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ISIS-तालिबान के बीच चल रहे गैंगवार से अफगानिस्तान पर क्या पड़ेगा असर


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काबुल – अफगानिस्तान में काबुल हवाई अड्डे के पास दो बड़े विस्फोट हुए हैं और इन विस्फोटों में कम से कम 13 लोगों की मौत हो गई है और बड़ी संख्या में लोग घायल हो गए है। अफगानिस्तान में गुरुवार को काबुल हवाई अड्डे के पास दो आत्मघाती हमलावरों और बंदूकधारियों की तरफ से भीड़ पर किए गए हमले में कम से कम 90 लोगों की मौत हो गई जबकि 143 अन्य घायल हुए है।

अमेरिका ने भी इस हमले में अपने कुछ नागरिकों के मारे जाने की पुष्टि की है।पहला धमाका काबुल एयरपोर्ट के अभय गेट के पास हुआ। यह उन चार गेटों में से एक है जहां से लोग एयरपोर्ट के अंदर जाते है। जबकि दूसरा धमाका एयरपोर्ट से करीब डेढ़ किलोमीटर दूर एक होटल के पास हुआ। इस हमले को आत्मघाती हमलावरों ने अंजाम दिया था। इस हमले की जिम्मेदारी आतंकी संगठन ISIS-खुरासन ने ली है। यह ISIS की एक शाखा है और खुरासान का अर्थ है गजवा-ए-हिंद। यानी भारत में इस्लामी शासन स्थापित करना। यह संगठन तालिबान से अधिक कट्टरपंथी इस्लाम में विश्वास करता है और मानता है कि यह वास्तविक जिहाद करने वाला है, तालिबान नहीं।

काबुल एयरपोर्ट के चारों गेट आज सुबह से ही बंद कर दिए गए थे क्योंकि अमेरिका और नाटो देश इस तरह के आतंकी हमलों से आशंकित थे। अमेरिकी रक्षा मंत्रालय ने भी इस धमाके की पुष्टि की है और कहा है कि अभी इस तरह के और भी धमाके हो सकते है। इसलिए अमेरिका ने पहले ही अपने नागरिकों को एयरपोर्ट से दूर रहने को कहा था। फिलहाल एयरपोर्ट के आसपास सुरक्षा बढ़ा दी गई है। तालिबान, जिसके पास केवल हमला करने का अनुभव है, हमले के बाद क्या करेगा और अपने देश के लोगों की जान कैसे बचाएगा?

फिलहाल ब्रिटेन ने हमले के बाद आपात बैठक बुलाई है और फ्रांस ने भी कहा है कि वह काबुल स्थित अपने दूतावास में फंसे श्रमिकों और अपने देश के राजदूत को जल्द ही वहां से निकालेगा। अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने एक दिन पहले ही इस हमले की संभावना जताई थी। अमेरिका की इंटेलिजेंस यूनिट ने भी अलर्ट जारी कर अपने नागरिकों को काबुल एयरपोर्ट से दूर रहने को कहा है। अमेरिका और ब्रिटेन ही नहीं नाटो देशों की सेनाओं को भी 24 घंटे पहले ही आतंकी हमलों का अलर्ट मिल गया था। लेकिन खुद को दुनिया की महाशक्ति कहने वाले इन पश्चिमी देशों ने एयरपोर्ट के गेट बंद करने और अलर्ट जारी करने के अलावा कुछ नहीं किया।

काबुल एयरपोर्ट पर हुए ये बम धमाके अफगानिस्तान संकट की दिशा भी बदल सकते है। क्योंकि पिछले साल अमेरिका और तालिबान के बीच दोहा शांति समझौते की पहली शर्त थी कि तालिबान ऐसे आतंकवादी संगठनों को अपनी जमीन का इस्तेमाल नहीं करने देगा। लेकिन यह समझौता अमेरिका के जाने से पहले ही टूट गया था। इसलिए अब अमेरिका के सामने चुनौती यह है कि क्या वह समझौते का उल्लंघन कर अफगानिस्तान से अपनी सेना वापस बुलाने के फैसले को रद्द करेगा या इन हमलों की अनदेखी करते हुए बचाव अभियान जारी रखेगा। अगर ऐसा होता है तो शांति समझौते का कोई मतलब नहीं रहेगा। अफगानिस्तान में न सरकार है, न पुलिस है और न सेना है। अगर कोई हथियार लेकर सड़कों पर घूम रहा है तो वह तालिबानी आतंकवादी हैं, जिनके पास हमला करने का अनुभव है लेकिन हमले के बाद स्थितियों को संभालने का कोई अनुभव नहीं है। जब से तालिबान ने काबुल पर कब्जा किया है, वहां के अस्पताल लगभग बंद कर दिए गए है। मेडिकल सप्लाई खत्म होने वाली है और डर के मारे डॉक्टर भी काम नहीं कर रहे है।

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