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कल्पना चावला बर्थडे स्पेशल : कहानी महान वैज्ञानिक कल्पना चावला की,किसकी चूक की वजह से स्पेसक्राफट के हुए हजार टुकड़े?


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नई दिल्लीः जब हम छोटे थे तो स्कूल के पाठ्यक्रम में कई बार हमने कल्पना चावला के नाम को सुना था। उस वक्त नहीं पता होता था कि स्पेस साइंस क्या है और इसका कितना बड़ा योगदान है। लेकिन जैसे-जैसे छोटे से हम बड़े होते जाते हैं तो पता चलता है कि स्पेस तकनीक कितनी कमाल की है। कल्पना चावला भी स्पेस की इसी तकनीक से जुड़ी हुई थीं। आज कल्पना चावला की 62वीं जयंती है। कल्पना भारतीय मूल की पहनी महिला थीं, जिन्होंने स्पेस में जाकर इतिहास रच दिया था। ऐसा कहा जाता है कि कल्पना बचपन से ही हवा में उड़ने का ख्वाब देखती थीं। इस सपने को पूरा करने के लिए उन्होंने जी जान लगा दी। हरियाणा से ताल्लुक रखने वाली भारतीय मूल की अमेरिकी महिला कल्पना चावला ने एक बार नहीं बल्कि अपने जीवन में 2 बार अंतरिक्ष की यात्रा की। ऐसा अवसर लोगों को कम ही बार मिलता है।

हरियाणा के करनाल में जन्मी थीं कल्पना चावला

हरियाणा के करनाल में कल्पना चावला का जन्म 17 मार्च 1962 को हुआ था। उनकी माता का नाम संजयोती चावता और पिता का नाम बनारसी लाल चावता था। कल्पना बचपन से ही पढ़ने लिखने में होशियार थी। हमेशा अपने क्लास में टॉप पर आती थी। उनके माता-पिता की इच्छा थी कि उनकी बेटी एक शिक्षक बने। लेकिन किसे पता था कि एक दिन उनकी बेटी धरती को तो देखेगी, लेकिन हजारों मील ऊपर से, यानी स्पेस से। कल्पना ने स्पेस साइंस की दुनिया में जाने का बचपन में ही मन बना लिया था।

स्कूल के पहले दिन खुद रखा नाम

मोंटो जैसे-जैसे बड़ी होती गई, हवाई जहाज में दिलचस्पी बढ़ती गई. वह बचपन से ही आसमान में उड़ने का सपना देखने लगी. स्कूल में दाखिला कराने की बारी आई तो टैगोर बाल निकेतन स्कूल पहुंचीं, जहां प्रिंसिपल ने बच्ची का नाम पूछा तो उन्हें बताया गया कि कि मोंटो के तीन नाम प्रस्तावि हैं, ज्योत्सना, सुनयना और कल्पना. फैसला अभी हुआ नहीं है. तब प्रिंसिपल ने ही मोंटो से पूछ लिया कि उन्हें कौन सा नाम पसंद है. मोंटो ने कहा कि कल्पना सबसे ज्यादा पसंद है और स्कूल में पहले दिन ही मोंटो का नाम कल्पना चावला हो गया.

1988 में नासा के लिए शुरू किया काम

कल्पना ने जब अपने ग्रेजुएशन की पढ़ाई को खत्म की तो आगे की पढ़ाई के लिए वो अमेरिका चली गईं। रिपोर्ट्स के मुताबिक, साल 1984 में उन्होंने एयरोस्पेस इंजीनियरिंग में मास्टर्स की डिग्री अमेरिका से हासिल की। इसके बाद साल 1988 में उन्होंने पीएचडी की डिग्री भी प्राप्त की। साल 1988 ये वही समय था जब कल्पना ने विश्व की नंबर 1 कही जाने वाली स्पेस एजेंसी नासा के लिए काम करना शुरू कर दिया। उनकी मेहनत की बदौलत ही साल 1994 में उन्हें स्पेस मिशन के लिए चुना गया। यानी उन्हें अंतरिक्ष की यात्रा करनी थी।

कल्पना चावला का पहला मिशन

नासा अपने खास कार्यक्रम ह्यूमन स्पेसफ्लाइट के तहत कुछ लोगों को समूह में किसी रिसर्च के लिए स्पेस क्राफ्ट के जरिए अंतरिक्ष में भेजता है. स्पेस शटल कार्यक्रम भी एक ह्यूमन स्पेस फ्लाइट कार्यक्रम था. चौथे ह्यूमन स्पेस फ्लाइट कार्यक्रम के तहत 88वें मिशन में कोलंबिया फ्लाइट एसटीएस-87 कल्पना का पहला स्पेस मिशन था. साल 1997 में अपने 5 साथियों के साथ मिशन पर गईं. 10.4 मिलियन माइल की दूरी तय करते हुए पृथ्वी के 252 चक्कर काटे और सफलतापूर्वक लौट आईं.

एक नहीं बल्कि दो बार स्पेस की यात्रा

इन सब में सबसे खास बात यह थी कि कल्पना चावल वो महिला थीं, जिन्होंने एक बार नहीं बल्कि दो बार स्पेस का सफर किया। ऐसा मौका कम ही लोगों को मिलता है। साल 1997 में उन्हें पहली बार अंतरिक्ष की उड़ान के लिए चुना गया। उनकी पहली उड़ान 19 नवंबर से 5 दिसंबर तक चली। इसके बाद साल 2003 में वो फिर से स्पेस में गईं। इस दौरान कोलंबिया शटल से स्पेस के लिए उन्होंने दूसरी बार उड़ान भरी। 16 दिनों तक चलने वाला यह अभियान 1 फरवरी को खत्म होना था। लेकिन इस दौरान एक हादसा हुआ। दरअसल जिस यान से कल्पना स्पेस में गई थीं, वह धरती पर लौटते वक्त दुर्घटनाग्रस्त हो गया। इस कारण कल्पना चावला समेत कुल 6 वैज्ञानिकों की मौत हो गई थी। बता दें कि कल्पना चावला के योगदान के लिए उन्हें कई अवॉर्ड और सम्मान भी मिल चुके हैं।

लैंडिंग से ठीक पहले बिगड़ गए थे हालात

16 जनवरी, 2003 को कल्पना स्पेस शटल कोलंबिया एसटीएस-107 से स्पेस शटल प्रोग्राम के 113वें मिशन पर एक बार रवाना हुईं. 1 फरवरी, 2003 को वापसी थी. पूरी दुनिया की नजरें टीवी पर टिकी थीं. शटल को कैनेडी स्पेस सेंटर में उतरना था पर सुबह 9 बजे से ठीक पहले मिशन कंट्रोल के दौरान असामान्य रीडिंग नोट की गईं. शटल के बाएं विंग के सेंसर से तापमान की रीडिंग नहीं मिल रही थी और अचानक बाईं ओर के टायर की प्रेशर रीडिंग भी गायब हो गई. तब कोलंबिया शटल अमेरिका के टेक्सास प्रांत में डलास शहर के पास था और आवाज की गति से भी 18 गुना तेजी से जमीन की ओर 61,170 मीटर की ऊंचाई से नीचे आ रहा था.

स्पेस शटल के कुल वजन का 40 फीसदी मलबा ही मिला

मिशन कंट्रोल ने कोलंबिया में सवार अंतरिक्ष यात्रियों से संपर्क करने की कई कोशिशें कीं पर सफलता नहीं मिली. इसके 12 मिनट बाद ही जब कोलंबिया को रनवे पर होना चाहिए था, तभी एक टीवी चैनल पर आसमान में शटल के टूटने का वीडियो आने लगा. नासा ने अंतरिक्ष यात्रियों के लापता होने की घोषणा कर दी और कोलंबिया का मलबा खोजना शुरू कर दिया. आखिरकार पूर्वी टेक्सास में लगभग 2,000 वर्ग मील क्षेत्र में फैले शटल के 84 हजार टुकड़े बरामद किए गए. इनका वजन कोलंबिया के कुल वजन का सिर्फ 40 प्रतिशत था. इन्हीं टुकड़ों में कल्पना और उनके 6 साथी भी थे, जिनकी पहचान डीएनए के जरिए की गई थी.

पहले से जानकारी के बावजूद फोम का हुआ इस्तेमाल

जांच के दौरान बाद में पता चला कि शटल के बाहरी टैंक से फोम का एक बड़ा हिस्सा टूट कर अलग हो गया था और स्पेस शिप का विंग भी इसी के चलते टूट गया था.बाएं विंग में एक छेद हो गया था, जिससे बाहर की गैसें शटल में घुसने लगीं और सेंसर खराब हो गए थे. यह भी दावा किया गया कि इस फोम में समस्या की जानकारी नासा के वैज्ञानिकों को पहले से थी. इसके बावजूद शटल में इसका इस्तेमाल जारी रखा गया.

अफसरों ने स्पाई कैमरा नहीं लगाने दिया था

स्पेस जर्नलिस्ट माइकल कैबेज और विलियम हारवुड ने 2008 में अपनी एक किताब प्रकाशित की, जिसमें बताया गया है कि नासा में कई ऐसे वैज्ञानिक थे जो कोलंबिया के टूटे हुए विंग की तस्वीरें लेना चाहते थे. यह भी कहा जाता है कि नासा का डिफेंस विभाग इसमें अपने ऑर्बिटल स्पाई कैमरा का इस्तेमाल करना चाहता था पर नासा के बड़े अधिकारियों ने मना कर दिया था और बिना किसी जांच के ही लैंडिंग बढ़ गई थी. कुछ इंजीनियर का यह भी मानना है कि स्पेस शटल में फोम के कारण जो डैमेज हुआ था वह काफी बड़ा था.एक रिपोर्ट में यह भी कहा गया कि कल्पना और उनके छह साथी अंतरिक्ष यात्रियों के पास बचने या सुधार का कोई समय ही नहीं था, क्योंकि शटल का कंट्रोल खोने और केबिन का प्रेशर बुरी तरह से बिगड़ने में सिर्फ 40 सेकंड लगे थे. वे इसलिए भी समय पर ऐसा नहीं कर सके क्योंकि उन्हें अपने स्पेस सूट पहनने में विलंब हुआ था. रिपोर्ट में कहा गया था कि कोलंबिया में सवार अंतरिक्ष यात्रियों में से एक ने प्रेशर सूट हेलमेट नहीं पहना था, जबकि तीन ने अपने स्पेस सूट ग्लव्स नहीं पहन रखे थे. हालांकि, ऐसा होता भी तो वे बचाव नहीं कर सकते थे, क्योंकि कोलंबिया की सीटों की डिजाइन ऐसी थी कि शायद ही कुछ कर पाते. उनके हेलमेट भी सिर के हिसाब से सही नहीं थे. इसके कारण उन्हें सिर में भीषण चोटें आई थीं.

प्रोग्राम मैनेजर ने किया था यह दावा

मिशन कोलंबिया के प्रोग्राम मैनेजर वेन हेल ने भी साल 2013 में कहा था कि विंग टूटने के बाद ही नासा के वैज्ञानिकों को पता चल गया था कि अब कल्पना के साथ ही सातों अंतरिक्ष यात्रियों की जिंदा वापसी नहीं हो सकती. इसलिए वे नहीं चाहते थे कि आखिरी दिन घुट-घुट कर जीएं.,ऐसे में उन्हें डैमेज के बारे में जानकारी ही नहीं दी गई थी. वेन हेल का दावा था कि अन्तरिक्ष यात्रियों को इस बारे में बता भी दिया जाता तो ज्यादा से ज्यादा वे ऑक्सीजन रहने तक अंतरिक्ष के चक्कर काट सकते थे. ऑक्सीजन खत्म होने पर उनकी जान चली जाती. वैसे वेन हेल के इस बयान को कल्पना के पिता ने खारिज कर दिया था और नासा ने कोई टिप्पणी नहीं की थी

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