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इस सप्ताह नवरात्री के शारदीय महाष्टमी पर करें संधि पूजा


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मुंबई – आज नवरात्रि का सातवां दिन है। अष्टमी को महाष्टमी या दुर्गाष्टमी कहते है जो कि बहुत ही महत्वपूर्ण होती है। इस साल 13 अक्टूबर यानी बुधवार दुर्गाष्टमी मनाई जा रही है। इस दिन माता के 8वें रूप महागौरी की पूजा और आराधना की जाती है।

नवरात्रि के नौ दिन मां दु्र्गा के अलग-अलग स्वरूपों की पूजा की जाती है। माता रानी के भक्त अपने दोस्तों और प्रियजनों दुर्गाष्टमी की पूजा और हवन करते है। इस दिन संधि पूजा का भी बहुत महत्व होता है। यह पूजा करना बहुत ही शुभ है। यह पूजा अष्टमी और नवमी दोनों दिन चलती है। संधि पूजा में अष्टमी समाप्त होने के अंतिम 24 मिनट और नवमी प्रारंभ होने के शुरुआती 24 मिनट के समय को संधि काल कहते है। संधि काल का समय दुर्गा पूजा और हवन के लिए सबसे शुभ माना जाता है। क्योंकि यह वह समय होता है जब अष्टमी तिथि समाप्त होती है और नवमी तिथि का आरंभ होता है।

पुराणों के मुताबिक देवी चामुंडा इस दिन मां दुर्गा के माथे से प्रकट हुईं और चंदा, मुंडा और रक्तबीज (राक्षस जो महिषासुर के सहयोगी थे) का सफाया कर दिया। महाष्टमी पर दुर्गा पूजा अनुष्ठानों के दौरान 64 योगिनियों और अष्ट शक्ति या मातृकाओं (देवी दुर्गा के आठ क्रूर रूप) की पूजा की जाती है। अष्ट सती, जिसे आठ शक्तियों के रूप में भी जाना जाता है, की भारत के विभिन्न क्षेत्रों में अलग-अलग व्याख्या की जाती है। लेकिन अंततः, सभी आठ देवी शक्ति के अवतार है। वे एक ही शक्तिशाली दिव्य स्त्री है, जो विभिन्न ऊर्जाओं का प्रतिनिधित्व करती है। दुर्गा पूजा के दौरान पूजा की जाने वाली अष्ट शक्ति ब्राह्मणी, माहेश्वरी, कौमारी, वैष्णवी, वाराही, नरसिंही, इंद्राणी और चामुंडा है।

संधि काल में 108 दीपक जलाकर माता की वंदना और आराधना की जाती है। संधि पूजा के समय केला, ककड़ी, कद्दू और अन्य फल सब्जी की बलि दी जाती है। भगवती महागौरी की आराधना सभी मनोवांछित कामना को पूर्ण करने वाली और भक्तों को अभय, रूप व सौंदर्य प्रदान करने वाली है अर्थात शरीर में उत्पन्न नाना प्रकार के विष व्याधियों का अंत कर जीवन को सुख-समृद्धि व आरोग्यता से पूर्ण करती है।

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