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राजनीति

नारद घोटाले में TMC मंत्री फिरहाद हकीम, सुब्रत मुखर्जी, विधायक मदन मित्रा और पूर्व मेयर सोवन चटर्जी से CBI करेंगी पूछताछ


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कोलकाता – हालही में पश्चिम बंगाल में तीसरी बार TMC पार्टी की ममता दीदी की सरकार बनी। नारद घोटाले में TMC मंत्री फिरहाद हकीम, सुब्रत मुखर्जी, विधायक मदन मित्रा और पूर्व मेयर सोवन चटर्जी को सीबीआई दफ़्तर लाया गया।

पश्चिम बंगाल के राज्यपाल जगदीप धनखड़ ने नारद घोटाले के मामले में तृणमूल कांग्रेस के तीन विधायकों पर मुकदमा चलाने के लिए CBI (Central Bureau of Investigation) को 9 मई को प्रेस कांफ्रेंस करके मंजूरी दी थी। इन तीन में से दो विधायकों सुब्रत मुखर्जी और फिरहाद हकीम ने सोमवार को कैबिनेट मंत्री के रूप में शपथ ली। हाल में पूर्व मंत्री मदन मित्रा कमरहाटी से विधायक हैं। इस सूची में पूर्व टीएमसी मंत्री सोवन चटर्जी भी थे जो 2019 में भाजपा में शामिल हुए और 2021 के विधानसभा चुनाव से कुछ दिन पहले छोड़ दिया।

वरिष्ठ पत्रकार मैथ्यू सैमुअल ने 2016 के विधानसभा चुनाव से पहले एक स्टिंग ऑपरेशन किया। जिसे नारद टीवी के यूट्यूब चैनल पर जारी किया गया था। इस ऑपरेशन में TMC के कई मंत्रियों और सांसदों सहित TMC के शीर्ष नेताभी शामिल थे। जिन पर एहसान के लिए नकद रिश्वत स्वीकार करने का आरोप लगाया गया था। इस मामले में मंत्री सुब्रत मुखर्जी, सोवन चटर्जी, मदन मित्रा और फरहाद हकीम के अलावा सांसद सुल्तान अहमद, सुगाता रॉय, सुवेंधु अधिकारी, काकोली घोष दस्तीकर, प्रसून बनर्जी शामिल थे। TMC के नेता जैसे शंकुदेव पांडा और वरिष्ठ पुलिस अधिकारी एस.एम.एच. अहमद मिर्जा को भी निशाना बनाया गया।

CBI ने जनवरी में राज्यपाल जगदीप से नारद मामले में चारों नेताओं के खिलाफ मुकदमा चलाने की मंजूरी मांगी थी। लेकिन कानून के अनुसार, विधानसभा अध्यक्ष अपराध के समय विधायक/ मंत्री और सांसदों के खिलाफ मंजूरी देने के बाद ही मुकदमा चलाया जा सकता है। मुख्य न्यायाधीश टी.बी.एन. राधाकृष्णन ने केंद्रीय एजेंसी को नारद स्टिंग मामले में चार्जशीट दाखिल करने का निर्देश दिया था।

जिसके चलते CBI लोकसभा अध्यक्ष से विधायक / मंत्री और सांसदों के खिलाफ मुकदमा चलाने की अनुमति मांग ली। अतिरिक्त महाधिवक्ता अभ्रतोष मजूमदार ने अदालत को बताया कि ” सीबीआई से राज्य विधानसभा के सचिवालय को स्पीकर बिमान बनर्जी को मामले में आरोपी कुछ मंत्रियों के खिलाफ आगे बढ़ने की अनुमति देने के लिए कोई पत्र नहीं मिला है। ” कुछ राजनीतिक पर्यवेक्षकों ने राज्यपाल की मंजूरी के समय पर भी सवाल उठाया है।

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