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रायबरेली लोकसभा : क्या रायबरेली में आमने -सामने होंगे प्रियंका और वरुण गांधी?,जानिए क्‍या चल रहीं अटकलें


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नई दिल्लीः लोकसभा चुनाव को लेकर जब टिकटों का ऐलान हो रहा था और पीलीभीत सीट से वरुण गांधी को टिकट नहीं मिला था तो सब हैरान रह गए थे। इसके बाद कई तरह की अटकलें चलीं कि वरुण गांधी सपा या कांग्रेस के टिकट पर चुनावी मैदान में उतर सकते हैं। लेकिन, बाद में खुद वरुण गांधी ने एक पत्र लिखकर स्पष्ट किया था कि वह न चुनाव लड़ेंगे न पार्टी बदलेंगे। लेकिन, अब इस मामले में नई जानकारी सामने आई है।

वरुण गांधी का पीलीभीत से टिकट कट्टा


सांसद वरुण गांधी और उनकी मां मेनका गांधी के पीलीभीत से 30 साल पुराने रिश्ते पर इस बार ब्रेक लग गया। भाजपा ने मेनका गांधी को तो सुल्तानपुर से टिकट दे दिया, लेकिन वरुण गांधी का पीलीभीत से टिकट काट दिया। वरुण गांधी पहली बार 2009 और फिर 2019 में पीलीभीत से सांसद चुने गए। वहीं, 2014 का लोकसभा चुनाव वे सुल्तानपुर से जीते थे।

भाजपा ने दिया ये ऑफर, वरुण ने ठुकराया

सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार भाजपा ने पीलीभीत लोकसभा सीट से वरुण का टिकट काटने के बाद उन्हें रायबरेली सीट से चुनाव लड़ने का ऑफर दिया था। इस बारे में भाजपा के एक वरिष्ठ नेता ने वरुण गांधी से बात भी की थी। लेकिन वरुण ने ऐसा करने से साफ मना कर दिया था। सूत्रों के अनुसार वरुण ने कहा था कि चाहे कुछ भी हो जाए मैं अपनी बहन के खिलाफ चुनाव नहीं लड़ूंगा। चर्चा है कि रायबरेली से कांग्रेस प्रियंका गांधी को प्रत्याशी बना सकती है।रायबरेली सीट कांग्रेस का गढ़ मानी जाती है। इसका अंदाजा इस बात से लगा सकते हैं कि 2019 में कांग्रेस ने यूपी में एकमात्र सीट रायबरेली ही जीती थी। भाजपा नेतृत्व इस बार रायबरेली सीट को लेकर अभेद्य चक्रव्यूह रचना चाहता है। पार्टी ने गोपनीय सर्वे कराया, जिसमें वरुण गांधी का नाम सबसे आगे उभर कर आया। यही वजह है कि भाजपा के शीर्ष नेतृत्व ने रायबरेली से वरुण गांधी को उतरने के लिए तैयार करने के प्रयास तेज कर दिए हैं।उच्च पदस्थ राजनीतिक सूत्रों के मुताबिक प्रियंका गांधी और वरुण गांधी के रिश्ते अच्छे हैं, इसलिए वरुण गांधी रायबरेली सीट को लेकर कोई फैसला लेने से पहले अपने परिवार के अन्य सदस्यों के साथ राय-मश्विरा कर लेना चाहते हैं। माना जा रहा है कि वे एक-दो दिन में स्थिति स्पष्ट कर देंगे।

वरुण को लेकर गर्म हो गया था अफवाहों का बाजार

बता दें कि पीलीभीत सीट से टिकट कटने के बाद चुनावी गलियारों में यह चर्चा खूब चली थी कि वरुण गांधी भाजपा से नाता तोड़ लेंगे और सपा, कांग्रेस के टिकट पर अथवा निर्दलीय चुनाव लड़ेंगे। लेकिन बाद में उन्होंने खुद साफ किया था कि वह खुद चुनाव नहीं लड़ेंगे और अपनी मां मेनका गांधी के लिए सुल्तानपुर में चुनाव प्रचार करेंगे। उल्लेखनीय है कि इस लोकसभा चुनाव में भाजपा ने पीलीभीत सीट का टिकट कांग्रेस से भाजपा में आए जितिन प्रसाद को दिया है।

दो दिन में स्थिति साफ

वैसे, अपनी ही चचेरी बहन प्रियंका गांधी के सामने अगर वरुण गांधी उन्हें हराने के लिए उतरते हैं तो इस सीट का चुनाव काफी दिलचस्प हो जाएगा. हालांकि, इस बारे में निर्णय लेने के लिए वरुण गांधी ने शीर्ष नेतृत्व से थोड़ा समय मांगा है. यह फैसला वरुण के हाथ में ही है कि रायबरेली सीट पर उतरते हैं या नहीं. उच्च पदस्थ राजनीतिक सूत्रों की माने तो प्रियंका गांधी व वरुण गांधी के आपसी रिश्ते अच्छे हैं, ऐसे में रायबरेली सीट पर उतरने को लेकर वरुण गांधी अपने परिवार के अन्य सदस्यों के साथ विचार करना चाहते हैं. एक से दो दिन में स्थिति साफ होने की उम्मीद जताई झा रही है.संजय गांधी की मौत (23 जून, 1980) के बाद उनकी पत्नी मेनका गांधी अपने पति के संसदीय क्षेत्र अमेठी से चुनाव लड़ना चाहती थीं। लेकिन तब उनकी उम्र 25 वर्ष नहीं थी, जो भारत में चुनाव लड़ने की न्यूनतम आयु है।ऐसे में मेनका चाहती थीं कि उनकी सास और देश की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी संविधान में संशोधन कर चुनाव लड़ने की न्यूनतम आयु को ही कम कर दें। हालांकि इंदिरा गांधी ने ऐसा नहीं किया और उपचुनाव में राजीव गांधी को अमेठी से उतार दिया। वह सांसद बन गए।

40 साल पुरानी कहानी क्या फिर दोहराएगी

40 साल पहले भी यूपी की एक ही सीट पर दो गांधी आमने सामने थे. दरअसल, संजय के करीबी व विश्वासपात्र अकबर अहमद के साथ मिलकर मेनका ने राष्ट्रीय संजय मंच की स्थापना की. साल 1984 में राजीव गांधी के खिलाफ आम चुनाव अमेठी से ही मेनका ने लड़ा. हालांकि, 31 अक्टूबर, 1984 के बाद चुनाव का माहौल पूर्ण रूप से बदल गया. जब इंदिरा गांधी की हत्या उनके ही सिख अंगरक्षक द्वारा की गई. राजीव गांधी अंतरिम प्रधानमंत्री बना दिए गए औक चुनाव में जनता की भावना उनके पक्ष में हो गई. इस तरह माहौल राजीव गांधी की ओर मुड़ गया. घटना से पहले राजीव खेमे को नहीं लगता था कि वो मेनका गांधी को हरा पाएंगे क्योंकि जमीनी स्तर पर मेनका की अच्छी पकड़ थी पर घटना के बाद सबकुछ बदल गया और कांग्रेस ने शानदार जीत हालिस की, पार्टी को 514 में से 404 सीटें मिली. अमेठी में उन्होंने मेनका गांधी को बड़ी हार दी. 3.14 लाख से अधिक वोटों से हारने के बाद मेनका गांधी की जमानत जब्त हुई. इसके बाद अमेठी से उन्होंने चुनाव नहीं लड़ा

सुल्तानपुर लोकसभा सीट

मौजूदा समय की बात करें तो सांसद वरुण गांधी और उनकी मां और बीजेपी की दिग्गज नेता मेनका गांधी के पीलीभीत से चले आ रहे 30 साल पुराने रिश्ते पर इस चुनाव में ब्रेक लग गया. बीजेपी ने मेनका गांधी को तो सुल्तानपुर से उतारा है और वरुण गांधी का टिकट पीलीभीत से काटा है. पहली बार 2009 और फिर 2019 में वरुण गांधी पीलीभीत से सांसद हुए थे. साल 2014 में उनकी जीत सुल्तानपुर लोकसभा सीट से हुई थी.

2019 में एकमात्र सीट रायबरेली पर जीत

अगर रायबरेली लोकसभा सीट की बात करें तो इस सीट को हमेशा से कांग्रेस का गढ़ माना जाता रहा है. इसे और पुख्ता करने के लिए इस बात पर गौर कर सकते हैं कि साल कांग्रेस ने यूपी कोई और नहीं बल्कि रायबरेली ही थी. बीजेपी नेतृत्व इस दफा रायबरेली सीट को जीतने के लिए एक अभेद्य चक्रव्यूह का निर्माण करना चाहती है. पार्टी के गोपनीय सर्वे पर ध्यान दें तो इसमें वरुण गांधी का नाम सबसे ऊपर है. जिसके कारण बीजेपी के शीर्ष नेतृत्व ने इस सीट से वरुण गांधी को उतरने को लेकर तैयारियां करनी शुरू कर दी है.

कांग्रेस का गढ़ माना जाता है रायबरेली

चर्चा है कि रायबरेली लोकसभा सीट पर बीजेपी ने सर्वे करवाया था जिसमें प्रत्‍याशी के रूप में वरुण गांधी का नाम सबसे आगे उभर कर आया। यही वजह है कि बीजेपी के शीर्ष नेतृत्‍व ने रायबरेली से वरुण गांधी को उतारने के लिए तैयार करने के प्रयास तेज कर दिए हैं। रायबरेली सीट कांग्रेस का गढ़ है। 2019 में सिर्फ यही एक सीट कांग्रेस के खाते में आई थी। सोनिया गांधी यहां से लगातार सांसद चुनी जाती रही हैं। इस बार सोनिया राजस्‍थान के कोटे से राज्‍यसभा चली गई हैं।

वरुण गांधी ने अपने क्षेत्र की जनता को लिखी भावुक चिट्ठी

गौरतलब है कि पीलीभीत से टिकट कटने के बाद वरुण गांधी ने अपने क्षेत्र की जनता को भावुक चिट्ठी लिखा थी। इसमें उन्‍होंने लिखा था कि वह राजनीति में आम आदमी की आवाज उठाते रहेंगे चाहे इसकी कोई भी कीमत उठानी पड़े। वरुण ने लिखा था- ‘मैं खुद को सौभाग्‍यशाली मानता हूं कि मुझे सालों तक पीलीभीत की महान जना की सेवा करने का मौका मिला। महज एक सांसद के तौर पर न हीं बल्कि एक व्‍यक्ति के तौर पर भी मेरी परवरिश और मेरे विकास में पीलीभीत से मिले आदर्श और सरलता का बहुत बड़ा योगदान है। आपका प्रतिनिधि होना मेरे जीवन का सबसे बड़ा सम्‍मान रहा है और मैंने हमेशा पूरी क्षमता के साथ आपके हित की आवाज उठाई है।’

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