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Jitiya Vrat 2023: पुत्र की दीर्घायु के लिए माताओं ने रखा जितिया व्रत ,जानें व्रत की कथा विधि और शुभ मूहूर्त


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नई दिल्लीः हिंदू धर्म में संतान के लिए कई तरह के व्रत रखे जाते हैं जिनमें से एक है जितिया व्रत. इस व्रत को जीवितपुत्रिका व्रत (Jivitputrika Vrat) और जिउतिया पर्व के नाम से भी जाना जाता है. जितिया व्रत नहाय खाय से शुरू होकर सप्तमी, आष्टमी और नवमी तक चलता है. जितिया व्रत मान्यतानुसार मां पुत्र प्राप्ति या पुत्र की लंबी आयु के लिए रखती हैं. यह निर्जला व्रत होता है जिसमें जल भी नहीं पिया जाता है.वाराणसी में पुत्र के दीर्घायु व आरोग्य कामना को लेकर महिलाओं ने आश्विन कृष्ण पक्ष की अष्टमी शुक्रवार को जीवित्पुत्रिका का निराजल व्रत रखा। गंगा तट व कुंडों-सरोवरों के किनारे सूर्य देव व भगवती जगदंबिका की पूजा-अर्चना करती दिखाई दी। घाट किनारे महिलाएं विशेष पूजा अर्चना के साथ ही कथा सुनी और पुत्रों के मंगलमय जीवन की कामना की।

जितिया व्रत की कथा

पौराणिक कथाओं के अनुसार जितिया व्रत की कथा महाभारत काल से जुड़ी है. पौराणिक मान्यताओं के अनुसार महाभारत युद्ध के दौरान अश्वत्थामा ने पिता की मौत से नाराज होकर पांच लोगों को पांडव समझकर मार डाला। यह सभी द्रौपदी की पांच संतानें थी। जिसपर अर्जुन अश्वत्थामा को बंदी बनाकर उनकी दिव्यमणी छिन ली। जिस पर अश्वत्थामा ने अभिमन्यु की पत्नी के गर्भ में पल रहे बच्चे को मार डाला। जिसके बाद भगवान श्रीकृष्ण ने पुण्य प्रताप के बल पर अभिमन्यु की पत्नी उत्तरा की अजन्मी संतान को देकर उनके गर्भ में पल रहे बच्चे को पुन: जीवित किया। भगवान श्रीकृष्ण के आशीर्वाद से उत्पन्न बच्चे नाम जीवित्पुत्रिका रखा गया। जन्म के बाद इसी पुत्र का नाम जीवित्पुत्रिका रखा गया था. माना जाता है कि इसके बाद से ही जितिया या जीवित्पुत्रिका व्रत को रखने की परंपरा शुरू हुई थी.आगे चलकर यहीं राजा परीक्षित के नाम से प्रचलित हुए। तभी से इस व्रत को माताएं संतान की लंबी आयु के लिए रखती हैं।

व्रत की विधि

जितिया व्रत के दिन स्नान पश्चात स्वच्छ वस्त्र धारण किए जाते हैं. इस दिन भगवान जीमूतवाहन की पूजा की जाती है. कुशा से बनी जीमूतवाहन भगवान की प्रतिमा के समक्ष धूप-दीप, चावल और पुष्ण अर्पित किए जाते हैं. इसके अतिरिक्त, व्रत में गाय के गोबर और मिट्टी से चील और सियारिन की मूर्ति बनाई जाती है. पूजा करते हुए इनके माथे पर सिंदूर से टीका लगाते हैं और पूजा समाप्त होने के बाद जितिया व्रत की कथा (Jitiya Vrat Katha) सुनी जाती है.

जितिया व्रत की तारीख और शुभ मूहूर्त

इस साल 5 अक्टूबर के दिन नहाय खाय है जिस चलते अगले दिन यानी 6 अक्टूबर, शुक्रवार के दिन जितिया व्रत रखा जाएगा. इस व्रत का पारण अगले दिन 7 अक्टूबर, सुबह 10 बजकर 23 मिनट पर किया जाना है. वहीं, कुछ ज्योतिषियों का मानना है कि इस साल 6 अक्टूबर के दिन जितिया व्रत रखना शुभ नहीं होगा, इसीलिए इस व्रत को 7 अक्टूबर के दिन रखा जाना सही रहेगा.

महिलाओं ने समूह में बैठकर किया पूजन अनुष्ठान

शुक्रवार की भोर पुत्रवती महिलाओं ने संकल्प लेकर निराजल व्रत शुरू किया। फल-फूल, मिष्ठान्न आदि का डाल सजाया और घाटों-कुंडों व सरोवरों के किनारे व्रती महिलाओं का जत्था डट आया। समूह में बैठकर पूजन अनुष्ठान किया। माला-फूल, फल, मिष्ठान्न अर्पित करते हुए विधि- विधान से जिउतिया माई (जिवित्पुत्रिका माता) का पूजन किया। राजा जीमुतवाहन की कथा का श्रवण करते हुए अपने-अपने पुत्रों के दीर्घायुष्य के लिए भगवान से प्रार्थना की।

व्रती महिलाएं प्रसाद खाकर व्रत का करेंगी पारण

पंडित विकास पाण्डेय ने बताया कि इस व्रत में महिलाएं निर्जला उपवास रहकर पुत्र की प्राप्ति या उसकी दीर्घायु की कामना करती हैं। जितिया व्रत बहुत कठिन व्रत माना जाता है। यह व्रत 24 घंटे से भी ज्यादा रखा जाता है। इस दौरान पानी तक ग्रहण नहीं किया जाता है।बक्सर के प्रमुख रामरेखा घाट के अलावा विभिन्न घाटों पर जितिया व्रत रखने वाली महिलाओं की भीड़ उमड़ पड़ी है। घाट पर स्नान, दान करने के साथ ही बेटे की दीर्घायु के लिए माताएं ‘जितिया माई’ की पूजा कर रही हैं।पूजन-अर्चन का क्रम देर शाम तक चलता रहेगा। व्रती महिलाएं शनिवार को प्रसाद खाकर व्रत का पारण करेंगी।

बक्सर के गंगा घाटों पर उमड़ी माताओं की भीड़

पूजन-अर्चन करने के लिए व्रती महिलाओं की सर्वाधिक भीड़ लक्सा स्थित लक्ष्मीकुंड पर रही। यहां सुबह से शाम तक मेला लगा रहा। इसके अलावा अस्सी घाट, शिवाला, दशाश्वमेध घाट, पंचगंगा घाट व भैसासुर घाट के साथ ही ईश्वर गंगी तालाब व लाट भैरव मंदिर के निकट स्थित पोखरे पर पूजन-अर्चन के लिए व्रती महिलाओं का तांता लगा रहा।जगह-जगह बैठे पंडितों द्वारा माताओं को व्रत की कथा सुनाई गई। महिलाओं की भारी भीड़ को देखते हुए घाट के अलावा विभिन्न चौक-चौराहों पर पुलिस तैनात है, जिसके बाद भी रह रहकर जाम की स्थिति बन जा रही है। हालांकि यह व्रत जिले में दो दिन होने वाला है। कुछ महिलाएं अपने पुरोहितों के अनुसार आज तो कुछ महिलाएं कल भी व्रत रखकर स्नान दान के लिए घाट पर पहुंचेगी। दो दिन व्रत रखने के कारण भीड़ भी दो दिनों बट जाने से प्रशासन को भी विधि व्यवस्था बनाने में थोड़ा सहूलियत मिल रही है।

बता दें कि शुक्रवार को 12 बजे के बाद महिला व्रतियों का भीड़ गंगा घाटों पर जुटनी शुरू हो गई। विभिन्न साधनों से महिला गंगा स्नान के लिए पहुंची। जाम को देखते हुए व्रती महिलाओं के वाहनों को किला मैदान में ही खड़ा कर दिया गया। वहां से पैदल ही महिला गंगा घाट तक पहुंची।इसके अलावा बक्सर के महादेवा घाट,नाथ बाबा घाट, बंगला घाट,आदि घाटों पर महिलाओं की भीड़ को बांटा गया है। कैमूर, रोहतास से आने वाली अधिकतर महिलाएं चौसा के महादेव घाट पर ही स्नान कर रही हैं।भोजपुर और अन्य गांव से गंगा घाट पर स्नान करने के लिए पैसेंजर ट्रेन से महिलाओं की भारी भीड़ उतर रही हैं। हालांकि प्रशासन की ओर से वीर कुंवर सिंह चौक,ज्योति प्रकाश चौक,अम्बेडकर चौक,किला के पास समेत अन्य स्थानों पर पुलिस की तैनाती की गई है।

गेहूं और उड़द के दान का विशेष महत्व

आजमगढ़। पंडित सत्यम गुुरु ने बताया कि व्रत के दिन स्नान आदि से निवृत होकर भगवान सूर्यनारायण की प्रतिमा को स्नान कराएं। इसके बाद गंध, पुष्प, अक्षत, धूप, दीप आदि से उनकी पूजा करें। बाजरे व चने से बना भोग अर्पित करें। इस दिन स्त्रियां उड़द के कुछ साबुत दाने निगलती हैं। जिसका प्रयोजन भगवान श्री कृष्ण के सूक्ष्म रूप को उदर में प्रवेश माना जाता है। इस दिन गेहूं तथा उड़द के दान का विशेष महत्व है।

खरीदारी से सरपुतिया के भाव चढ़े आसमान

रानी की सराय। वंश वृद्धि एवं उसकी सलामती के लिए माताओं द्वारा रखे जाने वाले जीवित्पुत्रिका व्रत की पूर्व संध्या पर बाजारों में सरपुतिया की काफी मांग रही। जिसके कारण इसका भाव प्रतिदिन की अपेक्षा आसमान छूता दिखा। प्रतिदिन बाजारों में 25 से 30 रुपए प्रति किलो बिकने वाली सरपुतिया के भाव सवा सौ रुपए प्रति किलो हो गए। बता दें कि जीवित्पुत्रिका व्रत की पूर्व संध्या पर व्रती महिलाएं संध्या काल आहार में सतपुतिया की सब्जी खाने के बाद ही व्रत का शुभारंभ करती हैं।

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