाए. कैंसर होने पर शरीर की कोशिकाओं को बहुत अधिक नुकसान पहुंचता है और धीरे धीरे शरीर के ऑर्गन काम करना बंद कर देते हैं. इसलिए इस बीमारी के शुरुआती लक्षणों को डिटेक्ट करना काफी जरूरी है ताकि समय पर इलाज शुरू हो सके.

– कैंसर रिसर्च यूके के अनुसार, अग्न्याशय के कैंसर का सबसे आम लक्षण थकान और अस्वस्थ महसूस करना है.

– तेजी से वजन गिरना
– पेट में दर्द होना

– आंखों और स्किन का पीला पड़ जाना

– पेट में द्रव का इकट्ठा होना

– पैरों का लाल और गर्म होना

– सांस लेने में कठिनाई होना

– ब्लड शुगर का कंट्रोल में न रहना

कैंसर कई प्रकार का होता है

खबर के अनुसार कैंसर कई प्रकार का होता है उन्ही में से एक प्रकार है पैंक्रियाटिक कैंसर. पैंक्रियाटिक यानी अग्नाशय का कैंसर वह कैंसर है जो पेट के निचले हिस्से के पीछे स्थित अंग से शुरू होता है. यह तब होता है जब अग्नाशय की कोशिकाएं अपने डीएनए में परिवर्तन करने लगती हैं. इन कोशिकाओं में होने वाली वृद्धि ट्यूमर बनाने का काम करती हैं जो आगे चलकर कैंसर का रूप ले लेता है. आइए जानते हैं कि इस कैंसर के प्रारंभिक लक्षण क्या होते हैं.

अग्नाशय कैंसर के प्रकार: यह दो प्रकार का होता है…

एक्सोक्राइन ट्यूमर: एक्सोक्राइन ग्रंथि को प्रभावित करने वाले ज्यादातर ट्यूमर को एडेनोकार्सिनोमा कहा जाता है. ऐसा कैंसर अग्नाशय नलिकाओं में होता है. इस प्रकार के ट्यूमर का इलाज उसकी अवधि पर निर्भर करता है.

एंडोक्राइन ट्यूमर: एंडोक्राइन ट्यूमर काफी दुर्लभ होते हैं. यह ट्यूमर हार्मोन बनाने वाली कोशिकाओं को प्रभावित करता है. इस प्रकार के ट्यूमर को आइलेट सेल ट्यूमर भी कहा जाता है.

पैंक्रियाटिक कैंसर के जोखिम कारक

कैंसर विशेषज्ञ कहते हैं, इस घातक रोग का अगर समय पर निदान कर लिया जाए तो इलाज और रोगी की जान बचाना अपेक्षाकृत आसान हो सकता है। इसके लिए जरूरी है कि हम सभी उन संकेतों के बारे में जानें जो पैंक्रियास कैंसर की ओर इशारा हो सकती हैं। सामान्यतौर पर शरीर में होने वाले दर्द को हम नजरअंदाज कर देते हैं, हालांकि कुछ हिस्सों में लंबे समय तक बना रहने वाला दर्द पैंक्रियास कैंसर का संकेत हो सकता है।

– अनहेल्दी खानपान
– सिगरेट, सिगार और तंबाकू का सेवन
– मोटापा भी अधिक जोखिम है.
– टाइप 2 का मधुमेह भी पैंक्रियाटिक कैंसर के जोखिम को बढ़ाता है.
– अधिक रसायनों का उपयोग करना
– माता-पिता से बच्चे में जीन परिवर्तन होना

हेल्थ एक्सपर्ट की मानें तो पैंक्रियाटिक कैंसर काफी दुर्लभ है अक्सर इसके शुरुआती लक्षण नजर नहीं आते इसलिए जब कि इसके लक्षण नजर आएं तो तुरंत एक्सपर्ट से सलाह लेनी चाहिए. कई बार इसके लक्षण इतने बाद में नजर आते हैं कि इलाज करने पर भी इसका निदान पूरी तरह से नहीं किया जा सकता.

पेट में दर्द

स्वास्थ्य विशेषज्ञों के मुताबिक वैसे तो पेट में होने वाले दर्द के कई कारण हो सकते हैं, हर दर्द को कैंसर का संकेत नहीं माना जा सकता है। हालांकि यदि आपको लंबे समय तक दर्द की समस्या का अनुभव होता है, साथ ही यह दर्द अक्सर पेट से पीठ तक बढ़ जाता है, तो इस बारे में किसी डॉक्टर से सलाह जरूर ले लें। इस तरह के लंबे समय तक बने रहने वाले पेट दर्द को अग्नाशय के कैंसर का संकेत माना जा सकता है।

पीठ दर्द की दिक्कत

पेट की ही तरह पीठ में भी दर्द के कई कारण हो सकते हैं, हालांकि पीठ दर्द को अग्नाशय के कैंसर का प्रमुख लक्षण माना जाता है। कैंसर जब आसपास की नसों में फैलने लगता है तब पीठ में दर्द का अनुभव होता है। इंसुलिन-स्रावित इस अंग की नसों पर कैंसर के प्रभाव की स्थिति में रोगी को पीठ में लगातार तेज दर्द का अनुभव होता है। यदि आपको भी लंबे समय से पीठ में दर्द होता रहा है और सामान्य दवाइयों से इसमें लाभ नहीं मिलता है तो इस बारे में डॉक्टर से संपर्क जरूर करें।

त्वचा में खुजली और लंब समय तक पीलिया की दिक्कत

पीलिया के साथ शुरू होने वाली त्वचा में सूखेपन और खुजली की समस्या को अग्नाशय के कैंसर का संकेत माना जाता है। जब कैंसर का ट्यूमर, पित्त नली को अवरुद्ध करने लगता है तो इस स्थिति में पाचन और पीलिया की दिक्कत हो सकती है। इस तरह की पीलिया सामान्य उपचार से भी ठीक नहीं होती है। रोगियों को शौच के रंग में भी परिवर्तन महसूस हो सकता है। ऐसे लक्षणों को अनदेखा न करें।

जी मिचलाना और उल्टी

अगर आपको खाने के तुरंत बाद मिचली या उल्टी महसूस होती है, तो यह ट्यूमर के बढ़ने का प्रारंभिक संकेत हो सकता है। ट्यूमर के कारण पाचन क्रिया प्रभावित हो जाती है, जिसके कारण भोजन करते ही जी मिचलाने और उल्टी जैसी दिक्कत बनी रहती है। समय के साथ, जैसे-जैसे ट्यूमर बढ़ता है इसके कारण भोजन के बाद पेट में दर्द की भी समस्या बढ़ जाती है।

क्रियाज कैंसर के कारण

  • मेडिकल न्यूज टूडे की रिपोर्ट के अनुसार, पैंक्रियाज कैंसर किन कारणों से होता है, इसे लेकर साफतौर से कुछ नहीं कहा जा सकता है। हालांकि, कुछ शोध में इसके जोखिम कारकों से जुड़ी जानकारी मिलती है, जिसके बारे में नीचे बता रहे हैं।
  • धूम्रपान करने वाले लोगों में इसके होने की आशंका अधिक होती है।
  • मोटापा भी इसके जोखिम कारकों में से एक है। मोटापा नहीं भी हो, लेकिन जिन लोगों के पेट पर चर्बी होती है, उनमें पैंक्रियाज कैंसर का जोखिम अधिक होता है।
  • ड्राई क्लीनर्स और मेटल वर्कर्स में इसकी संभावना होती है। क्योंकि इन कामों के दौरान ये लोग कुछ हानिकारक केमिकल के संपर्क में रहते हैं।
  • कुछ मामलों में टाइप 2 डायबिटीज को भी पैंक्रियाज कैंसर से जोड़कर देखा जाता है। यदि किसी का वजन व बीएमआई नियंत्रण में है और उसे डायबिटीज की शिकायत हुई है, तो यह भी पैंक्रियाज कैंसर का एक लक्षण हो सकता है।
  • अत्यधिक अल्कोहॉल का सेवन करने वाले लोगों में।
  • कुछ लोग अनुवांशिक कारणों से इसकी चपेट में आ सकते हैं।
  • 45 साल की अधिक उम्र के लोगों में इसका जोखिम अधिक होता है।

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