कैसे मापी जाती है बारिश,कौन से यंत्र का होता है इस्तेमाल
नई दिल्ली – बारिश की खबरें हम सुनते हैं या पढ़ते हैं तो अक्सर बरसा का जिक्र इस तरह होता है कि यहां इतने मिलीमीटर बारिश हुई. क्या आपने कभी समझने की कोशिश की कि बारिश को मापते कैसे हैं. किसी स्थान पर होने वाली बारिश को मापने के लिए जिस यंत्र को काम में लाया जाता है, उसे वर्षामापी (rain gauge) कहते हैं. संसार के सभी देशों में वहां का मौसम विभाग बारिश का रिकॉर्ड रखने के लिए जगह जगह वर्षामापी यंत्र लगाता है, जिससे बारिश को इंचों या मिलीमीटर में नापा जाता है. किसी स्थान पर होने वाली बारिश को मापने के लिए जिस यंत्र को काम में लाया जाता है, उसे वर्षामापी (rain gauge) कहते हैं. संसार के सभी देशों में वहां का मौसम विभाग बारिश का रिकॉर्ड रखने के लिए जगह जगह वर्षामापी यंत्र लगाता है, जिससे बारिश को इंचों या मिलीमीटर में नापा जाता है.
बरसने वाले पानी की बूंदें कीप में गिरती रहती हैं. पानी बोतल में इकट्ठा होता रहता है. 24 घंटे के मौसम के बाद मौसम विभाग के कर्मचारी आकर बोतल में इकट्ठा पानी को उस पर लगे पैमाने की मदद से माप लेते हैं. होने वाली बारिश इस माप का दसवां हिस्सा होती है. क्योंकि कीप का व्यास बोतल के व्यास से दस गुना बड़ा होने के कारण बोतल में इकट्ठा होने वाला पानी भी दस गुना अधिक होता है.
कुछ वर्षामापी बारिश की दर और मात्रा भी माप लेते हैं. टिपिंग बकेट वर्षामापी में एक छोटी सी बाल्टी रखी रहती है. इसमें गिरने वाले बारिश के पानी की हर बूंद बिजली के एक स्विच को सक्रिय कर देती है. जो पानी की मात्रा को मापता रहता है. ये बाल्टी पानी से पूरी भर जाने पर अपने आप खाली हो जाती है. भार द्वारा संचालित वर्षामापी में एक प्लेटफार्म में एक बाल्टी रखी रहती है. इसके साथ ही एक पैमाना लगा रहता है. जैसे ही बाल्टी पूरी तरह भर जाती है. बारिश के पानी के भार से प्लेटफॉर्म नीचे दबता है. उसका दबाव टेप पर रिकॉर्ड होता रहता है. ये कंप्युटर पढ़ा जाता रहता है.
सालभर में औसत बारिश 254 मिलीमीटर(10 इंच) से कम होती है तो उस जगह को रेगिस्तान कहा जाता है. 254 मिमी से 508 मिमी (10 से 20 इंच) हर साल बारिश वाली जगहों में कुछ हरियाली रहती है. लेकिन सफल खेती के लिए 20 इंच से ज्यादा बारिश का होना जरूरी है.