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क्या समलैंगिक शादी को मिलेंगी मान्यता ? सुप्रीम कोर्ट में आज होगा फैसला


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नई दिल्लीः सुप्रीम कोर्ट की पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ समलैंगिक शादी को कानूनी मान्यता की मांग पर मंगलवार को फैसला सुनाएगी।सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक बेंच आज बड़ा फैसला सुनाएगी। यह समलैंगिकों की शादी को कानूनी मान्‍यता से जुड़ा है। चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ के नेतृत्‍व वाली पांच जजों की पीठ ने मामले में 18 अप्रैल से सुनवाई शुरू की थी। 11 मई को पीठ ने फैसला सुरक्षित रख लिया था। पीठ के अन्य सदस्यों में न्यायमूर्ति संजय किशन कौल, न्यायमूर्ति एस रवींद्र भट्ट, न्यायमूर्ति हिमा कोहली और न्यायमूर्ति पीएस नरसिम्हा शामिल हैं। 20 अक्‍टूबर को पीठ में शामिल जस्टिस एस रवींद्र भट्ट रिटायर हो जाएंगे। ऐसे में फैसले के इसके पहले ही आने की उम्‍मीद थी। कोर्ट ने इस मामले में फैसला देने के लिए 17 अक्‍टूबर यानी आज का दिन मुकर्रर किया है।

सुप्रीम कोर्ट के फैसले से पहले क्या बोले याचिकाकर्ता

LGBTQI विवाह मामले के याचिकाकर्ताओं में से एक अक्कई पद्मशाली ने कहा, “10.30 बजे देश की संवैधानिक पीठ बहुप्रतीक्षित फैसला सुनाने जा रही है जो वैवाहिक समानता की बात करता है। 25 से अधिक याचिकाकर्ता इस बात को लेकर सुप्रीम कोर्ट में गए हैं कि हम लेस्बियन, समलैंगिक, ट्रांसजेंडर, उभयलिंगी लोग शादी क्यों नहीं कर सकते?… अगर मैं किसी पुरुष से शादी करना चाहती हूं और वह सहमत है तो इसमें समाज का क्या मतलब है? विवाह व्यक्तियों के बीच होता है..”

सुप्रीम कोर्ट में दाखिल की गईं 20 याचिकाएं

सुप्रीम कोर्ट में 20 याचिकाएं हैं, जिनमें समलैंगिक शादी को कानूनी मान्यता दिए जाने की मांग की गई है। प्रधान न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस संजय किशन कौल, एस रवींद्र भट, हिमा कोहली और पीएस नरसिम्हा की पीठ ने मामले पर सुनवाई कर फैसला सुरक्षित रख लिया था। याचिकाओं में विशेष विवाह अधिनियम व अन्य कानूनों को भेदभाव वाला बताते हुए चुनौती दी गई है।

समलैंगिक विवाह पर थोड़ी देर में फैसला, सुप्रीम कोर्ट की बेंच जुटी

सुप्रीम कोर्ट समलैंगिक विवाह को कानूनी मंजूरी देने की मांग वाली याचिकाओं पर मंगलवार को फैसला सुनाएगा। सीजेआई जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने 10 दिनों की सुनवाई के बाद 11 मई को अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था।

सुप्रीम कोर्ट ने सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता से पूछा

सुनवाई के दौरान कोर्ट ने केंद्र सरकार की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता से पूछा था कि क्या सरकार समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता दिए बगैर उन्हें सामाजिक कल्याण का लाभ देने को तैयार है? क्या उन्हें कुछ सामाजिक अधिकार दिए जा सकते हैं? सॉलिसिटर जनरल ने सरकार से निर्देश लेकर कोर्ट को बताया था कि समलैंगिक जोड़ों की व्यावहारिक दिक्कतें दूर करने और उन्हें कुछ लाभ देने के उपायों पर केंद्र सरकार ने सकारात्मक प्रतिक्रिया दी है।

सेम सेक्‍स मैरिज को स्‍पेशल मैरिज के तहत मान्‍यता

याचिकाकर्ताओं की मांग है कि समलैंगिकों की शादी को स्पेशल मैरिज एक्ट के तहत मान्यता दी जाए। उनका कहना है कि स्पेशल मैरिज एक्ट लिंग के आधार पर भेदभाव करता है। यह गैर संवैधानिक है।

एक से ज्यादा मंत्रालय के समन्वय की आवश्यकता होगी- मेहता

मेहता ने कहा था कि इस मामले में एक से ज्यादा मंत्रालय के समन्वय की आवश्यकता होगी। इसलिए केंद्र सरकार कैबिनेट सचिव की अध्यक्षता में एक समिति गठित करेगी। सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार ने समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने की मांग का विरोध किया था।

मौलिक अधिकार से जुड़ा है मामला

याचिकाकर्ताओं ने इसे मौलिक अधिकार से जुड़ा मामला बताया है। उनका कहना है कि सुप्रीम कोर्ट को इसे बचाना चाहिए। स्पेशल मैरिज ऐक्ट में महिला और पुरुष का जिक्र है। उसे जेंडर न्यूट्रल होना चाहिए। उम्र संबंधी बाकी की प्रावधानों को वैसा ही रहना चाहिए जो हैं।

केंद्र सरकार ने क्या कहा?

केंद्र सरकार ने कहा था कि भारत की परंपरागत विधायी नीति में परंपरागत पुरुष और परंपरागत महिला को मान्यता दी गई है। सभी भारतीय कानूनों में पुरुष और महिला को परंपरागत समझ में परिभाषित किया गया है। सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा था कि जब इस पर पहली बार बहस हो रही है तो क्या इसे पहले संसद या राज्य विधानसभाओं में नहीं जाना चाहिए? उन्होंने कहा कि अब इन चीजों को लेकर किसी तरह का कलंक नहीं जुड़ा है। संसद ने इनके अधिकारों, पसंद, निजता और स्वायत्तता को स्वीकार किया है। 

संसद का नहीं है मामला

याचिकाकर्ताओं ने दलील दी है कि सरकार यह नहीं कह सकती कि मामला संसद का है। इसमें मौलिक अधिकार प्रभावित हो रहे हैं। याचिकाकर्ताओं को इस बात का अधिकार है कि कोर्ट में अनुच्छेद-32 के तहत रिट दाखिल करें। संसद उन्‍हें संवैधानिक गारंटी से बाहर नहीं कर सकती है।

जटिल विषय, समाज पर पड़ेगा असर

सरकार ने इसे बेहद जटिल विषय बताया है। उसका कहना है कि इसका सामाज पर व्‍यापक असर पड़ेगा। इस मामले को संसद के लिए छोड़ा जाना चाहिए। इससे कई मसले जुड़े हैं।

क्या न्यायिक आदेश के जरिये की जा सकती है शादी के अधिकार की मांग’

केंद्र ने कहा था कि यहां पर सीमित सवाल यह है कि क्या सामाजिक संस्था की तरह शादी के अधिकार की मांग न्यायिक आदेश के जरिये की जा सकती है? केंद्र का कहना था कि इस मामले का प्रभाव कई अन्य कानूनों पर पड़ेगा, जिसके लिए समाज में और विभिन्न राज्य विधानसभाओं में भी चर्चा की आवश्यकता होगी।

कमेटी गठन करने को तैयार

सरकार के मुताबिक, समलैंगिकों को शादी की मान्यता दिए बिना कुछ कानूनी अधिकार के बारे में परीक्षण के लिए कमिटी का गठन किया जा सकता है। कमिटी इस बात का परीक्षण करेगी कि क्या कानूनी अधिकार दिए जा सकते हैं। कमिटी मानवीय पहलू भी देखेगी।

खास तरह की शहरी सोच का नतीजा नहीं है

याचिकाकर्ताओं की ओर से कहा गया है कि ऐसी दलील गलत है कि यह मामला एक खास शहरी वर्ग की सोच का नतीजा है। यह मामला सामाजिक और आर्थिक अधिकार के लिए नहीं, बल्कि सामाजिक सुरक्षा का है।

अलग-अलग धर्म समलैंगिक शादी को नहीं स्‍वीकारते

केंद्र की ओर से दलील दी गई कि संसद से पारित विवाह कानून और अलग-अलग धार्मिक परंपराएं समलैंगिक विवाह को नहीं स्वीकार करते। इस तरह की शादी को मान्यता मिलने से दहेज, घरेलू हिंसा कानून, तलाक, गुजारा भत्ता, दहेज हत्या जैसे तमाम कानूनी प्रावधानों को अमल में ला पाना कठिन हो जाएगा। ये सभी कानून पुरुष को पति और महिला को पत्नी मान कर बनाए गए हैं।

कानूनी हक से महरूम हैं बच

कपल ने कहा है कि रिलेशनशिप में रहते हुए उनके दो बच्चे भी हैं। लेकिन वे कानूनी तौर पर शादी नहीं कर सकते हैं। इस तरह कपल का बच्चों के साथ कानूनी पैरेंट्स का हक नहीं मिल रहा है।

समलैंगिक जोड़ों को बच्चा गोद लेने की इजाजत का विरोध

राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (NCPCR) ने भी मामले में आवेदन दाखिल किया है। उसने समलैंगिकों को बच्चा गोद लेने की इजाजत देने का विरोध किया है। आयोग ने कहा है कि बच्चों के साथ इस तरह का प्रयोग नहीं किया जाना चाहिए। कई शोध यह कहते हैं कि जिस बच्चे का पालन समलैंगिक करेंगे, उसका मानसिक और भावनात्मक विकास प्रभावित हो सकता है।

अलग-अलग तरह के दावे हो जाएंगे शुरू

केंद्र ने कहा है कि सेम सेक्स मैरिज को मान्यता के दावे को अगर सही माना जाए तो भविष्य में नजदीकी वर्जित संबंध में भी सेक्सुअल ओरिएंटेशन और पसंद के अधिकार के दावे शुरू हो सकते हैं।

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