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विज्ञान

भालुओं के खून में छिपी है गजब की शक्तियाँ


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नई दिल्ली – जानवरों को कसरत करने की जरूरत नहीं पड़ती तो क्या सात महीने तक आलसियों की तरह रहने के बाद भी इंसान तो क्यो कई जानवर चुस्त दुरुस्त रह सकता है? जी हां, काले भालू (Black Bear) सात महीने तक खुद को शीतनिष्क्रियता यानि Hibernate रखते हैं, सुस्त रखते हैं और उसके बाद वे जल्दी ही चुस्त दुरुस्त हो जाते हैं. नए अध्ययन में वैज्ञानिकों ने इसके पीछा का रहस्य सुलझा लिया है.

काले भालू (Black Bear) अपनी मांसपेशियां के भार और शक्ति को एक साल पहले ही कायम कर लेते हैं और थोड़े से या नहीं के बराबर हिलने डुलने और ना ही कुछ खाने या निकासी करने के बाद भी इसका फायदा होता है. सालों से वैज्ञानिक यह जानने का प्रयास कर रहे हैं कि आखिर यह महाशक्ति काम कैसे करते हैं. नए अध्ययन ने सुझाया है कि भालू खून (Blood of Bear) में इसका रहस्य छिपा हुआ है. इतना नहीं शोधकर्ताओं को लगता है कि इससे इंसान की मांसपेशियां भी क्षीणता (atrophying) से बच सकती हैं.

जब जापान के शोधकर्ताओ ने सात शीतनिष्क्रियता (Hibernation) वाले भालुओं के खून (Blood of Bear) का सीरम लेकर उन्हें मानव कंकालीय मांसपेशियों की कोशिकाओं के टिशू कल्चर में सीधे डाला तो उन्होंने पाया कि 24 घंटों में ही कोशिकाओं की प्रोटीन मात्रा में इजाफा हो गया. उसी समय के नियायमक प्रोटीन (regulatory protein) का उत्पादन भी कम हो गया जो बेकार मांसपेशियां को हटाने में अहम भूमिका निभाता है.

ये कोशिकीय बदलाव केवल तभी देखने को मिले जब शीतनिष्क्रिय (Hibernating) खून को डाला गया. जब खूनको सक्रिय भालुओं (Black Bear) से गर्मयों के मौसम में लिया गया तब सीरम ने मानव की कांकालीय मांसपेशियों की कोशिकाओं के प्रोटीन विखंडन की प्राकृतिक प्रक्रिया को नहीं रोका. हिरोशिमा यूनिवर्सटी के फिजियोलॉजिस्ट मिट्सोनोरी मियाजाकी ने बताया कि उन्होंने पाया कि है कि शीतनिष्क्रिय भालु के सीरम में कुछ कारकों की उपस्थिति पाई है जो संस्कृतिकृत कंकालीय मांसपेशी कोशिकाय के प्रोटीन मेटाबॉलिज्म को नियंत्रित करने का काम कर सकते हैं. इसके साथ ही वे मांसपेशियों के भार को कायम रखने में भी योगदान देते हैं.

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