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राजनीति

मोरारजी देसाई जन्मजयंती : यूरीन थेरपी के हिमायती प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई जिंदा रहे 99 साल,अपने ही मूत्र का करते थे सेवन


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नई दिल्लीः इस साल लीप ईयर है. लीप ईयर उस साल को कहते हैं, जो चार साल में एक बार आता है और तब वो साल 366 दिनों का हो जाता है. तब फरवरी का महीना 28 की बजाए 29 दिनों का होता है. अगर 29 फरवरी को किसी का जन्मदिन होता है तो वो 04 साल में एक बार ही आता है. भारत के पूर्व प्रधानमंत्री मोरारजी भाई देसाई का जन्मदिन भी 29 फरवरी को आता है. वह तो अब नहीं रहे लेकिन उन्होंने 99 साल की लंबी उम्र पाई. मोरारजी देसाई स्वमूत्रपान के बड़े पैरवीकार थे. वो खुद ऐसा करते थे. उसके फायदों के बारे में भी बताते थे.

प्रधानमंत्री ने कहा था कि इलाज नहीं करवा सकते तो पेशाब पियो

मोरारजी कहा करते थे लाखों भारतीयों के लिये यह एकदम सही दवा का मिश्रण है. खासकर ऐसे लोगों के लिए जो अपने इलाज का खर्च नहीं उठा सकते. वैसे उनकी इस बात के कोई वैज्ञानिक प्रमाण नहीं थे. लेकिन मोरारजी 99 साल जिंदा रहे. तो बहुत से लोगों को लगा कि उनकी लंबी उम्र का राज स्वमूत्रपान तो नहीं.

गैर कांग्रेसी प्रधानमंत्री

मोरारजी देसाई का जन्म 29 फ़रवरी 1896 को हुआ. निधन 10 अप्रैल, 1995 को. वो भारत के चौथे प्रधानमंत्री थे. 81 वर्ष की आयु में प्रधानमंत्री बने थे. हालांकि इससे पहले उन्होंने नेहरू के निधन के बाद दो बार प्रधानमंत्री बनने की गंभीर कोशिश की लेकिन असफल रहे.देश में 1977 जब पहली बार गैर कांग्रेसी सरकार बनी तो वो उसके प्रधानमंत्री थे. वह पहली गुजराती प्रधानमंत्री थे. हालांकि ज्यादा समय तक पद पर नहीं रह पाए. सरकार गिर गई. मोरारजी भाई अनुशासन और ईमानदारी से कभी समझौता नहीं करते थे. खरी बात करने वाले लोगों में थे. इसीलिए उन्हें सख्त समझ लिया जाता था.

4 साल में एक बार आता है मोरारजी देसाई जन्म दिन

इस साल लीप ईयर है. लीप ईयर उस साल को कहते हैं, जो चार साल में एक बार आता है और तब वो साल 366 दिनों का हो जाता है. तब फरवरी का महीना 28 की बजाए 29 दिनों का होता है. अगर 29 फरवरी को किसी का जन्मदिन होता है तो वो 04 साल में एक बार ही आता है. भारत के पूर्व प्रधानमंत्री मोरारजी भाई देसाई का जन्मदिन भी 29 फरवरी को आता है. वह तो अब नहीं रहे लेकिन उन्होंने 99 साल की लंबी उम्र पाई. मोरारजी देसाई स्वमूत्रपान के बड़े पैरवीकार थे. वो खुद ऐसा करते थे. उसके फायदों के बारे में भी बताते थे.

नेहरू के निधन के बाद प्रधानमंत्री पद के मजबूत दावेदार थे

मोरारजी बहुत काबिल नेता थे. नेहरू के निधन के बाद वो प्रधानमंत्री पद के सबसे मजबूत दावेदार थे. उसके बाद जब लाल बहादुर शास्त्री का निधन हुआ तो भी लग रहा था कि अब मोरारजी भाई ही प्रधानमंत्री बनेंगे. आखिरकार मार्च 1977 में जनता पार्टी की जीत के बाद वह प्रधानमंत्री बने लेकिन चौधरी चरण सिंह से मतभेदों के चलते उन्हें एक साल बाद प्रधानमंत्री पद छोड़ना पड़ा.

उनके हठी स्वाभाव पर व्यंग्य प्रकाशित होते थे

मोरारजी देसाई अंग्रेजों के जमाने में उप ज़िलाधीश बने. 1930 में ब्रिटिश सरकार की नौकरी छोड़ दी. स्वतंत्रता संग्राम की लड़ाई में कूद पड़े. कांग्रेस में शामिल हुए. वह बंबई राज्य के कांग्रेस मंत्रिमंडल में सम्मिलित हुए. हालांकि उनके बारे में शुरू से ये बात प्रचलित हो गई कि वो बहुत हठी हैं. ऐसा था भी. गुजरात के समाचार पत्रों में अक्सर उनके इस व्यक्तित्व को लेकर व्यंग्य भी प्रकाशित होते थे.

इंदिरा गांधी से कभी नहीं बनी

1952 में मोरारजी बंबई के मुख्यमंत्री बनाए गए. 1967 में इंदिरा गांधी के प्रधानमंत्री बनने पर मोरारजी को उप प्रधानमंत्री और गृह मंत्री बनाया गया. लेकिन वो इस बात से खिन्न रहते थे कि सीनियर होने के बाद भी इंदिरा गांधी को क्यों प्रधानमंत्री बनाया गया. इंदिरा से उनकी कभी नहीं बनी. वो उनके काम में लगातार रुकावट भी पैदा करते रहे.इंदिरा गांधी ने जब ये समझ लिया कि मोरारजी देसाई उनके लिए कठिनाइयां पैदा कर रहे हैं तो उन्होंने उनके पर काटने शुरू कर दिए. नवम्बर 1969 में जब कांग्रेस का विभाजन हुआ और इंदिरा गांधी ने नई कांग्रेस बनाई तो वह इंदिरा के खिलाफ खेमे वाली कांग्रेस-ओ पार्टी में थे.

छोड़ना पड़ा था पद

वह 81 वर्ष की आयु में प्रधानमंत्री बने थे। इसके पूर्व कई बार उन्होंने प्रधानमंत्री बनने की कोशिश की परंतु असफल रहे। लेकिन ऐसा नहीं हैं कि मोरारजी प्रधानमंत्री बनने के क़ाबिल नहीं थे। वस्तुत: वह दुर्भाग्यशाली रहे कि वरिष्ठतम नेता होने के बावज़ूद उन्हें पंडित नेहरू और लालबहादुर शास्त्री के निधन के बाद भी प्रधानमंत्री नहीं बनाया गया। मोरारजी देसाई मार्च 1977 में देश के प्रधानमंत्री बने लेकिन प्रधानमंत्री के रूप में इनका कार्यकाल पूर्ण नहीं हो पाया। चौधरी चरण सिंह से मतभेदों के चलते उन्हें प्रधानमंत्री पद छोड़ना पड़ा।

स्वमुत्रपान करते थे

मोरारजी देसाई के बारे में शायद आपको यह बात पता नहीं होगा। वे स्वमुत्रपान की वकालत करते थे। स्वमुत्रपान यानी अपने मूत्र का सेवन। ऐसा करने के पीछे उनका तथ्य था कि इससे कैंसर जैसे खतरनाक बीमारियों से भी बचा जा सकता है। साथ ही उन्होंने इसे गरीबों के इलाज़ के लिए बेस्ट दवा भी करार दिया था। इसके पीछे उनका तर्क था की इससे कई सारे ऐसे बीमारियों का भी इलाज़ हो सकता है जिनका इलाज़ काफी महंगा है। हालाँकि वैज्ञानिकों ने अपने रिसर्च में ऐसा कुछ भी नहीं पाया था।

वहम या सच

वैज्ञानिकों ने उनके दावे को झुठलाया था लेकिन मोरारजी देसाई हमेशा से स्वमुत्रपान की वकालत करते थे। वे 99 साल की उम्र तक जिंदा रहे थे इसलिए उनकी बातें भरोसे के लायक भी है। ऐसा नहीं है कि सिर्फ वही यह कार्य किया करते था आज के समाय में भी कई लोग इस बात को स्वीकार चुकें हैं की वे स्वयं के मूत्र का सेवन करते हैं।

पुराने समय में था चलन

भले ही स्वमूत्रपान के विचार को मानने वाले दुनिया में बड़ी संख्या में न रहे हों। लेकिन दुनिया भर में हुए कई रिसर्च में रिपोर्ट्स ने इस बात का दावा करती हैं। कई सारी सभ्यताओं में स्वमूत्र चिकित्सा से जुड़े मिथक हैं। अलग-अलग बीमारियों के संदर्भ में अलग-अलग तरीके से लोग स्वमूत्र का प्रयोग करते हैं।

सरकारी नौकरी छोड़ आजादी की लड़ाई में कूदे मोरारजी

29 फरवरी 1895 को मोरारजी देसाई का जन्म भदैली (बम्बई प्रेसीडेंसी) में हुआ था। साल 1917 में उनका चयन बंबई की प्रांतीय सिविल सेवा में हुआ। 1927-28 में उनकी गोधरा में बतौर डिप्टी कमिश्नर के तौर पर तैनाती के दौरान दंगे हुए। इसके बाद इससे नाराज मोरारजी देसाई ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया। दरअसल उनपर तरफदारी करने के आरोप लगे थे। इसके बाद मोरारजी आजादी की लड़ाई में कूद पड़े। इस दौरान कई बार उन्हें जल जाना पड़ा। आजादी के बाद साल 1952 में वो बम्बई के मुख्यमंत्री बने।

कांग्रेस में शामिल हुए मोरारजी देसाई

इसके बाद साल 1956 से लेकर 1969 तक वो कांग्रेस में रहे और राज्य तथा केंद्र सरकार में अलग-अलग पदों पर रहे और कई अहम मंत्रालयों की जिम्मेदारी भी संभाली। जवाहरलाल नेहरू के निधन के बाद वह प्रधानमंत्री पद के दावेदार थे। हालांकि उन्हें इस दौरान उन्हें सफलता नहीं मिली। इसके बाद लाल बहादुर शास्त्री को प्रधानमंत्री बनाया गया। जब लाल बहादुर शास्त्री का निधन हो गया तो एक बार फिर मोरारजी देसाई प्रधानमंत्री पद के दावेदर बने। लेकिन इस दौरान बाजी इंदिरा गांधी ने मार ली।

कांग्रेस का विभाजन

साल 1969 तक केंद्र सरकार में कैबिनेट मंत्री और आखिरी के दो सालों में उपप्रधानमंत्री के तौर पर इंदिरा गांधी के मंत्रिमंडल में उनकी उपस्थिति बनी रही। साल 1969 में कांग्रेस में विवाद बढ़ने लगा और कांग्रेस दो धड़े में बंट गई। इसके बाद मोरारजी देसाई (ओ) पाले में चले गए और कई सालों तक वो विपक्ष में रहे। इसके बाद अगले 8 साल तक उन्होंने राजनीतिक संघर्ष किया। हालांकि इसी दौरान देश में इमरजेंसी लागू कर दिया गया और मोरारजी देसाई को फिर 19 महीने तक जेल में रहना पड़ा।

मोरारजी देसाई बने प्रधानमंत्री

कांग्रेस में जब मोरारजी देसाई और चंद्रशेखर थे, तो दोनों के बीच वैचारिक मतभेद जरूर था। साल 1969 में कांग्रेस के विभाजन के बाद दोनों ही विरोधी खेमें में पहुंच गए थे। लगातार प्रधानमंत्री के प्रमुख दावेदार के रूप में वो सबसे चर्चित चेहरे माने जाते लेकिन हर बार कोई दूसरा ही प्रधानमंत्री बन जाता। लेकिन साल 1977 में ऐसा नहीं हुआ। साल 1977 में जनता पार्टी ने लोकसभा चुनाव में जीत दर्ज की और फिर मोरारजी देसाई को प्रधानमंत्री बनाया गया। इस दौरान मोरारजी देसाई को चुनौती मिली जगजीवन राम और चौधरी चरण सिंह से। बता दें कि मोरारजी देसाई की छवि एक जिद्दी और अडियल नेता के रूप में थे। ऐसे में चुनाव के दौरान ऐसा लग रहा था कि जगजीवन राम प्रधानमंत्री बन सकते हैं। लेकिन इस समय मोरारजी का साथ दिया उनके सहयोगी चौधरी चरण सिंह ने। मेजादर बात ये है कि मोरारजी की सरकार में रहते हुए चौधरी चरण सिंह की कभी उनसे पटी नहीं।

रात में जगाना पसंद नहीं था

जब वो सोने चले जाते थे तो उन्हें रात में जगाना पसंद नहीं था. प्रधानमंत्री रहते हुए भी यही प्रक्रिया जारी रही. वो 100 साल जीना चाहते थे लेकिन इनकी मृत्यु 99 वर्ष और कुछ माह गुज़रने के बाद 1995 में हो गई. वह अकेले ऐसे भारतीय प्रधानमंत्री हैं जिन्हें भारत सरकार की ओर से ‘भारत रत्न’ तथा पाकिस्तान की ओर से ‘तहरीक़-ए-पाकिस्तान’ का सर्वश्रेष्ठ नागरिक सम्मान प्राप्त हुआ.

बेटे के कारण भ्रष्टाचार का आरोप भी लगा

मोरारजी देसाई को हालांकि बहुत ईमानदार कहा जाता है लेकिन उनके बेटे और उद्योगपति कांति देसाई पर जरूर फायदे लेने का आरोप लगता रहा. ये कहा जाता है कि कांति देसाई ने पिता के प्रधानमंत्री बनने के बाद पीएम में रहकर कई डीलिंग की थी. पूर्व भारतीय प्रधानमंत्री चंद्रशेखर ने तो इसे लेकर उन पर खुलकर आरोप लगाए थे.

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