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ज्ञानवापी केस में धर्म गुरु ने SC में याचिका दायर कर ठोका दावा,मंदिर या मस्जिद नहीं है ज्ञानवापी, ये बौद्ध मठ…


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नई दिल्लीः वाराणसी की ज्ञानवापी मस्जिद मामले में गुरुवार को बड़ा मोड़ सामने आ गया। हिंदू और मुस्लिम धर्म के बीच अब एक और धर्म ने अपना दावा ठोक दिया है। बौद्ध धर्म ने सुप्रीम कोर्ट पहुंचकर दावा करते हुए कहा कि यह हमारा मठ है।
वाराणसी की ज्ञानवापी मस्जिद मामले में आज इलाहाबाद हाईकोर्ट ने बड़ा फैसला सुनाते हुए ASI के सर्वे की इजाजत दे दी. दरअसल, 21 जुलाई को वाराणसी जिला जज ने ज्ञानवापी के ASI सर्वे का आदेश दिया था. मुस्लिम पक्ष ने पहले सुप्रीम कोर्ट फिर हाईकोर्ट में ASI सर्वे के फैसले को चुनौती दी थी. अब हाईकोर्ट ने इस याचिका को खारिज कर दिया. इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा, न्यायहित में ASI का सर्वे जरूरी है. कुछ शर्तों के तहत इसे लागू करने की जरूरत है.

ञानवापी मसले के सुप्रीम कोर्ट पहुँचने पर अख़बार ने लिखा, “सुप्रीम कोर्ट को निचली अदालत को सीधी भाषा में बोलना चाहिए कि वो किसी भी याचिका को सुनते वक़्त 1991 (उपासना स्थल विशेष प्रावधान क़ानून) के क़ानून का पालन करें और किसी भी न्यायिक उल्लंघन को बर्दाश्त नहीं किया जाएगा.लेकिन इस मामले में एक नया मोड़ आज तब आ गया जब बौद्ध धर्म गुरु ने SC में दावा किया कि यह उनका मठ है. बौद्ध धर्म गुरु ने सुप्रीम कोर्ट में रिट दायर कर कहा कि ज्ञानवापी मंदिर या मस्जिद नहीं बल्कि बौद्ध मठ है. बौद्ध धर्म गुरु सुमित रतन भंते के मुताबिक देश में तमाम ऐसे मंदिर हैं, ज्ञानवापी में पाए गए त्रिशूल और स्वस्तिक चिन्ह बौद्ध धर्म के हैं.

केदारनाथ या ज्ञानवापी में जिसे ज्योतिर्लिंग बताया जा रहा है, ज्ञानवापी न मस्जिद है न मंदिर बल्कि बौद्ध मठ है. उपासना स्थल (विशेष प्रावधान) क़ानून, 1991 कहता है कि 1947 में जो धार्मिक उपासना स्थल जिस स्थिति में था, वैसा ही बना रहे. सुमित रतन भंते ने देश में बौद्ध मठों की खोज शुरू की है. वे बोले कि हमने नई खोज शुरू की है कि जैन और बौद्ध मठों को तोड़कर मंदिर या अन्य धार्मिक स्थल बनाए गए हैं. सभी मंदिरों और मस्जिदों को उनके मूल स्वरूप में आना चाहिए. जहां-जहां बौद्ध मठ से उनका स्वरूप बदल दिया गया है. बौद्ध मठों को अपने मूल स्वरूप में आना चाहिए. सुमित रतन बोले कि बौद्ध धर्म के मानने वालों की संख्या भी यही चाहती है.”उलेखक प्रताप भानु मेहता के मुताबिक़, ‘अयोध्या के बाद काशी और मथुरा में मंदिरों को वापस करने की बात करना बहुसंख्यक शक्ति का इस्तेमाल है, अब जबकि सत्ता बहुसंख्यकों के पास है.’

बौद्ध धर्म गुरु के मुताबिक इस्लाम 1500 साल पहले आया और हिंदू धर्म 1200 साल पहले आया है. लेकिन बौद्ध धर्म ढाई हजार साल पहले का है. देश में आपसी फूट की की जो परंपरा शुरू हुई है, वह उचित नहीं है. उन्होंने कहा कि बौद्ध मठों का भी सर्वेक्षण करके उन्हें बौद्ध समाज को वापस करना चाहिए. अगर सही फैसला होता तोहोता तो वहां पर बौद्ध मठ होता.ASI को 4 अगस्त तक सर्वे की रिपोर्ट वाराणसी की जिला अदालत को सौंपनी थी. इसी आदेश के बाद ASI की टीम सोमवार को ज्ञानवापी का सर्वे करने पहुंची थी. लेकिन मुस्लिम पक्ष ने इस सर्वे पर रोक की मांग को लेकर सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया. कोर्ट ने सर्वे पर दो दिन के लिए रोक लगाते हुए मस्जिद कमेटी को हाईकोर्ट जाने को कहा था. इसके बाद मुस्लिम पक्ष ने हाईकोर्ट का रुख किया था. सुनवाई के बाद हाईकोर्ट ने मुस्लिम पक्ष की याचिका खारिज कर दी.

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