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26 जनवरी के दिन गणतंत्र दिवस क्यों मनाया जाता है?जानें इतिहास और महत्व

नई दिल्लीः भारत का संविधान 26 जनवरी 1950 को लागू हुआ था। इसलिए हर साल 26 जनवरी को भारतीय गणतंत्र दिवस मनाया जाता है। 26 जनवरी 2024 को भारत अपना 75वां गणतंत्र दिवस मनाने जा रहा है। 75वीं वर्षगांठ होने की वजह से यह दिन हम सभी भारतीयों के लिए बहुत ही खास है लेकिन क्या है इस दिन का इतिहास। आइए जानते हैं।

भारतीय गणतंत्र दिवस की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि

भारत के गणतंत्र दिवस का संबंध हमारी स्वतंत्रता से जुड़ा हुआ है। भारत को 15 अगस्त 1947 को अंग्रेजों की गुलामी से आजादी मिली थी, लेकिन तब भारत का अपना कोई संविधान नहीं हुआ करता था। उस समय यहां कानून और शासन प्रणाली 1935 के भारत सरकार अधिनियम पर चल रही थी। 29 अगस्त 1947 को भारत में एक स्थायी संविधान का खांका तैयार करने के लिए एक प्रारुप समिति के गठन के लिए संविधान सभा में प्रस्ताव रखा गया था। जिसमें डॉ. बी.आर. अंबेडकर की अध्यक्षता में प्रारुप समिति का गठन किया गया। समिति ने 4 नवंबर 1948 को संविधान का अंतिम प्रारूप संविधान सभा में प्रस्तुत किया। फिर विचार-विमर्श और कुछ संशोधनों के बाद संविधान के प्रारुप को 26 नवंबर 1949 को संविधान सभा द्वारा पारित किया गया। संविधान के कुछ प्रावधान 26 नवंबर 1949 को ही लागू हो गए थे। हालांकि, संविधान के मुख्य भाग 26 जनवरी 1950 को लागू हुए। इस दिन से भारत लोकतांत्रिक गणराज्य बना।

भारत में पहली बार गणतंत्र दिवस कहां मनाया गया था?

भारत में पहली बार गणतंत्र दिवस 26 जनवरी 1950 को दिल्ली के पुराने किले के सामने स्थित इरविन स्टेडियम में मनाया गया था। आज इस जगह पर दिल्ली का चिड़ियाघर है। इरविन स्टेडियम में गणतंत्र दिवस की पहली परेड भी निकाली गई थी। कहते हैं कि इस परेड में लगभग 3 हजार सेना के जवानों ने और तकरीबन 100 से ज्यादा एयरक्राफ्ट ने हिस्सा लिया था।

इतिहास और महत्व

26 जनवरी 1950 के अवसर पर डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने राष्ट्रीय ध्वज फहराया था। जिसके बाद 26 जनवरी को भारत के गणतंत्र दिवस के रूप में मान्यता दी गई। 26 जनवरी को खासतौर से संविधान की ‘प्रारंभ तिथि’ के रूप में चुना गया था क्योंकि इसी दिन 1930 में कांग्रेस के लाहौर सत्र (दिसंबर 1929) के प्रस्ताव के बाद पूर्ण स्वराज दिवस मनाया गया था।गणतंत्र दिवस 26 जनवरी, 1950 को भारत के संविधान को अपनाने की याद दिलाता है। भारत को 1947 में ब्रिटिश राज से आजादी मिली, लेकिन 26 जनवरी, 1950 तक भारत का संविधान लागू नहीं हुआ था। संविधान सभा का पहला सत्र 9 दिसंबर, 1946 को और आखिरी सत्र 26 नवंबर, 1949 को हुआ और फिर एक साल बाद संविधान को अपनाया गया। डॉ. बीआर अंबेडकर ने संविधान की मसौदा समिति का नेतृत्व किया और इस दिन भारत संविधान दिवस भी मनाता है।गणतंत्र दिवस स्वतंत्र भारत की भावना का स्मरण कराता है क्योंकि इसी दिन 1930 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने औपनिवेशिक शासन से पूर्ण स्वराज की घोषणा की थी। गणतंत्र दिवस भारतीय नागरिकों की लोकतांत्रिक तरीके से अपनी सरकार चुनने की शक्ति का भी स्मरण कराता है, इसलिए देश इसे भारतीय संविधान की स्थापना के उपलक्ष्य में राष्ट्रीय अवकाश के रूप में मनाता है।

कैसे होता है सेलिब्रेशन?

देश में गणतंत्र दिवस समारोह काफी उत्साह के साथ मनाया जाता है। इस दिन राष्ट्रपति राष्ट्रीय ध्वज फहराते हैं। इसके अतिरिक्त भारत के राष्ट्रपति देश के योग्य नागरिकों को पद्म पुरस्कार वितरित करते हैं। साथ ही बहादुर सैनिकों को परमवीर चक्र, अशोक चक्र और वीर चक्र से सम्मानित किया जाता है। गणतंत्र दिवस परेड का लाइव प्रसारण और वेबकास्ट भी हर साल किया जाता है। ताकि लोग आसानी से परेड को देख सकें।

जानें परेड का समय और थीम

गणतंत्र दिवस 2024 परेड की थीम ‘विकसित भारत’ और ‘भारत – लोकतंत्र की मातृका’ है, जो लोकतंत्र के पोषक के रूप में भारत की भूमिका पर जोर देती है। शुक्रवार 26 जनवरी को सुबह 10:30 बजे नई दिल्ली के कर्तव्य पथ पर परेड होगी। इस वर्ष मुख्य अतिथि फ्रांसीसी राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रॉन होंगे और इसलिए फ्रांस से परेड में 95 सदस्यीय मार्चिंग दल और 33 सदस्यीय बैंड दल भी शामिल होंगे।

26 जनवरी तारीख क्यों चुनी गई?

15 अगस्त, 1947 को भारत को स्वतंत्र राष्ट्र का दर्जा मिल गया था. हालांकि, लगभग तीन साल बाद 26 जनवरी, 1950 को संविधान को अपनाने के साथ भारत ने खुद को एक संप्रभु, लोकतांत्रिक और गणतंत्र राज्य घोषित किया. इसी दिन को तब से गणतंत्र दिवस के रूप में मनाया जाता है. 26 जनवरी की तारीख को चुनने के पीछे एक किस्सा बताया जाता है.भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने दिसंबर 1929 में लाहौर अधिवेशन में ऐतिहासिक ‘पूर्ण स्वराज’ (पूर्ण स्वतंत्रता) का प्रस्ताव पारित किया था. इसी कड़ी में 26 जनवरी 1930 की तारीख को पहली बार स्वतंत्रता दिवस मनाया गया. आजादी मिलने के बाद 15 अगस्त 1947 को अधिकारिक रूप से स्वतंत्रता दिवस घोषित किया गया. 26 जनवरी की तारीख के महत्व को बरकरार रखने के लिए इसी दिन साल 1950 में संविधान लागू किया गया, जिसके बाद 26 जनवरी को गणतंत्र दिवस घोषित किया गया.

दो महीने देरी से क्यों लागू हुआ संविधान?

देश का संविधान बनाने के लिए संविधान सभा का गठन हुआ था. इसमें कुल 22 समितियां थी. इनमें प्रारूप समिति (ड्राफ्टिंग कमेटी) सबसे प्रमुख समिति थी, जिसका काम संपूर्ण संविधान का निर्माण करना था. प्रारूप समिति के अध्यक्ष डॉ. भीमराव आंबेडकर थे. दो साल, 11 महीने और 18 दिन की मेहनत के बाद दुनिया का सबसे बड़ा लिखित संविधान तैयार किया गया. डॉ. आंबेडकर ने संविधान सभा के अध्यक्ष डॉ. राजेंद्र प्रसाद को 26 नवंबर 1949 को भारतीय संविधान सौंप दिया. लेकिन इसे लागू करने के लिए दो महीने की देरी की गई. तर्क दिया जाता है कि 26 जनवरी के ‘पूर्ण स्वराज’ के ऐलान के महत्व को कायम रखने के लिए संविधान को दो महीने बाद लागू किया गया. इस तरह 26 नवंबर 1949 की जगह 26 जनवरी 1950 को पहला गणतंत्र दिवस मनाया गया. नागरिकों के बीच संवैधानिक मूल्यों को बढ़ावा देने के लिए 2015 से सरकार ने 26 नवंबर को संविधान दिवस मनाने का फैसला किया है.

कहां और कौन फहराता है झंडा?

1950 में भारत को संप्रभु लोकतांत्रिक गणराज्य घोषित किए जाने के बाद डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने गवर्नमेंट हाउस के दरबार हॉल में भारत के पहले राष्ट्रपति के रूप में शपथ ली. इसके बाद उनके काफिले ने इरविन स्टेडियम तक पांच मील का रास्ता तय किया, जहां उन्होंने राष्ट्रीय ध्वज फहराया. राष्ट्रपति ने झंडा फहराकर परेड की सलामी ली. इस दिन को बाद में राष्ट्रीय अवकाश घोषित किया गया. संविधान को देखें तो राष्ट्रपति भारत सरकार का संवैधानिक प्रमुख होता है. इस वजह से गणतंत्र दिवस पर भारत के राष्ट्रपति द्वारा राजपथ पर तिरंगा फहराया जाता है.

झंडा फहराने में होता है फर्क?

26 जनवरी और 15 अगस्त, दोनों ही दिन भारतीय तिरंगे को फहराया जाता है. लेकिन इनके तरीके में एक बड़ा अंतर होता है. 15 अगस्त को जहां ध्वजारोहण (Flag Hoisting) किया जाता है, वहीं 26 जनवरी को झंडा फहराया (Flag Unfurling) जाता है. ये दो अलग-अलग बातें हैं और इनकी प्रक्रिया भी अलग होती हैं.15 अगस्त को तिरंगा ऊपर खींचा जाता है और इसके बाद फहराया जाता है. इसे ध्वजारोहण कहते हैं. वहीं, गणतंत्र दिवस में राष्ट्रीय ध्वज ऊपर बंधा रहता है. उसे केवल फहराया जाता है. इसे झंडा फहराना कहते हैं.

क्या होता है पूरे दिन का शेड्यूल?

कार्यक्रम की शुरुआत भारत के प्रधानमंत्री द्वारा देश के शहीदों को पुष्पांजलि अर्पित करने से होती है. इसके बाद, प्रधानमंत्री और अन्य गणमान्य व्यक्ति परेड देखने के लिए कर्तव्य पथ पर पहुंचते हैं. परंपरा के अनुसार, भारत का राष्ट्रपति राष्ट्रीय ध्वज फहराता है और उसके बाद 21 तोपों की सलामी के साथ राष्ट्रगान होता है. परेड की शुरुआत राष्ट्रपति की सलामी लेने के साथ होती है. गणतंत्र दिवस की परेड देश की सैन्य शक्ति और सांस्कृतिक विविधता का एक अनूठा मिश्रण होती है. सशस्त्र बल के एडवांस्ड हथियारों के प्रदर्शन के अलावा विभन्न राज्यों और मंत्रालयों की झांकियां निकाली जाती हैं. इसके अलावा फ्लाई पास्ट में भारतीय वायु सेना के विमानों और हेलीकॉप्टरों द्वारा एक सांसों को थाम देने वाला एयर शो दिखाया जाता है.

गणतंत्र दिवस समारोह के लिए क्यों हुआ कर्तव्य पथ का चुनाव?

कर्तव्य पथ (पूर्व में राजपथ) भारत के स्वतंत्रता संग्राम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। इस जगह ने आजादी के लिए भारत के संघर्ष में अहम किरदार अदा किया था। इस जगह को पहले किंग्सवे के नाम से जाना जाता था। यह इलाका राष्ट्रीय राजधानी नई दिल्ली के दिल माने जाने वाला ‘केंद्र’ क्षेत्र है। भारत की आजादी के बाद ही इसे किंग्सवे से बदलकर राजपथ कर दिया गया। आजादी के दिन से लेकर पिछले सात दशकों में हर साल यहां गणतंत्र दिवस समारोह आयोजित की गई है।

देश में कहां हुई थी सबसे पहली बार परेड?

पहली गणतंत्र दिवस परेड इरविन स्टेडियम में आयोजित की गई थी, यह इलाका दिल्ली के पुराने किले के सामने था जहां पहली गणतंत्र दिवस परेड आयोजित किया गया था। इस जगह को अब मेजर ध्यानचंद नेशनल स्टेडियम कहा जाता है। उस दौरान स्टेडियम की चारदीवारी नहीं थी। खुले मैदान के सामने स्थित पुराना किला साफ दिखाई देता था।

आजादी के बाद कहां-कहां हुआ परेड का आयोजन

इरविन स्टेडियम में पहली बार गणतंत्र दिवस के आयोजन के बाद भी 1955 तक अलग-अलग जगहों पर इस समारोह का आयोजन किया गया। इसके बाद 1954 तक गणतंत्र दिवस समारोह कभी स्टेडियम, किंग्सवे (राजपथ), लालकिला तो कभी रामलीला मैदान में मनाया गया। राजपथ पर इस परंपरा की नियमित शुरूआत वर्ष 1955 से हुई। तब से आज तक गणतंत्र दिवस समारोह के दौरान परेड की शुरुआत रायसिना हिल्स से होती है और वह राजपथ, इंडिया गेट से गुजरती हुई लालकिला तक जाती है।

कब किया गया राजपथ का नाम कर्त्तव्य पथ?

साल 2022 के सितंबर महीने में राजपथ का नाम बदला गया। इस जगह का नाम बदलकर ‘कर्तव्य पथ’ किया गया। प्रधानमंत्री मोदी द्वारा पुन: डिज़ाइन किए गए सेंट्रल विस्टा एवेन्यू के हिस्से के रूप में इसका आधिकारिक उद्घाटन किया गया। सरकार ने इस बदलाव पर कहा था कि यह नामकरण शक्ति के प्रतीक के रूप में देखे जाने वाले पूर्व राजपथ से नए कर्त्तव्य पथ में परिवर्तन का प्रतीक है, जो सार्वजनिक स्वामित्व और सशक्तिकरण के प्रतिनिधित्व के रूप में कार्य करता है।

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