कहीं फूलो से तो कहीं पत्थर मार के, कुछ इस तरह मनाई जाती है यहां होली
राजस्थान: फाल्गुन की बयार के साथ फिजा में रंग और अबीर गुलाल घुल चुका है। लोगों पर होली का रंग चढ़ चुका है। रंगों से होली खेला जाना आम बात है लेकिन राजस्थान में होली के त्योहार के कई रूप देखने को मिलते हैं। कहीं रंगों के साथ फूलों से होली खेली जाती हैं तो कहीं खूनी होली खेलकर परंपरा का निर्वहन किया जाता है। आइए जानते हैं कि राजस्थानी रंगों के अलावा कैसे होली के त्योहार को मनाते हैं।
राजस्थान में होली की अलग-अलग परंपरा है। जिसे लोग वर्षों से निभाते आ रहे हैं। कई जगह होली की परंपरा इतनी खतरनाक है कि लोगों को अस्पताल में भर्ती करवाया जाता है।
सबसे पहले डूंगरपुर की होली की बात करते हैं। वागड़वासी पर होली का खुमार एक महीने तक रहता है। होली के तहत जिले के कोकापुर गांव में लोग होलिका के दहकते अंगारों पर नंगे पांव चलने की परंपरा निभाते हैं। मान्यता है कि अंगारों पर चलने से घर में विपदा नहीं आती।
डूंगरपुर के ही भीलूडा में खूनी होली खेली जाती है। पिछले 200 साल से धुलंडी पर लोग खतरनाक पत्थरमार होली खेलते आ रहे हैं। डूंगरपुरवासी रंगों के स्थान पर पत्थर बरसा कर खून बहाने को शगुन मानते हैं। भारी संख्या में लोग स्थानीय रघुनाथ मंदिर परिसर में एकत्रित होते हैं। फिर दो टोलियों में बंटकर एक दूसरे पर पत्थर बरसाना शुरू कर देते हैं। इसमें कुछ लोगों के पास ढ़ाले भी होती हैं लेकिन हर साल कई लोग इस खेल में गंभीर रूप से घायल हो जाते हैं और उन्हें अस्पताल में भर्ती कराया जाता है।
मथुरा से समीप होने के कारण भरतपुर और करौली के नंदगाव में लोग लठमार होली खेलते हैं। पुरुष महिलाओं पर रंग बरसाते हैं तो राधा रूपी महिलाएं उनपर लाठियों से वार करती हैं।
जयपुर के गोविंददेव मंदिर में होली का त्योहार बहुत धूमधाम से मनाया जाता है। यहां गुलाब और अन्य फूलों से होली खेली जाती है। इस दौरान राधा-कृष्ण के प्रेमलीला का मनोहर मंचन भी होता है। इस बार गोविंददेव मंदिर में 200 किलो फूलों से होली की शुरुआत हुई।
राजस्थान के शेखावती में होली पर चंग और महरी नृत्य करने की परंपरा है। पुरुष चंग को एक हाथ से थामकर और दूसरे हाथ से थपकियां बजाकर सामूहिक नृत्य करते हैं। भाग लेने वाले कुछ कलाकार महिला का वेश धारण करते हैं, जिन्हें ‘महरी’ कहा जाता है। इन्हें देखने के लिए भारी भीड़ जुटती है।
श्रीगंगानगर और हनुमानगढ़ में कोड़ामार होली खेलने की परंपरा है। ढ़ोल की थाप पर लोगों की टोली रंग-गुलाल उड़ाते हुए निकलती। वहीं महिलाओं की टोली कपड़े को कोड़े की तरह लपेट कर रंग में भिगोकर पुरुषों को मारती है।
बीकानेर में डोलची होली खेलने की परंपरा है। दो गुटों में पानी डोलची में रखकर खेली जाती है। ये डोलची चमड़े की बनी होती है। जिसमें पानी भरकर लोग एक-दूसरे पर डालते हैं।