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‘पिज्जा’ खाने से दूर हो सकती है ये गंभीर बीमारी-जानें


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नई दिल्लीः पिज्जा को एक अनहेल्दी फास्ट फूड माना जाता है. कहा जाता है कि इसे खाने से वजन बढ़ने का खतरा तो रहता ही है, साथ ही साथ मोटापा, डायबिटीज, हार्ट अटैक और हाई ब्लड प्रेशर जैसी बीमारियां भी हो सकती हैं. लेकिन अगर हम आपसे कहें कि पिज्जा खाने से एक गंभीर बीमारी का जोखिम कम हो सकता है तो आपका रिएक्शन क्या होगा? बेशक यह सुनकर आप चौंक जाएंगे. लेकिन हम मजाक नहीं कर रहे हैं. एक स्टडी में यह दावा किया गया है कि पिज्जा खाने से रूमेटाइड अर्थराइटिस या रूमेटाइड गठिया (Rheumatoid Arthritis) की तकलीफों से आपको आराम मिल सकता है.

इस स्टडी में कहा गया है कि अगर पिज्जा को फ्रेश सामग्री से तैयार किया जाए तो ये रुमेटीइड गठिया से जुड़ी कुछ दिक्कतों को कम कर सकता है. एनएचएस के मुताबिक, रूमेटाइड अर्थराइटिस एक ऑटोइम्यून डिजीज है. यह बीमारी किसी को अपनी चपेट में तब लेती है, जब इम्यून सिस्टम गलती से हेल्दी सेल्स पर अटैक कर देता है, जिसकी वजह से जलन और सूजन होने लगती है. रूमेटाइड गठिया में लोग जोड़ों में तेज दर्द का सामना करते हैं. इस बीमारी का फिलहाल कोई इलाज नहीं है. हालांकि जल्दी पता लगाकर और अच्छा इलाज लेकर इस बीमारी से जुड़े जोखिमों को कम किया जा सकता है.

अध्ययन के अनुसार जिन लोगों ने हर हफ्ते एक से ज्यादा बार आधा पिज्जा खाया, उन्होंने गठिया के दर्द से राहत होने की बात कही। रूमेटाइड अर्थराइटिस वाले व्यक्तियों ने सामान मात्रा में पिज्जा का सेवन किया, इन लोगों ने भी दर्द में 80 फीसदी की कमी होने की बात कही। रूमेटीइड आर्थराइटिस से विश्व में हर वर्ष लाखों लोग प्रभावित होते हैं। इसके इलाज के लिए स्टेरॉयड व फिजियोथेरेपी जैसी दवाओं का इस्तेमाल किया जाता है। एनएचएस इस बीमारी से पीड़ित व्यक्तियों को एंटी-इंफ्लेमेटरी वाली मेडिटेरियन स्टाइल डाइट लेने की सलाह देता है जिसमें फल, सब्जियां, नट्स, फलियां, अनाज, बीन्स, जैतून का तेल और मछली आदि शामिल हैं.

इटली के साइंटिस्ट की मानें तो हफ्ते में एक बार आधा पिज्जा खाने से रूमेटाइड अर्थराइटिस की वजह से होने वाले दर्द को 80 प्रतिशत तक कम किया जा सकता है. ऐसा इसलिए क्योंकि पिज्जा में डाली जाने वाली कुछ सामग्रियों में सूजन-रोधी गुण होते हैं. पिज्जा बनाने में इस्तेमाल किया जाने वाला मोज़ेरेला चीज़ और जैतून का तेल सबसे ज्यादा लाभकारी माना गया. ‘न्यूट्रिएंट्स’ में पब्लिश इस स्टडी में 18 से 65 साल के 365 लोगों को शामिल किया गया था, जिन्हें रूमेटाइड अर्थराइटिस की बीमारी थी.

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