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प्राकृतिक खेती के लिए किसानों को जागरूक कर रही है सरकार ,जानें-जैविक खेती व प्राकृतिक खेती के फायदे


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नई दिल्लीः रसायनिक खेती के जो दुष्प्रभाव सामने आ रहे हैं इन्हीं को दूर करने के लिए हरियाणा सरकार लोगों को जागरूक कर रही है और प्राकृतिक खेती की ओर अग्रसर कर रहे हैं. देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल का सपना है कि लोग प्राकृतिक जहर मुक्त खेती करें और हर किसान की आय दुगनी हो. प्राकृतिक खेती के फायदा यह है कि इसमें किसान का कुछ भी खर्च नहीं आता है. केवल प्राकृतिक संसाधनों का का इस्तेमाल करके जैविक खेती प्राकृतिक रूप से की जा सकती है. इसके लिए सरकार किसानों को योगदान ट्रेनिंग के रूप में अनुदान और उनका एक-एक दाना बिक जाए इसके लिए प्रयासरत है. हरियाणा सरकार के इसी प्रयास का फायदा कैथल के गांव बात्ता के प्रगतिशील किसान जॉनी राणा ने उठाया है.

प्राकृतिक चीजों का होता है इस्तेमाल

डॉ सिंह ने कहा कि प्राकृतिक खेती वह खेती होती है, जिसमें फसलों पर किसी भी प्रकार का रासायनिक कीटनाशक एवं उर्वरक आदि का प्रयोग नहीं किया जाता है. इसमें सिर्फ प्रकृति से निर्मित उर्वरक और अन्य पेड़ पौधों के पत्ते, गोबर खाद एवं जैविक कीटनाशक उपयोग में लाया जाता है. प्राकृतिक खेती से जुड़कर किसान काफी कम लागत में अच्छी पैदावार कर सकते हैं, जिसमें प्रकृति द्वारा दिए गए संसाधनों से ही खाद व कीटनाशक बनाया जाता है. इसमें लागत न के बराबर आती है.

सरकार की कई योजनाएं जैसे धान की सीधी बिजाई या प्राकृतिक खेती हो

आज जब हमने गांव बात्ता में जाकर किसान के खेतों में दौरा किया और उनसे एक विशेष बातचीत की. जॉनी राणा ने बताया कि उनका प्राकृतिक खेती की ओर रुझान कुछ पारवारिक कारणों की वजह से हुआ और वे चाहते थे कि वह जहर मुक्त रसयनिक खेती को छोड़कर ऑर्गेनिक प्राकृतिक खेती करें. इसके लिए उन्होंने कृषि विभाग और कृषि विज्ञान केंद्र का सहारा लिया, जहां पर अधिकारियों ने उन्हें सरकार की योजनाओं के बारे में बताया. अगर आप प्राकृतिक खेती की ओर बढ़ते हैं तो सरकार आपको ट्रेनिंग भी देगी अनुदान भी देगी और सब्सिडी भी देगी. आज इस किसान के पास खेत में ट्यूबवेल चलाने के लिए सोलर सिस्टम लगा हुआ है. सरकार की कई योजनाएं जैसे धान की सीधी बिजाई या प्राकृतिक खेती हो.

प्राकृतिक रूप से बनी खाद

खाद के रूप में मूल स्तम्भ जीवामृत, बीजामृत केंचुए की खाद और वेस्ट मैटीरियल इस्तेमाल होता है, तो वहीं कीटनाशक के रूप में नीमास्त्र, ब्रह्मास्त्र एवं दसपर्णी जैविक कीटनाशक का प्रयोग होता है. इसे बनाने की विधि और अन्य जानकारी आप पिथौरागढ़ के कृषि विज्ञान केंद्र के वैज्ञानिक डॉ अलंकार सिंह से उनके मोबाइल नंबर 9410081476 पर कॉल करके ले सकते हैं.

धान गेहूं सरसों और की सभी सब्जियों की फसल

जॉनी राणा 10 एकड़ मैं अपनी प्राकृतिक खेती करते हैं, जिसके तहत धान गेहूं सरसों और की सभी सब्जियों की फसल उगाते हैं. इसमें कुछ भी रासायनिक प्रयोग नहीं करते. वह प्राकृतिक तरीके से खेती करते हैं और ग्राहक इन की फसल चाहे गेहूं धान व सब्जियां या सरसों हो इनके खेत से ही बाजार से दुगने दाम पर खरीद लेते हैं. इस किसान का कहना है कि किसान को अपने खेतों में प्राकृतिक खेती अपनाने चाहिए. उन्हें एमएसपी के चक्कर में नहीं पड़ना चाहिए, क्योंकि अगर आपकी फसल जहर मुक्त है तो बाजार से दो गुना 3 गुना दाम पर आपके खेत से ही बिक जाएगी.इस किसान ने भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल का भी धन्यवाद किया और कहा कि सरकार ने योजनाएं चलाई अनुदान दिए ट्रेनिंग दी और आज लाखों का मुनाफा कमा रहा हूं. मेरी कमाई दो से 3 गुना ज्यादा बढ़ गई है और लोगों से अपील की है कि सरकार की योजनाओं का लाभ उठाएं और प्राकृतिक खेती की ओर बढ़े ताकि हम घर में भी जहर मुक्त अनाज खाएं और देश को भी जहर मुक्त अनाज खिलाए.

प्राकृतिक खाद जीवामृत बनाने का तरीका

200 लीटर पानी में करीब 10 किलो गाय का गोबर, गौमूत्र 5 से 10 लीटर, गुड़ 1.5 किलो, बेसन 1.किलो और थोड़ी मिट्टी.

घनजीवामृत बनाने का तरीका

गाय का गोबर लगभग 100 किलो, 1.5 किलो गुड़, बेसन 2 किलो, दो मुट्ठी मिट्टी और गोमूत्र.इन तरीकों का इस्तेमाल एक टंकी में घोलकर 7 दिनों के बाद करना होता है, जिसे हल्के कपड़े से ढककर छाव में रखना होता है. यह तरीका मिट्टी में जरूरी पोषक तत्वों को बढ़ाने में मददगार साबित होता है.वहीं कीटनाशकों को बनाने के लिए नीम की पत्तियां, गौमूत्र, गोबर और पानी का इस्तेमाल किया जाता है, जिन्हें 50 घंटों के बाद इसके मिश्रण को छानकर फसलों में किया जाता है.

जैविक और प्राकृतिक खेती में अंतर

जैविक खेती में जैविक उर्वरक और खाद जैसे- कम्पोस्ट, वर्मी कम्पोस्ट, गाय के गोबर की खाद आदि का उपयोग किया जाता है और बाहरी उर्वरक का खेतों में प्रयोग किया जाता है. प्राकृतिक खेती में मृदा में न तो रासायनिक और न ही जैविक खाद डाली जाती है. वास्तव में बाहरी उर्वरक का प्रयोग न तो मृदा में और न ही पौधों में किया जाता है.

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