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क्या है विरासत टैक्स ?सैम पित्रोदा के बयान पर मचा है चारो तरफ हंगामा


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नई दिल्लीः पूर्व प्रधानमंत्री डॉ मनमोहन सिंह का पुराना बयान कि देश के संसाधनों पर पहला हक मुसलमानों का है.., कांग्रेस के घोषणा-पत्र में संपत्ति का सर्वे कराने का वादा और अब इंडियन ओवरसीज कांग्रेस के अध्यक्ष सैम पित्रोदा का अमेरिका की तर्ज पर संपत्ति पर विरासत कर लगाने का बयान..। कड़ी से कड़ी जोड़ते हुए भाजपा ने जनता को यह बताने का प्रयास किया है कि सरकार बनने पर कांग्रेस आमजन को विरासत में मिलने वाली संपत्ति का सर्वे कराकर 45-50 प्रतिशत संपत्ति जब्त कर उसे मुस्लिमों या घुसपैठियों को देना चाहती है।

भाजपा कांग्रेस की मंशा पर उठा रही सवाल

मामले की गंभीरता समझ रही कांग्रेस ने इसी वजह से इसे पार्टी के थिंकटैंक पित्रोदा का निजी बयान बताकर पल्ला झाड़ने का प्रयास किया है, लेकिन भाजपा ने भी इसे बड़ा चुनावी मुद्दा बनाने के लिए कमर कस ली है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी चुनावी सभाओं से इस मुद्दे को उठा रहे हैं तो पार्टी के अधिकृत मंच से भाजपा उदाहरणों सहित कांग्रेस की मंशा पर सवाल उठा रही है।

कांग्रेस के घोषणा पत्र पर भाजपा का होमवर्क पूरा

हाल ही में कांग्रेस नेता सैम पित्रोदा ने अमेरिका की तर्ज पर भारत में भी संपत्ति पर विरासत टैक्स लगाने का विचार रखा था। इस पर प्रधानमंत्री मोदी ने एक चुनावी सभा में स्पष्ट आरोप लगाया कि कांग्रेस मध्यम वर्ग के आम जन की संपत्ति छीनकर घुसपैठियों को देना चाहती है। इस पर पक्ष-विपक्ष से आई प्रतिक्रिया ने चुनावी माहौल को गर्माना शुरू कर दिया तो कांग्रेस की ओर से दावा किया गया कि उसने अपने घोषणा पत्र में ऐसा कोई वादा नहीं किया, लेकिन भाजपा ने होमवर्क पूरा कर लिया है।

सैम पित्रोदा ने क्या कहा था?

सैम पित्रोदा ने बुधवार (24, अप्रैल) को विरासत टैक्स की वकालत की थी. उन्होंने इसे दिलचस्प कानून बताते हुए कहा था कि अमेरिका में 55 फीसदी विरासत टैक्स लगता है. वह बोले थे कि भारत में ऐसा नहीं है.

पित्रोदा के बयान पर मचा हंगामा

सैम पित्रोदा के बयान को लेकर प्रधानमंत्री और बीजेपी के अन्य नेताओं ने उन्हें घेरा था. प्रधानमंत्री ने कांग्रेस की मंशा पर सवाल उठाए थे और कहा था कि ऐसे बयानों से उनके इरादों का पता चलता है. उन्होंने कहा कि कांग्रेस का यही मंत्र है कि जिंदगी के साथ भी लूट और जिंदगी के बाद भी लूट. हालांकि, कांग्रेस ने पित्रोदा के बयान से किनारा कर लिया.

क्या है विरासत कर?

दुनिया के कई देश ऐसे हैं, जहां विरासत में मिली संपत्ति पर कर लगाया जाता है. ये कर उन लोगों को देना होता है, जिन्हें ये सपंत्ति विरासत में मिली होती है. इस कर को विरासत टैक्स भी कहते हैं.

आखिर अमेरिका की ‘विरासत कर’ व्यवस्था क्या है?

विरासत कर एक व्यक्ति द्वारा विरासत के हिस्से के रूप में मिली संपत्ति पर लगाया जाने वाला कर है। यह राज्य द्वारा लगाई जाने वाली कर व्यवस्था है। अमेरिका की ‘विरासत कर’ या ‘इनहेरिटेंस टैक्स’ व्यवस्था उस धन, संपत्ति पर लगती है जिसे कोई व्यक्ति मरने के बाद दूसरों के लिए छोड़ देता है। जिसे संपत्ति मिलती है उसे ही विरासत कर का भुगतान करना होता है। हालांकि, इस कर को लागू करने में कई कारकों की भूमिका होती है। ये कारक यह निर्धारित करते हैं कि कितना कर भुगतान किया जाना चाहिए और मृतक कहां रहता था, संपत्ति पाने वाले के साथ उनके रिश्ते कैसे थे।

अमेरिका में विरासत कर कहां लागू है?

अमेरिका में विरासत कर की व्यवस्था केंद्र स्तर पर नहीं लागू नहीं है। संयुक्त राज्य अमेरिका में 50 राज्य और कोलंबिया जिला शामिल हैं लेकिन विरासत कर वाली व्यवस्था महज छह राज्यों में ही लागू है। विरासत कर लगाने वालों अमेरिकी राज्यों में आयोवा, केंटकी, मैरीलैंड, नेब्रास्का, न्यू जर्सी और पेंसिल्वेनिया शामिल हैं। हालांकि, आयोवा राज्य ने घोषणा की है कि वह 2025 में अपने विरासत कर को समाप्त कर देगा।

अलग-अलग राज्यों में कैसे लागू होता है विरासत कर?

विरासत कर कितना है और इसे किसे भुगतान करना है, इसके बारे में हरेक राज्य के अपने-अपने नियम हैं। आयोवा राज्य में विरासत कर 1% से 4% तक होता है। नियम के अनुसार, पति-पत्नी, बच्चे, सौतेले बच्चे, माता-पिता, दादा-दादी और परदादा, पोते-पोतियां और पर-पोते-पोते को छूट है। इसके अलावा, 500 अमेरिकी डॉलर तक की चैरिटी की छूट भी मिलती है। केंटकी में मृतक से रिश्ते के आधार पर $500 या $1,000 से अधिक की संपत्ति पर टैक्स लागू होता है। यह कर 4% से 16% तक होता है। नियम के अनुसार, पति-पत्नी, माता-पिता, बच्चे, सौतेले बच्चे और पोते-पोतियां और भाई-बहनों को रियायत है।

जानिए ऐसा हुआ तो क्या होगा

लाभ का असमान वितरण

दुनिया संचार प्रौद्योगिकी के नेतृत्व में एक नई औद्योगिक क्रांति (IR) के बीच में है। यह पिछले आईआर के पैटर्न का अनुसरण कर रहा है। तकनीकी परिवर्तन के लाभ असमान रूप से प्रवाहित होते हैं। आमतौर पर, श्रम परिवर्तन के अंतिम छोर पर होता है क्योंकि नई आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए मानव कौशल को उन्नत करने में समय लगता है।

धन, एक मृगतृष्णा

यह काल्पनिक धन ध्यान का स्रोत है, विशेष रूप से बाइडेन के धन कर जैसे विचारों के माध्यम से, जिसमें अवास्तविक पूंजीगत लाभ पर कर लगाने का प्रस्ताव है। यानी, काल्पनिक मूल्यवृद्धि पर कर लगाया जाएगा। एलन मस्क की अस्थिर संपत्ति दर्शाती है कि यह विचार कितना अव्यवहारिक है। दो साल पहले, उनका काल्पनिक लाभ बहुत बड़ा था। अब, शेयर मूल्य में तेज गिरावट के चलते उनकी कुल संपत्ति कम हो रही है।

असमानता वास्तविक है

लाभ के प्रवाह की असमान गति के वास्तविक दुनिया पर परिणाम होते हैं। भारत में, यह चार दशकों की मजबूत जीडीपी वृद्धि और रोजगार की संरचना के बीच कमजोर संबंध के माध्यम से आता है। बड़े पैमाने पर रोजगार सृजन आर्थिक विकास के साथ तालमेल नहीं रख पाया है, जिससे राजनीतिक दलों द्वारा क्षति नियंत्रण को बढ़ावा मिला है। कल्याणकारी राज्य का विस्तार करना भारत के सभी राजनीतिक दलों के लिए एक दृष्टिकोण रहा है।

लोग मायने रखते हैं

सब्सिडी हालांकि अल्पकालिक समाधान है और विरासत कर जैसे उपायों के माध्यम से पुनर्वितरण पूरी तरह से प्रतिकूल है। एकमात्र उपाय उन नीतियों का पुनर्मूल्यांकन है जो श्रम-गहन विनिर्माण को बाधित करती हैं, और मानव पूंजी को उन्नत करने में बड़े पैमाने पर निवेश करती हैं। कौशल विकास ही एकमात्र दीर्घकालिक समाधान है।

वीपी सिंह ने हटाया इन्हेरिटेंस टैक्स

राजीव गांधी की तत्कालीन केंद्र सरकार में वित्त मंत्री रहे वीपी सिंह ने इन्हेरिटेंस टैक्स समाप्त करने का निर्णय किया था. वीपी सिंह का मानना ​​था कि इस टैक्स ने अधिक न्यायसंगत समाज बनाने और धन असमानता को कम करने के अपने इच्छित लक्ष्य को हासिल नहीं किया है. इन्हेरिटेंस टैक्स या संपत्ति शुल्क को इस तर्क पर समाप्त कर दिया गया था कि इससे प्राप्त होने वाला शुद्ध लाभ नकारात्मक था. क्योंकि सरकार ने खुद को असंख्य मुकदमेबाजी में फंसा पाया था और टैक्स से प्राप्त आय उसके प्रशासन की लागत से काफी कम थी. इसलिए इस टैक्स को 1985 में समाप्त कर दिया गया था.

भारत में कैसे लगाया जाता था संपत्ति कर?

भारत में, परिवार के मुखिया की मृत्यु पर कानूनी उत्तराधिकारियों को हस्तांतरित संपत्ति पर इन्हेरिटेंस टैक्स लगाया जाता था, चाहे वे बेटे-बेटियां हों या पोते-पोतियां. संपत्ति शुल्क अधिनियम 1953 के तहत मृतक की संपत्ति के उत्तराधिकारियों को विरासत में मिली संपत्ति के मूल्य का 85 प्रतिशत तक उच्च ‘संपत्ति शुल्क’ का भुगतान करना पड़ता था. 1953 में, संपत्ति कर लागू करके आर्थिक असमानता को दूर करने के लिए भारत में संपत्ति शुल्क अधिनियम लागू किया गया था. इसके तहत 20 लाख रुपये से अधिक मूल्य की संपत्ति के लिए दरें 85 प्रतिशत तक बढ़ गई थीं. यह अचल और चल दोनों संपत्तियों पर लागू होता था, चाहे उनका स्थान कुछ भी हो. यह कर तभी देय होता था जब विरासत में मिली संपत्ति का कुल मूल्य तय सीमा से अधिक हो.ईडीए उस संपत्ति को परिभाषित करता है जिसे परिवार के मुखिया की मृत्यु पर हस्तांतरित माना जाता है: वह संपत्ति जिसका निपटान करने के लिए मृतक सक्षम था. वह संपत्ति जिसमें मृतक या किसी अन्य व्यक्ति का हित था जो मृतक की मृत्यु पर समाप्त हो गया. ईडीए जम्मू और कश्मीर राज्य को छोड़कर पूरे भारत में लागू था.

आय में असमानता

अर्थशास्त्रियों ने 1922 और 2014 के बीच आय असमानता का विश्लेषण करते हुए पाया कि भारत में यह 1922 के बाद से अपने चरम पर है, जब पहली बार यहां आयकर लागू किया गया था. 1930 के दशक में भारत में कमाई करने वाले शीर्ष 1 फीसदी लोगों की कुल आय में हिस्सेदारी 21 फीसदी से कम थी. 1980 के दशक में यह काफी कम होकर 6 फीसदी रह गया. हालांकि, इसके बाद यह लगातार 2014 में 22 फीसदी की ऐतिहासिक ऊंचाई तक बढ़ गया. भारत में धन असमानता भी चिंताजनक रही है. क्रेडिट सुइस 2018 ग्लोबल वेल्थ रिपोर्ट के अनुसार, सबसे अमीर 1 फीसदी के पास 51.5 फीसदी और सबसे अमीर 10 फीसदी के पास देश की 77.4 प्रतिशत संपत्ति है. इसके विपरीत, निचली 60 फीसदी आबादी के पास इसका केवल 4.7 प्रतिशत हिस्सा है.

क्या फिर हो सकता है लागू

यदि हाल की समाचार रिपोर्टों को कोई संकेत माना जाए तो ऐसी संभावना है कि हम आगामी बजट में या फिर उसके बाद इसको फिर देख सकते हैं, भले ही थोड़े अलग अवतार में. नीति निर्माता समय-समय पर भारत में विरासत या संपत्ति कर लागू करने पर विचार करते रहे हैं. इतिहास अच्छा ना होने के बावजूद यह विरासत या संपत्ति कर को लागू करने का एक सही समय माना जा रहा है. क्योंकि भारत में, विशेष रूप से उदारीकरण के बाद की अवधि में धन, आय और उपभोग में असमानता बढ़ रही है. 2015 में भी मोदी सरकार में तत्कालीन वित्त मंत्री अरुण जेटली ने भी इसे लागू करने पर विचार किया था. लेकिन उस समय सरकार इस पर कोई ठोस फैसला नहीं कर सकी. वैसे सरकार इसे लेकर क्या सोचती है, फिलहाल तो यह दूर की कौड़ी है.

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