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भारत और चीन यूक्रेन में तत्काल संघर्षविराम की जरूरत पर हुए सहमत, बोले- बताचीत हो प्राथमिकता


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नई दिल्ली: यूक्रेन संकट को लेकर भारत और चीन तत्काल संघर्षविराम की जरूरत पर सहमत हुए हैं। शुक्रवार को दोनों देशों ने संघर्ष विराम की आवश्यकता और संघर्ष को कम करने के लिए युद्धरत देशों के कूटनीति और बातचीत की राह पर लौटने की जरूरत पर सहमति जताई। विदेश मंत्री एस जयशंकर और उनके चीनी समकक्ष वांग यी के बीच तीन घंटे की बातचीत के दौरान यह मुद्दा उठा।

जयशंकर ने मीडिया ब्रीफिंग में कहा, ‘वांग यी ने चीन की समझ, वहां (यूक्रेन में) उत्पन्न स्थिति और उससे संबंधित घटनाक्रम के बारे में चीन का दृष्टिकोण पेश किया और मैंने भारतीय दृष्टिकोण प्रस्तुत किया।’ विदेश मंत्री ने कहा कि दोनों पक्षों ने अपने-अपने दृष्टिकोण पर चर्चा की और सहमति जताई कि कूटनीति एवं बातचीत प्राथमिकता होनी चाहिए।

उन्होंने कहा, ‘मुझे लगता है, भारतीय दृष्टिकोण के बारे में, आप में से कई लोगों ने मुझे कल संसद में भी बोलते हुए सुना होगा। और जाहिर है कि उन्होंने (वांग ने) जो कुछ कहा है वह उनका विचार है और मैंने जो कहा वह मेरा विचार है, लेकिन साझा विचार यह है कि हम दोनों ही तत्काल संघर्षविराम को महत्व देने के साथ-साथ कूटनीति एवं बातचीत की राह पर (रूस और यूक्रेन के) लौटने की जरूरत पर सहमत हुए हैं।’

विदेश मंत्री ने गुरुवार को संसद में कहा कि रूस-यूक्रेन संघर्ष पर भारत की स्थिति ‘दृढ़ और शुरू से लेकर अब तक एक जैसी’ रही है और वह वार्ता के माध्यम से संघर्ष का समाधान चाहता है। भारत ने यूक्रेन पर आक्रमण करने को लेकर रूस की अभी तक निंदा नहीं की है और रूसी हमले की निंदा करने वाले प्रस्ताव पर संयुक्त राष्ट्र में मतदान से भी अनुपस्थित रहा है। चीन के रूस के साथ घनिष्ठ संबंध हैं और वह यूक्रेन पर रूसी हमले के बाद अमेरिका और अन्य पश्चिमी देशों द्वारा घोषित आर्थिक प्रतिबंधों के प्रभाव को दूर करने में मास्को की सहायता करने की इच्छा के बारे में संकेत दे रहा है।

यह पूछे जाने पर कि क्या ‘क्वाड’ का विषय चीनी विदेश मंत्री ने उठाया था, जयशंकर ने कहा, ‘नहीं, इसे नहीं उठाया गया। इसलिए, क्वाड पर कोई बातचीत नहीं हुई।’ क्वाड में भारत, जापान, आस्ट्रेलिया और अमेरिका शामिल हैं। एक अलग सवाल के जवाब में जयशंकर ने कहा कि हिंद-प्रशांत का मुद्दा भी नहीं उठा। जयशंकर ने कहा, ‘हमने बहुपक्षीय मुद्दों पर भी कुछ समय बात की। मैंने सुरक्षा परिषद सहित संयुक्त राष्ट्र प्रणाली में लंबे समय से लंबित सुधार को आगे बढ़ाने की आवश्यकता पर जोर दिया।’

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