देश का एक ऐसा मंदिर जो सिर्फ रक्षाबंधन के दिन ही खुलता है -जानें
नई दिल्लीः भारत में हर त्योहार का अपना एक अलग महत्व है. होली, दीवाली, राखी, ईद हो या क्रिसमस देश में हर त्योहार की धूम रहती है. कुछ दिनों में रक्षाबंधन का फेस्टिवल आने वाला है. बाजारों में रौनक, खरीदारी और घरों की सफाई बताती है कि लोग इसके जश्न की तैयारियों में जुट गए हैं. वैसे त्योहारों से धार्मिक स्थलों का भी कनेक्शन है. भारत में मंदिर कई हैं पर कुछ ऐसे हैं जिनसे अलग ही कहानी या धारणा जुड़ी हुई है.एक ऐसा मंदिर है जिसका रक्षाबंधन से कनेक्शन है. ये मंदिर सिर्फ राखी वाले दिन खुलता है. चलिए आपको बताते हैं ये मंदिर कहां मौजूद है और यहां कैसे पहुंचा जा सकता है.
भारत मंदिरों का देश है, यहां लाखों की संख्या में मंदिर है. इनमें से कई मंदिर विश्वविख्यात हैं. ये मंदिर रहस्यमयी हैं, बेहद खूबसूरत, अलौकिक और चमत्कारिक भी हैं. कुछ मंदिर दुर्गम जगहों पर हैं, जहां पहुंचना बहुत मुश्किल होता है. ऐसा ही एक मंदिर उत्तराखंड के चामोली जिले में है. इस बंशी नारायण मंदिर की खासियत है कि यह मंदिर पूरे साल बंद रहता है और सिर्फ रक्षाबंधन के दिन ही खुलता है. यह मंदिर बेहद अनोखा है, साथ ही मान्यता है कि वामन अवतार से मुक्त होने के बाद भगवान विष्णु पहली बार यहीं प्रकट हुए थे.भारत को धार्मिक दृष्टिकोण का सबसे बड़ा केंद्र माना जाता है और माना भी क्यों न जाए ये देश लाखों-करोड़ों मंदिरों से घिरा हुआ है। यहां कई ऐसे अनोखे मंदिर आपको देखने को मिल जाएंगे, जिनका अपना एक अलग रहस्य और अपनी एक अलग कहानी है। भारत के प्राचीन इतिहास में कई ऐसे रोचक बातें छिपी हुई हैं, जिनके बारे में आपको शायद ही पता होगा। एक ऐसे ही रोचक तथ्यों से घिरा हुआ है उत्तराखंड का एक मंदिर, जिसको लेकर कहा जाता है कि यहां के कपाट केवल और केवल रक्षाबंधन के दिन ही खुलते हैं। चलिए आपको इस मंदिर के इतिहास के बारे में बताते हैं।
कहते हैं कि इस मंदिर के कपाट पूरे साल बंद रहते हैं और केवल एक दिन यानी रक्षाबंधन के दिन ही खोले जाते हैं. स्थानीय निवासी रक्षाबंधन के दिन इस मंदिर में विशेष पूजा-अर्चना करते हैं. बहनें अपने भाईयों को राखी बांधने से पहले यहां भगवान की पूजा करती हैं. इस मंदिर से जुड़ी पौराणिक कथा है कि भगवान विष्णु अपने वामन अवतार से मुक्त होने के बाद सबसे पहले यहीं प्रकट हुए थे. इस मंदिर के पास एक भालू गुफा भी है, जहां भक्त प्रसाद बनाते हैं. रक्षाबंधन के दिन इस इलाके के हर घर से मक्खन आता है और इसे प्रसाद में मिलाकर भगवान को चढ़ाया जाता है.इस मंदिर का नाम बंशीनारायण/वंशीनारायण मंदिर के नाम से जाना जाता है, जो उत्तराखंड के चमोली जिले की उर्गम घाटी पर मौजूद है। मंदिर तक जाने का अनुभव बेहद ही अलग है, क्योंकि यहां तक कई लोग ट्रैकिंग करते हुए पहुंचते हैं। ये मंदिर भी इसलिए खास माना जाता है, क्योंकि इसका अपना अलग ही महत्व है, साथ ही पर्यटक भी इस मंदिर की खासियत की वजह से यहां घूमने के लिए आते हैं। मंदिर की लोकेशनउर्गम घाटी को यहां बुग्याल भी कहते हैं और ये घनी वादियों से घिरी हुई है।
दरअसल, हम बात कर रहे हैं वंशीनारायण मंदिर की जो उत्तराखंड के चमोली जिले में मौजूद है. यहां जाने के लिए चमोली में उर्गम घाटी का रुख करना पड़ता है. ये मंदिर भगवान विष्णु को समर्पित है इसलिए इसका नाम वंशीनारायण मंदिर पुकारा जाता है. स्थानीय लोग मंदिर को वंशीनारायण भी पुकारते हैं. मंदिर भगवान शिव, गणेश और वन देवी की मूर्तियां भी स्थापित की हुई हैं.कहते हैं कि इस मंदिर के कपाट पूरे साल बंद रहते हैं, लेकिन केवल एक दिन यानी रक्षाबंधन के दिन ही खोले जाते हैं। रीती रिवाजों के अनुसार, यहां की महिलाएं और लड़कियां भाईयों को राखी बांधने से पहले भगवान की पूजा करती हैं। कहते हैं कि यहां भगवान श्री कृष्ण और शिव जी की प्रतिमा स्थापित हैं। इस मंदिर से जुड़ी एक प्राचीन कहानी है, विष्णु अपने वामन अवतार से मुक्त होने के बाद सबसे पहले यही प्रकट हुए थे। इसके बाद से ही यहां देव ऋषि नारद भगवान नारायण की पूजा की जाती है। इसी वजह से यहां पर लोगों को सिर्फ एक दिन ही पूजा करने का अधिकार मिला हुआ है।
ऐसा माना जाता है कि मंदिर के कपाट पूरे साल बंद रहते हैं और सिर्फ राखी वाले दिन इसे खोला जाता है. रक्षाबंधन के दिन स्थानिय लोग मंदिर की साफ-सफाई करके पूजा-अर्चना करते हैं. कहा जाता है कि लोकल्स यही पर राखी के त्योहार का जश्न भी मनाते हैं. त्योहार को मनाने से पहले लोग मंदिर में पूजा करते हैं.धारणाओं के अनुसार भगवान विष्णु ने राजा बलि के अहंकार को चूर करने के लिए वामन अवतार लिया. इस बीच राजा बलि ने भगवान विष्णु को अपना द्वारपाल बनाने का वचन मांगा. माता लक्ष्मी उन्हें वापस लाना चाहती थीं और इसलिए उन्हें नारद मुनि ने राजा बलि को रक्षा सूत्र बांधने का उपाय दिया. माता के दुर्गम घाटी में यहां रुकने के बाद से ही रक्षाबंधन का त्योहार मनाए जाने लगा.
इस मंदिर से पौराणिक कथा जुड़ी हुई है. कहते हैं कि भगवान विष्णु के वामन अवतार को यहां मुक्ति मिली थी. मंदिर के पास ही लोग प्रसाद बनाते हैं जिसके लिए हर घर से मक्खन तक आता है. प्रसाद तैयार होने के बाद भगवान विष्णु को चढ़ाया जाता है.ये मंदिर उर्गम गांव से 12 किलोमीटर दूर है. यहां पहुंचने के लिए कुछ किलोमीटर पैदल चलना पड़ता है. ट्रेन से जा रहे हैं तो आपको हरिद्वार ऋषिकेश रेलवे स्टेशन उतरना होगा. वैसे ऋषिकेश से जोशीमठ की दूरी करीब 225 किलोमीटर है. जोशीमठ से घाटी 10 किमी है और यहां से आप उर्गम गांव पहुंच सकते हैं. इसके बाद का रास्ता पैदल तय करना पड़ता है.
उत्तराखंड के चामोली जिले की दुर्गम घाटी पर मौजूद इस मंदिर को बंशीनारायण या वंशीनारायण मंदिर के नाम से जाना जाता है. इस मंदिर तक पहुंचना आसान नहीं है. इसके लिए करीब 12 किलोमीटर पैदल चलना पड़ता है. इसलिए कई लोग यहां ट्रैकिंग करते हुए पहुंचते हैं. यह मंदिर पर्यटकों के लिए आकर्षण का केंद्र है. बंसी नारायण मंदिर में भगवान विष्णु और भगवान शिव के अलावा भगवान गणेश और वन देवी की मूर्तियां भी मौजूद हैं.
मंदिर में श्री कृष्ण की प्रतिमा स्थापित है और इस मंदिर की अंदर से ऊंचाई महज 10 फुट है। यहां के पुजारी राजपूत हैं, जो हर साल रक्षाबंधन पर ही खास पूजा का आयोजन करते हैं। मंदिर के नजदीक एक भालू गुफा भी है, जहां भक्त प्रसाद बनाते हैं। कहते हैं कि इस दिन यहां हर घर से मक्खन आता है और इसे प्रसाद में मिलाकर भगवान को चढ़ाया जाता है।मंदिर में भगवान नारायण और भगवान शिव दोनों की मूर्तियां मौजूद हैं। साथ ही, भगवान गणेश और वन देवी की मूर्तियां इस मंदिर की शोभा बढ़ाती हैं। उत्तराखंड का एकमात्र मंदिर है जो साल में एक बार रक्षा बंधन के दिन खुलता है, अपने में ही एक बेहद खास चीज बनाता है।
उत्तराखंड के चमोली जिले में उर्गम घाटी में स्थित बंसी नारायण मंदिर तक केवल पैदल ही पहुंचा जा सकता है।पहले आपको जोशीमठ तक जाना होगा जो देहरादून से लगभग 293 किमी की दूरी पर है।जोशीमठ से, हेलंग की ओर, जो 22 किमी दूर है, और अंत में देवग्राम की ओर, हेलंग से 15 किमी दूर है।बंसी नारायण मंदिर का ट्रेक देवग्राम से शुरू होता है और लगभग 12 से 15 किमी लंबा होता है।