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PGI में थैलेसीमिया के पीड़ित का जीन थैरेपी से होगा इलाज


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नई दिल्लीः थैलेसीमिया एक वंशानुगत रक्त विकार है (परिवारों में पारित) जिसके कारण हीमोग्लोबिन का उत्पादन कम हो जाता है, लाल रक्त कोशिकाओं में प्रोटीन जो ऑक्सीजन ले जाता है। सबसे गंभीर प्रकार की बीमारी वाले लोगों को जीवित रहने के लिए हर महीने रक्त आधान की आवश्यकता होती है। हालाँकि, बार-बार रक्त चढ़ाने से आयरन की अधिकता और संक्रमण के कारण गंभीर जटिलताएँ हो सकती हैं, खासकर अगर किसी की प्लीहा हटा दी गई हो। अब, वैज्ञानिकों ने थैलेसीमिया के लिए एक जीन थेरेपी विकसित की है जो मासिक रक्त संक्रमण की आवश्यकता को दूर कर देगी।

जीन थेरेपी

एक अंतरराष्ट्रीय चरण 3 नैदानिक ​​​​परीक्षण में, ट्रांसफ़्यूज़न-निर्भर थैलेसीमिया वाले 22 रोगियों को जीन थेरेपी प्राप्त हुई। उनमें से 90 प्रतिशत से अधिक को जीन थेरेपी प्राप्त करने के वर्षों बाद मासिक रक्त आधान की आवश्यकता नहीं रही। यह अध्ययन शिकागो के ऐन एंड रॉबर्ट एच. लूरी चिल्ड्रेन्स हॉस्पिटल में आयोजित किया गया था और इसमें 12 वर्ष से कम उम्र के बच्चों को भी शामिल किया गया था। परिणाम न्यू इंग्लैंड जर्नल ऑफ मेडिसिन में प्रकाशित हुए।

ल्यूरी चिल्ड्रेन्स में, ये जीन थेरेपी परीक्षण करीब एक दशक से चल रहे हैं। अगला कदम इस हस्तक्षेप को नैदानिक ​​​​अभ्यास में ले जाना है जो ट्रांसफ्यूजन-निर्भर थैलेसीमिया वाले रोगियों के लिए संभावित इलाज तक पहुंच बढ़ाएगा, अध्ययन के सह-लेखक जेनिफर श्नाइडरमैन, एमडी, एमएस, सेंटर फॉर कैंसर एंड ब्लड डिसऑर्डर, लूरी चिल्ड्रन एंड में कहा। नॉर्थवेस्टर्न यूनिवर्सिटी फीनबर्ग स्कूल ऑफ मेडिसिन में बाल चिकित्सा के एसोसिएट प्रोफेसर।

थैलेसीमिक काे 22 दिन में खून बदलवाना पड़ता है

थैलेसीमिक बच्चों या बड़े मरीजों काे 22 दिन में खून बदलवाना पड़ता है। खून बदलवाने का यह सिलसिला ताउम्र चलता है। थैलेसीमिया के मरीजों के लिए ब्लड की कमी भी उनके लिए दिक्कत हाेती है। लेकिन अब यह दिक्कत जल्द दूर हाेने वाली है। थैलेसीमिया के मरीजों के लिए जीन थेरेपी से इलाज संभव हाेगा। इसके ट्रायल चल रहे हैं।ट्रायल के परिणाम अच्छे आने लगे हैं। यह बात पीजीआई में चल रही दो दिन के पीडियाट्रिक हेमोटोलॉजी सीएमई में यूएसएस से हिस्सा लेने आए थेलेसीमिया एक्सपर्ट डाॅ. आशुतोष लाल ने कही। उन्होंने बताया कि थैलेसीमिक बीमारी से पीड़ित बच्चों या बड़ों में जीन थैरेपी उन सेल पर टारगेट करती है, जो खराब होते हैं, जिसकी वजह से यह बीमारी होती है।

इस नई जीन थेरेपी के बारे में और जानें

गंभीर थैलेसीमिया के लिए एक संभावित उपचारात्मक उपचार स्वस्थ हीमोग्लोबिन बनाने वाले किसी व्यक्ति से हेमटोपोएटिक स्टेम सेल प्रत्यारोपण है, लेकिन इसके लिए एक उपयुक्त दाता की आवश्यकता होती है, जिसे ढूंढना मुश्किल हो सकता है। इसके अलावा, यह ग्राफ्ट बनाम होस्ट रोग का खतरा पैदा करता है।

नई जीन थेरेपी में, थैलेसीमिया में दोषपूर्ण जीन की कार्यात्मक प्रतियां जोड़ने के लिए रोगी की स्वयं की स्टेम कोशिकाओं को पहले संशोधित वायरस के साथ प्रयोगशाला में इलाज किया जाता है। नई कोशिकाओं के संचार से पहले, रोगियों को कीमोथेरेपी दी जाती है, जिसमें आमतौर पर बुखार, संक्रमण और अन्य संभावित जटिलताओं की बारीकी से निगरानी के लिए कम से कम चार से पांच सप्ताह तक अस्पताल में रहना शामिल होता है। ऑटोलॉगस स्टेम सेल प्रत्यारोपण के बाद, रोगियों को आधान-मुक्त स्थिति तक पहुंचने में आमतौर पर लगभग एक महीने का समय लगता है। शोधकर्ताओं ने कहा कि इस अध्ययन में प्रतिभागियों पर उनकी नई कोशिकाएं प्राप्त करने के बाद 13 महीने से लेकर चार साल तक निगरानी की गई।

उपचार से संबंधित प्रतिकूल घटनाओं में कम प्लेटलेट्स, कम हीमोग्लोबिन, कम सफेद रक्त कोशिका गिनती, मुंह के घाव, बुखार और हेपेटिक वेनो-ओक्लूसिव रोग शामिल थे, जो ऑटोलॉगस हेमेटोपोएटिक स्टेम सेल प्रत्यारोपण और आवश्यक कीमोथेरेपी के विशिष्ट थे। चार रोगियों ने संभवतः जीन थेरेपी से संबंधित कम से कम एक प्रतिकूल घटना का अनुभव किया। केवल एक मरीज को थ्रोम्बोसाइटोपेनिया (रक्त में प्लेटलेट्स की कम संख्या) था, जबकि अन्य सभी घटनाएं गैर-गंभीर थीं।

हीमोफीलिया के मरीजों के लिए सरकार ने इलाज किया मुफ्त

इसके अलावा ब्लड से जुड़ी एक अन्य बीमारी हीमोफीलिया पर भी सीएमई में चर्चा हुई। प्रो. अमिता त्रेहन ने बताया कि इस बीमारी में बॉडी की मसल्स, पसलियों, जोड़ों आदि में खून बह जाता है। इसमें फैक्टर-8 इंजेक्शन दिया जाता है। पहले यह फैक्टर-8 इंजेक्शन बाजार से खरीदकर लाना पड़ता था। पंजाब, हरियाणा सरकार के अलावा पीजीआई में फैक्टर-8 इंजेक्शन मुफ्त कर दिया है। इस इंजेक्शन की मदद से खून फैलना बंद हो जाता है। कई मरीजों में हफ्ते में एक बार तो कई मरीजों में यह इंजेक्शन हफ्ते में दो बार देना पड़ता है।

एचएलए 100 फीसदी मैच होने पर ही ट्रांसप्लांट संभव होता था। मैच न होने पर ट्रांसप्लांट नहीं हो पाता था। अब ऐसी दवाएं आ गई हैं, जिनकी मदद से 50 फीसदी एचएलए मैच होने पर भी बोनमैरो ट्रांसप्लांट संभव हो गया है। ट्रांसप्लांट से थैलीसीमिया की बीमारी जड़ से खत्म हो जाती है। पीजीआई में 300 मरीज थैलेसीमिया के इलाज के आते हैं। पीजीआई में बोनमैरो ट्रांसप्लांट 10 से 15 लाख में होता है, जबकि प्राइवेट सेक्टर में यह 20 से 25 लाख रुपए में होता है।

ऐसे होती है पहचान

थैलेसीमिया की पहचान तीन महीने की आयु के बाद ही हो पाती है। इससे पीड़ित बच्चे के शरीर में खून की तेजी से कमी होने लगती है। इस कारण बच्चे को कम भूख लगती है और वह बच्चा चिड़चिड़ा हो जाता है।बच्चों में ब्लड कैंसर कॉमन: बच्चों में ब्लड कैंसर सबसे कॉमन माना जाता है। चार से सात साल के बच्चों में ब्लड कैंसर ज्यादा पाया जाता है। लेकिन पीजीआई में ब्लड कैंसर के बच्चे अगर समय पर इलाज के लिए आ जाते हैं, उन्हें समय पर कीमोथेरेपी मिल जाती है। 82 फीसदी बच्चों को बचाने में सफल रहते हैं।ऐसे पता लगाएं बीमारी का: डॉ. त्रेहन ने बताया कि अगर बच्चे का रंग पीला हो जाए, शरीर में नीले दाग आ जाएं, अगर गर्दन में या शरीर के किसी अन्य हिस्से में गांठ दिखे या पेट में रसौली महसूस हो।

हीमोग्लोबिन पर असर

सामान्य हीमोग्लोबिन में अल्फा और बीटा चेन नाम की दो जीन होती हैं। विशेषज्ञों के मुताबिक, इनमें एक भी जीन प्रभावित हो जाए तो थैलेसीमिया हो सकता है। दोनों जीन्स प्रभावित होने पर जान का खतरा बढ़ जाता है।आंख में तारा नजर आए तो इसे हल्के में न लें: प्रो. त्रेहन ने बताया कि कई बच्चों की आंख में तारा दिखने लगे तो यह आंख का ट्यूमर हो जाता है। इसे रेटीनो ब्लास्टोमा कहते हैं। इसमें आंख में तारा नजर आता है। पेरेंट्स कई बार इसे हल्के में लेते हैं। अगर पहली या दूसरी स्टेज में मरीज डॉक्टर के पास आ जाए तो ठीक हो जाता है। चौथी स्टेज में आंख निकालनी पड़ती है।

ऐसे होगा इलाज

डॉ. सोनिया ने बताया कि हीमेटोपॉयटिक स्टेम सेल ट्रांसप्लांट के लिए सामान्य व्यक्ति का बोन मैरो लिया जाता है। इससे स्टेम सेल निकालकर थैलेसीमिया के मरीज में ट्रांसफ्यूज कर दिया जाता है। इसके बाद ये स्टेम सेल तेजी से सामान्य हीमोग्लोबिन बनाने लगती है। इससे शरीर में प्रभावित हीमोग्लोबिन की मात्रा कम हो जाती है।

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