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जानें क्या है सिकल सेल रोग,सिकल सेल डिजीज से बच्चों को कैसे बचाए


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नई दिल्ली – सिकल सेल एनीमिया एक जेनेटिक डिसऑर्डर है, जिसे सिकल सेल रोग के नाम से भी जाना जाता है.यह लाल रक्त कोशिकाओं (Red blood cells) के आकार को प्रभावित करता है, जो शरीर के सभी हिस्सों में ऑक्सीजन पहुंचाती हैं. लाल रक्त कोशिकाएं आमतौर पर लचीली होती हैं, इसलिए ये रक्त धमनियों (blood vessels) के माध्यम से आसानी से चलती हैं.सिकल सेल एनीमिया में, कुछ लाल रक्त कोशिकाएं कम लचीली हो जाती हैं.ये सिकल कोशिकाएं सख्त और चिपचिपी होने के कारण रक्त प्रवाह को धीमा कर या रोक सकती हैं.

जेनिटिक बीमारी है सिकल सेल

सिकल सेल एक जेनेटिक बीमारी है. सामान्य रूप में हमारे शरीर में लाल रक्त कण प्लेट की तरह चपटे और गोल होते हैं. यह रक्त वाहिकाओं में आसानी से आवाजाही कर पाते हैं लेकिन यदि जीन असामान्य हैं तो इसके कारण लाल रक्त कण प्लेट की तरह गोल न होकर अर्धचंद्राकार रूप में दिखाई देते हैं. इस वजह से यह रक्त वाहिकाओं में ठीक तरह से आवागमन नहीं कर पाते हैं, जिससे शरीर में ऑक्सीजन की कमी होने लगती है. इसके कारण मरीज को एनीमिया की समस्या होती है. सिकल सेल रोग अधिकतर उन देशों में ज्यादा होता है जो अविकसित होते हैं. इसलिए यह रोग अफ्रीका, तुर्की, ग्रीस, सऊदी अरेबिया और भारत जैसे कई देशों में ज्यादा देखने को मिलता है.

मेडिकल इंटरवेंशन

जब डाइग्रनोसिस हो जाती है जो अर्ली इंटरवेंशन स्ट्रैटेजीज पर फोकस किया जाता है जिससे सिकल सेल डिजीज से जुड़े कॉम्पलिकेशंस को रोका जा सके. हाइड्रोक्सीयूरिया (Hydroxyurea) एक तरह का मेडिकेशन है जो फीटल हीमोग्लोबिन के प्रोडक्शन को बढ़ा देता है. इससे कई बार होने वाले दर्द और अस्पताल में एडमिट करने की जरूरत को कम किया जा सकता है. रेगुलर हेल्थ चेकअप और वैक्सिनेशन भी बेहद जरूरी है ताकि बच्चों में ऐसी परेशानी और संक्रमण को बढ़ने से रोका जा सके.

लॉन्ग टर्म मैनेजमेंट

अगर हमें सिकल सेल डिजीज लॉन्ग टर्म इफेक्ट को कम करना है तो हर बच्चे से अलग-अलग तरह का अप्रोच दिखाना होगा. इसके लिए रेगुलर फॉलो अप, न्यूट्रीशन को लेकर सलाह देना, साइकोलॉजिकल सपोर्ट जरूरी है. इस बात की भी जरूरत है कि बच्चे और पैरेंट दोनों की इस बीमारी की सही जानकारी हो. कुछ बच्चों के लिए क्रोनिक बल्ड ट्रांसफ्यूजन लॉन्ग टर्म मैनेजनेंट प्लान का हिस्सा होता है, जिससे स्ट्रोक और ऑर्गन डैमेज जैसे कॉम्पलिकेशंस से बचाया जा सकता है. इसके अलावा बोन मैरो ट्रांसप्लांटेशन का भी सहारा लिया जाता है, लेकिन ये थोड़ा कॉम्पलेक्स प्रॉसेस है. मौजूदा दौरा में कई एडवांस्ड मेडिकल रिसर्च टेक्नोलॉजी के जरिए बच्चों की जिंदगी को बेहतर बनाने में मदद मिली है.

सिकल सेल एनीमिया का पता

सिकल सेल एनीमिया का पता बच्चे के पैदा होने के दौरान टेस्टिग के जरिए लगाया जा सकता है.अगर पारिवार में इस बीमारी का इतिहास रहा है तो आप बच्चे में इसकी जांच जरूर कराएं.आमतौर पर इस बीमारी के लक्षण 2.5 महीने के बच्चे में नजर आन लगते हैं.इसका इलाज समय पर करना बहुत जरूरी होता है, वरना बच्चे को गंभीर स्वास्थ्य समस्याएं हो सकती हैं।इस बीमारी का एकमात्र इलाज स्टेम सेल ट्रांसप्लांट है, जो भारत में काफी महंगा और जटिल उपचार है.इस बीमारी को रोकने के लिए इसलिए स्क्रीनिंग जाती है, ताकि समय पर इसका पता चल सके.

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