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Mahaparinirvan Diwas 2023: डॉ अम्बेडकर की पुण्यतिथि पर क्यों मनाया जाता है महापरिनिर्वाण दिवस?-जानें


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नई दिल्लीः डॉक्टर भीमराव रामजी अम्बेडकर, जिन्हें हम सब डॉक्टर बाबासाहेब अम्बेडकर के नाम से भी जानते हैं. डॉक्टर अम्बेडकर को संविधान का जनक कहा जाता है. 06 दिसंबर 1956 को उनकी मृत्यु हुई थी. हर साल 06 दिसंबर के दिन को बाबा साहेब की पुण्यतिथि को महापरिनिर्वाण दिवस के रूप में मनाया जाता है.
इस दिन को मनाने के पीछे का कारण है बाबा साहेब को सम्मान और श्रद्धांजलि देना. जानिए क्या महापरिनिर्वाण दिवस और बाबासाहेब अम्बेडकर की पुण्यतिथि के दिन इसे मनाने का क्या है महत्व.

डॉ बाबासाहेब अम्बेडकर की 67 वीं पुण्यतिथि है

डॉ बाबासाहेब अम्बेडकर की आज पुण्यतिथि है। हर साल भारत में 6 दिसंबर को डॉ बाबासाहेब अम्बेडकर पुण्यतिथि मनाई जाती है, जिसे महापरिनिर्वाण दिवस भी कहते हैं। डॉ बाबासाहेब अम्बेडकर एक अर्थशास्त्री, राजनीतिज्ञ और समाज सुधारक थे और उन्हें ‘भारतीय संविधान का पिता’ भी कहा जाता है। डॉ बाबासाहेब अम्बेडकर ने दलितों, महिलाओं और मजदूरों के साथ हो रहे सामाजिक भेदभाव के खिलाफ कई अभियान चला थे। 6 दिसंबर 2023 को डॉ बाबासाहेब अम्बेडकर की 67 वीं पुण्यतिथि है। डॉ बाबासाहेब अम्बेडकर का जन्म 14 अप्रैल 1891 में हुआ था। उनका निधन 6 दिसंबर 1956 को हुआ था।

क्या है परिनिर्वाण

बाद निर्वाण. परिनिर्वाण बौद्ध धर्म के कई प्रमुख सिद्धांतों और लक्ष्यों में एक है. इसके अनुसार, जो व्यक्ति निर्वाण करता है वह सांसारिक मोह माया, इच्छा और जीवन की पीड़ा से मुक्त रहता है. साथ ही वह जीवन चक्र से भी मुक्त रहता है. लेकिन निर्वाण को हासिल करना आसान नहीं होता है. इसके लिए सदाचारी और धर्मसम्मत जीवन व्यतीत करना पड़ता है. बौद्ध धर्म में 80 वर्ष में भगवान बुद्ध के निधन को महापरिनिर्वान कहा जाता है.

डॉक्टर अम्बेडकर की पुण्यतिथि पर महापरिनिर्वाण दिवस मनाने का महत्व

गरीब और दलित वर्ग की स्थिति में सुधार लाने में डॉक्टर बाबासाहेब अम्बेडकर का अहम योगदान रहा है. उन्होंने समाज से छूआछूत समेत कई प्रथाओं को खत्म करने में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया. बौद्ध धर्म के अनुयायियों का मानना है कि उनके बुद्ध गुरु भी डॉ अम्बेडकर की तरह ही सदाचारी थे. बौद्ध अनुयायियों के अनुसार डॉ अम्बेडकर भी अपने कार्यों से निर्वाण प्राप्त कर चुके हैं. इसलिए उनके पुण्यतिथि को महापरिनिर्वाण दिवस के रूप में मनाया जाता है.

क्या हुआ 06 दिसंबर की रात

सविता उस दिन यानि 06 दिसंबर 1956 को अंबेडकर के साथ दिल्ली में थीं, जब उनका निधन हुआ. दरअसल दिन में सबकुछ ठीक था. बाबा साहेब एक दिन पहले 05 दिसंबर की शाम कुछ मुलाकातियों से मिले. फिर उन्हें सिरदर्द की शिकायत हुई. उन्होंने सहायक से सिर दबवाया. खाया खाया. सोने से पहले पसंदीदा गीत गुनगुनाया. सोते समय किताब पढ़ी. सुबह वो बिस्तर पर मृत मिले.शायद रात या फिर सुबह तड़के ही सोते-सोते हार्ट अटैक से उनका निधन हो गया था. उनके इस निधन को अंबेडकर को मानने वाले एक वर्ग ने संदेह की नजरों से देखा. उन्होंने आरोप

कैसे हासिल होता है निर्वाण?

निर्वाण हासिल करना बहुत मुश्किल है। कहा जाता है कि इसके लिए किसी को बहुत ही सदाचारी और धर्मसम्मत जीवन जीना होता है। 80 साल की आयु में भगवान बुद्ध के निधन को असल महापरिनिर्वाण कहा गया।

कैसे मनाते हैं महापरिनिर्वाण दिवस

संविधान निर्माता डॉक्टर भीमराव अम्बेडकर की पुण्यतिथि यानी 06 दिसंबर के दिन लोग उनकी प्रतिमा पर फूल-माला चढ़ाते हैं और दीपक व मोमबत्तियां जलाते हैं. इसके बाद उन्हें श्रद्धांजलि दी जाती है. बाबासाहेब को श्रद्धांजलि देने के लिए चैत्य भूमि पर भी लोगों की भीड़ जमा होती है. इस दिन बौद्ध भिक्षु समेत कई लोग पवित्र गीत गाते हैं और बाबा साहेब के नारे भी लगाए जाते हैं.

डॉ. आंबेडकर ने कब अपनाया था बौद्ध धर्म?

बता दें कि डॉक्टर अम्बेडकर ने कई साल बौद्ध धर्म का अध्ययन किया और 14 अक्टूबर 1956 को उन्होंने बौद्ध धर्म अपनाया. मृत्यु के बाद उनका अंतिम संस्कार भी बौद्ध धर्म के नियम के अनुसार ही किया गया था. मुंबई के दादर चौपाटी में जिस जगह डॉ अम्बेडकर का अंतिम संस्कार हुआ था, उसे अब चैत्य भूमि के नाम से जाना जाता है.

उनका अंतिम संस्कार कहां हुआ?

उनके पार्थिव अवशेष का अंतिम संस्कार बौद्ध धर्म के नियमों के मुताबिक मुंबई की दादर चौपाटी पर हुआ। जहां उनका अंतिम संस्कार किया गया, उसक जगह को अब चैत्य भूमि के तौर पर जाना जाता है।

उनकी पुण्यतिथि महापरिनिर्वाण दिवस के तौर पर क्यों मनाई जाती है?

दलितों की स्थिति में सुधार लाने के लिए उन्होंने काफी काम किया और छूआछूत जैसी प्रथा को खत्म करने में उनकी बड़ी भूमिका थी। इसलिए उनको बौद्ध गुरु माना जाता है। उनके अनुयायियों का मानना है कि उनके गुरु भगवान बुद्ध की तरह ही काफी प्रभावी और सदाचारी थे। उनका मानना है कि डॉ. आंबेडकर अपने कार्यों की वजह से निर्वाण प्राप्त कर चुके हैं। यही वजह है कि उनकी पुण्यतिथि को महापरिनिर्वाण दिवस या महापरिनिर्वाण दिन के तौर पर मानाया जाता है।

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