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टेक्नोलॉजी

वैज्ञानिकों ने इंसानी दिमाग से बनाया कम्प्यूटर,क्या दुनिया की ऊर्जा की समस्या का निकल सकेगा हल?

नई दिल्लीः आज के टाइम में क्या पॉसिबल नहीं है? जब से आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस आया है दुनिया को सिर्फ यही डर सता रहा है कि ये हमारी जगह ले लेगा. लेकिन अब हम जो आपको बताने जा रहे हैं वो वाकई चौंकाने वाली चीज है.टेक्नोलॉजी के इस एडवांस दौर में स्वीडिश वैज्ञानिकों ने ऐसा कम्प्यूटर बनाने का दावा किया है जो कि एक जीवित कम्प्यूटर है और ह्यूमन ब्रेन टिशू से बनाया गया है. अब आप सोच रहे होंगे कि ऐसा कैसे पॉसिबल हो सकता है. आइए हम आपको बताते हैं.

इंसान के दिमाग दुनिया का पहला लिविंग कंप्यूटर बनाया

कई वैज्ञानिक खोज कल्पना से भी परे लगती हैं. ऐसी ही एक खोज में साइंटिस्ट ने इंसान के दिमाग की टिशू से ही दुनिया का पहला लिविंग कंप्यूटर बनाने का दावा किया है. इसकी सबसे खास बात यह है कि ये बिलकुल कंप्यूटर चिप की तरह सूचनाओं का आदान प्रदान करते हैं, लेकिन उसके लिए 10 लाख गुना कम ऊर्जा का उपयोग करते हैं. शोधकर्ताओं का दावा है कि अगर दुनिया में इस तरह से कंप्यूटिंग का इस्तेमाल होने लगे तो हमारा ऊर्जा संकट हल हो जाएगा. तकनीक को लेकर दुनिया भर की कंपनियां और विश्वविद्यालय पड़ताल करने लगे हैं.

ऊर्जा संकट हल हो जाएगा

वैज्ञानिकों के मुताबिक, इस कम्प्यूटर की सबसे खास बात यह है कि ये कम्प्यूटर चिप की तरह सूचनाओं को आदान-प्रदान करता है. अगर दुनिया में इस तरह से कम्प्यूटिंग का इस्तेमाल किया जाएगा तो ऊर्जा संकट हल हो जाएगा. अब इस तकनीक को लेकर दुनियाभर की कंपनियां और यूनिवर्सिटीज पड़ताल में लग गई हैं.

दस लाख गुना कम ऊर्जा का उपयोग

यह लैब में तैयार की गईं दिमागी कोशिकाओं जैसे 16 ऑर्गेनॉइड्स से बना है जो आपस में एक दूसरे को सूचना भेजते हैं. ये दिमाग की तरह अपने न्यूरॉन्स से संकेत भेजते हैं और सर्किट की तरह काम करते हैं. खास बात यह है कि वे आज के डिजिटल प्रोसेस की तुलना में दस लाख गुना कम ऊर्जा का उपयोग करते हैं.

स्वीडन की कंपनी के वैज्ञानिकों ने किया दावा

वैज्ञानिक मानते हैं कि जिन कामों के लिए हमारा दिमाग 10 से 20 वाट की ऊर्जा खाता है, उसी के लिए अभी के कम्प्यूटर (21 मेगावाट) 2.1 करोड़ वाट ऊर्जा का इस्तेमाल करते हैं. यह अनोखा आविष्कार बायोलॉजिकल न्यूरल नेटवर्क के समाधान बनाने वाली स्वीडन की कंपनी फाइनल स्पार्क के वैज्ञानिकों ने किया है.

कैसे काम करता है ‘लिविंग’ कम्प्यूटर?

इस लिविंग कम्प्यूटर को बनाने का दावा स्वीडन की कंपनी फाइनल स्पार्क के वैज्ञानिकों ने किया है. यह कम्प्यूटर लैब में तैयार की गई दिमागी कोशिकाओं जैसे 16 ऑर्गनॉइड्स से बना है जो कि आपस में एक दूसरे को सूचना ट्रांसफर करते हैं. इंसानी दिमाग की तरह ये अपने न्यूरॉन्स से कोई संकेत भेजते हैं. इसकी सबसे बड़ी खासियत यह है कि डिजिटल प्रोसेस की तुलना में ये 10 लाख गुना कम एनर्जी का यूज करते हैं.

कोशिकाएं या सेल्स 100 दिन तक जिंदा रहती हैं

डेलीमेल के मुताबिक कंपनी के सीईऐओ डॉ फ्रेड जॉर्डन ने बताया कि यह विचार विज्ञान फंतासी जैसा लगता है, लेकिन अभी तक इस पर अधिक शोध नहीं हुआ है. ऑर्गनोइड्स स्टेम से बने होते हैं जो खुद की ही देखभाल कर सकते हैं. 0.5 मिमी मोटे इन मिनी ब्रेन को करीब दस हजार जिंदा न्यूरॉन्स से बनाया गया है. इस जीवित कंप्यूटर में रहने वाली कोशिकाएं या सेल्स 100 दिन तक जिंदा रहती हैं, लेकिन उनकी जगह नए ऑर्गनॉइड ले सकते हैं.

जिंदा न्यूरॉन्स से बना है कम्प्यूटर

इसके साथ ही वैज्ञानिकों ने ये भी बताया कि जिन कामों के लिए हमारा दिमाग 10 से 20 वाट की ऊर्जा खाता है, उसके लिए अभी के कम्प्यूटर (21 मेगावाट) 2.1 करोड़ वाट ऊर्जा का इस्तेमाल करते हैं. 1 मेगावाट 10 लाख वाट के बराबर होता है. इस तरह 21 मेगावाट 2.1 करोड़ वाट के बराबर होगा. कहा जा सकता है कि ये इंसानी दिमाग से 1 हजार गुना ज्यादा है.

वेटवेयर दिया नाम

शोधकर्ताओं ने इसे वेटवेयर नाम भी दे दिया है, क्योंकि यह असल इंसानी दिमाग की तरह काम करता है. जहां दुनिया अभी अक्षय ऊर्जा के स्रोत खोज रही है और भविष्य में ऊर्जा संकट की आहट को साफ महसूस कर रही है. कम ऊर्जा खाने वाले कम्प्यूटर की मांग बहुत ज्यादा हो जाएगी. दुनिया की कई कंपनियां और विश्वविद्यालय फाइनल स्पार्क के संपर्क में है.

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