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सबसे मशहूर कृषि वैज्ञानिक और हरित क्रांति के जनक डॉ.एमएस स्वामीनाथन का हुआ देहांत


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नई दिल्ली – भारत के हरित क्रांति के जनक एमएस स्वामीनाथन का आज उम्र संबंधी बीमारी के चलते निधन हो गया। स्वामीनाथन वहीं वैज्ञानिक हैं जिनकी किसानों के लिए बनाई गई रिपोर्ट पर सालों तक राजनीति होती रही। हालांकि किसानों को इससे फायदा नहीं हो सका।MS स्वामीनाथन का 98 वर्ष की आयु में निधन हो गया। वो लंबे समय से बीमार चल रहे थे। चेन्नई स्थित अपने आवास पर उन्‍होंने अंतिम सांसें ली.स्वामीनाथन उन शख्सियतों में से थे, जो देश में बड़ा बदलाव लेकर आए।

कौन थे एमएस स्वामीनाथन

एमएस स्वामीनाथन का जन्म 7 अगस्त 1925 को हुआ था. उन्हें भारत में हरित क्रांति के जनक के रूप में भी जाना जाता है। डॉ. स्वामीनाथन ने तिरुवनंतपुरम के महाराजा कॉलेज से जूलॉजी और कोयंबटूर कृषि महाविद्यालय से कृषि विज्ञान में बीएससी की डिग्री हासिल की। उन्होंने चेन्नई में एमएस स्वामीनाथन रिसर्च फाउंडेशन (एमएसएसआरएफ) की स्थापना साल 1988 में की। जिसके वो संस्थापक अध्यक्ष, एमेरिटस अध्यक्ष और मुख्य संरक्षक थे। डा. स्वामीनाथन 2007 से 2013 तक राज्यसभा के सदस्य भी रहे और उन्होंने यहां भी खेती-किसानी से जुड़े कई मुद्दे को उठाया।

हरित क्रांति से किया देश का विकास

स्वामीनाथन ने दो कृषि मंत्रियों सी सुब्रमण्यम और जगजीवन राम के साथ मिलकर देश में हरित क्रांति लाने का काम किया। हरित क्रांति एक ऐसा कार्यक्रम था जिसने कैमिकल-जैविक तकनीक के उपयोग से धान और गेहूं के उत्पादन में भारी इजाफा लाने का मार्ग प्रशस्त किया।डॉ. स्वामीनाथन ने तिरुवनंतपुरम के महाराजा कॉलेज से जूलॉजी और कोयंबटूर कृषि महाविद्यालय से कृषि विज्ञान में बीएससी की डिग्री हासिल की। उन्होंने चेन्नई में एमएस स्वामीनाथन रिसर्च फाउंडेशन (एमएसएसआरएफ) की स्थापना साल 1988 में की। जिसके वो संस्थापक अध्यक्ष, एमेरिटस अध्यक्ष और मुख्य संरक्षक थे। खेती-किसानी के लिए उनकी नीतियां इतनी फायदेमंद साबित हुईं कि सिर्फ पंजाब में ही पूरे देश का 70% गेहूं उगाया जाने लगा। उन्‍होंने अनाज के लिए भारत की दूसरे देशों पर निर्भरता को कम कर दिया और हरित क्रांति के अगुवा बने।इसके अलावा उन्होंने खेती के लिए उन्‍होंने ट्रैक्टर्स का व्‍यापक इस्‍तेमाल शुरू किया. साथ ही अच्‍छी फसल के लिए उर्वरकों, कीटनाशकों का इस्तेमाल शुरू किया। उन्होंने अपने कार्यकाल में कई एग्रीकल्‍चर इंस्टीट्यूट की शुरुआत की। उनके नाम पर अपना एक MS स्‍वामीनाथन रिसर्च फाउंडेशन भी है।

छोड़ दी IPS की नौकरी

आजादी से पहले 1943 में बंगाल में अकाल पड़ा। अकाल की तस्वीरों ने स्‍वामीनाथन को बुरी तरह से झकझोर दिया. ऐसी परिस्थितियों के बीच उन्होंने कृषि में आगे की पढ़ाई करने का फैसला किया। स्‍वामीनाथन कोयंबटूर चले गए और वहां कृषि कॉलेज (अब तमिलनाडु कृषि विश्वविद्यालय) से पढ़ाई की। 1947 में ICAR के भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (ICAR) से वे जुड़े। इस दौरान वे UPSC की परीक्षा में शामिल हुए और सफल भी हुए. पर अकाल की तस्‍वीरें उनके दिलो-दिमाग में छाई रही। IPS की नौकरी छोड़ उन्‍होंने खेती-किसानी के लिए ही काम करने का फैसला लिया। इस बीच उन्‍हें यूनेस्को (UNESCO) की फेलोशिप मिली और वे कृषि में शोध के लिए नीदरलैंड चले गए।

इतने मिले अवार्ड

इंटरनेशनल एसोसिएशन ऑफ वीमेन एंड डेवलपमेंट ने उन्हें कृषि में महिलाओं के ज्ञान, कौशल और तकनीकी सशक्तिकरण को बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण योगदान और कृषि और ग्रामीण विकास में लैंगिक विचारों को मुख्यधारा में लाने में उनकी अग्रणी भूमिका के लिए पहला अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार प्रदान किया। इसके अलावा भी डॉ. स्वामीनाथन को कई पुरस्कार और अवॉर्ड मिले हैं, जिनमें जैविक विज्ञान में उनके योगदान के लिए एस.एस. भटनागर पुरस्कार (1961), 1971 में सामुदायिक नेतृत्व के लिए रेमन मैग्सेसे पुरस्कार, 1986 में अल्बर्ट आइंस्टीन विश्व विज्ञान पुरस्कार, 1987 में पहला विश्व खाद्य पुरस्कार, शांति, निरस्त्रीकरण और विकास के लिए इंदिरा गांधी पुरस्कार, फ्रैंकलिन डी. रूजवेल्ट फोर फ्रीडम मेडल और 2000 में यूनेस्को का महात्मा गांधी पुरस्कार और 2007 में लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रीय पुरस्कार शामिल हैं।उन्हें पद्म श्री, पद्म भूषण और पद्म विभूषण तक से सम्मानित किया गया था। कृषि के क्षेत्र में स्वामीनाथन को 40 से अधिक पुरस्कार मिले थे।

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