सकट चौथ 2024 : सकट चौथ पर पढ़ें ये व्रत कथा,जानें व्रत का महत्व
नई दिल्लीः सनातन धर्म में प्रत्येक त्योहार व व्रत का अपना एक खास महत्व होता है और हर व्रत किसी न किसी उद्देश्य से रखा जाता है. पंचांग के अनुसार आज माघ माह की चतुर्थी है जिसे संकष्टी चतुर्थी, सकट चौथ व तिलकुटा कहा जाता है. इस दिन महिलाएं व्रत रखती हैं और भगवान गणेश का पूजन करती हैं. (Sankashti Chaturthi 2024) सकट चतुर्थी का व्रत बहुत ही फलदायी माना गया है और कहते हैं कि इस व्रत को रखने से बच्चों के जीवन में आ रहे सभी संकट दूर होते हैं. इसके अलावा जो दंपति संतान प्राप्ति की कामना रखते हैं उनके लिए सकट चौथ का व्रत बहुत ही फलदायी माना गया है. इस दिन पूजा के बाद व्रत कथा अवश्य पढ़नी चाहिए. तभी व्रत संपूर्ण माना जाता है.
संतान के उज्जवल भविष्य और संतान प्राप्ति के लिए सकट चौथ का व्रत रखा जाता है
हर साल माघ माह के कृष्ण पक्ष की चर्तुथी को सकट चौथ का पर्व मनाया जाता है। सकट चौथ के दिन महिलाएं संतान की दीर्घ आयु और अच्छे स्वास्थ्य के लिए व्रत रखती हैं। इस बार सकट चौथ 29 जनवरी को है। मान्यता है कि सकट चौथ की पूजा में कथा का पाठ करने से साधक को भगवान गणेश जी की कृपा प्राप्त होती है।संतान के उज्जवल भविष्य और संतान प्राप्ति के लिए सकट चौथ का व्रत रखा जाता है। ऐसे में इस दिन भगवान श्री गणेश की पूजा के साथ-साथ व्रत कथा का पाठ भी जरूरी माना गया है। ज्योतिषाचार्य राधाकांत वत्स से आइये जानते हैं सकट चतुर्थी की व्रत कथा के बारे में।
सकट चौथ व्रत का महत्व
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, भगवान गणेश ने महादेव और माता पार्वती की परिक्रमा माघ मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को की थी, जिस वजह से इस तिथि के व्रत का विशेष महत्व है। साथ ही चतुर्थी तिथि के स्वामी भगवान गणेश हैं और इस दिन व्रत व पूजा अर्चना करने से जीवन की सभी विघ्न बाधाएं दूर हो जाती हैं और सुख समृद्धि की प्राप्ति होती है। चंद्रमा मन के स्वामी हैं और गणेशजी बुद्धि के तो इस दिन गणेशजी की पूजा अर्चना करके रात के समय चंद्रमा का अर्घ्य दिया है। ऐसा करने से बुद्धि का विकास, मानसिक शांति, कार्यों में सफलता, प्रतिष्ठा में वृद्धि और नकारात्मकता दूर होती है।
संतान की लंबी आयु के लिए व्रत
ज्योतिषाचार्यों ने बताया कि सकट व्रत माघ मास की कृष्ण पक्ष की चौथ को रखा जाता है। विवाहित महिलाएं निर्जला व्रत रखकर मां सकट से अपने संतान की लंबी आयु के लिए मंगलकामना करती हैं। इस दिन संकट हरण गणपति गणेशजी का पूजन भी होता है। इसलिए शाम को सकट माता और गणेशजी की पूजा की जाती है। तिल, रामदाना, लईया आदि को गुड़ में पाग कर बनाए गए लड्डू और शकरकंदी को प्रसाद के रूप में चढ़ाया जाता है। पूजा के लिए कूटे हुए तिल और गुड़ को मिलाकर तिलकुट का पहाड़ या बकरा बनाया जाता है। पूजा के उपरांत घर का पुरुष तिलकुट के बने बकरे की गर्दन को दूब से अलग कर देता है। रात को चंद्रमा के उदय होने पर अर्घ्य देकर व्रत पूर्ण किया जाता है।
अर्घ्य के बाद ही फलाहार
शाम को चंद्रोदय के समय तिल, गुड़ आदि का अर्घ्य चंद्रमा को दिया जाता है। अर्घ्य देने के बाद ही व्रती महिलाएं फलाहार करती हैं। दूसरे दिन सुबह सकट माता पर चढ़ाए गए लड्डुओं को प्रसाद रूप में ग्रहण किया जाता है। पूजा के अंत में महिलाएं सकट माता की कथा सुनती हैं। इसके बाद रात्रि के समय चंद्र को अर्घ्य देने की परंपरा है।
सकट चौथ व्रत कथा 1
पौराणिक कथा के अनुसार एक नगर में साहूकार और उसकी पत्नी रहते थे. दोनों का धर्म, दान व पुण्य में कोई विश्वास नहीं था. दंपति के कोई संतान नहीं थी और इसलिए वह मन ही मन दुखी रहा करते थे. एक दिन साहूकारनी अपने पड़ोसन के घर गई. उस दिन सकट चौथ का दिन था और पड़ोसन सकट चौथ की पूजा कर रही थी. साहूकारनी ने पड़ोसन से पूछा यह तुम क्या कर रही हो. तब पड़ोसन ने कहा आज सकट चौथ का व्रत है, इसलिए मैं पूजा कर रही हूं. साहूकारनी ने पड़ोसन से पूछा इस व्रत को करने से क्या फल प्राप्त होता है. पड़ोसन ने कहा इसे करने से धन-धान्य, सुहाग और पुत्र सब कुछ मिलता है. इसके बाद साहूकारनी बोली अगर मेरा बच्चा हो गया तो मैं सवा सेर तिलकुट करूंगी और चौथ का व्रत रखूंगी. इसके बाद भगवान गणेश ने साहूकारनी की प्रार्थना स्वीकार कर ली और वो गर्भवती हो गई.
गर्भवती होने के बाद साहूकारनी ने कहा कि अगर मेरा लड़का हो जाए तो मैं ढाई सेर तिलकुट करूंगी. कुछ दिन बाद उसके लड़का हो गया. इसके बाद साहूकारनी बोली भगवान मेरे बेटे का विवाह हो जाए तो सवा पांच सेर का तिलकुट करूंगी. भगवान गणेश ने उसकी ये फरियाद भी सुन ली और लड़के का विवाह तय हो गया. सब कुछ होने के बाद भी साहूकारनी ने तिलकुटा नहीं किया.
इसके कारण सकट देवता क्रोधित हो गए. उन्होंने जब साहूकारनी का बेटा फेरे ले रहा था, तो उन्होंने उसे फेरों के बीच से उठाकर पीपल के पेड़ पर बैठा दिया. इसके बाद सब लोग वर को ढूंढने लगे. जब वर नहीं मिला तो लोग निराश होकर अपने घर को लौट गए. जिस लड़की से साहूकारनी के लड़के का विवाह होने वाला था, एक दिन वो अपनी सहेलियों के साथ गणगौर पूजन करने के लिए जंगल में दूब लेने गई. तभी उसे पीपल के पेड़ से एक आवाज आई ‘ओ मेरी अर्धब्यही’ ये सुनकर लड़की घबरा गई और अपने घर पहुंची. लड़की की मां ने उससे वजह पूछी तो उसने सारी बात बताई.
तब लड़की की मां पीपल के पेड़ के पास गई और जाकर देखा, तो पता चला कि पेड़ पर बैठा शख्स तो उसका जमाई है. लड़की की मां ने जमाई से कहा कि यहां क्यों बैठे हो मेरी बेटी तो अर्धब्यही कर दी अब क्या चाहते हो ? इस पर साहूकारनी का बेटा बोला कि मेरी मां ने चौथ का तिलकुट बोला था, लेकिन अभी तक नहीं किया. सकट देवता नाराज हैं और उन्होंने मुझे यहां पर बैठा दिया है. ये बात सुनकर लड़की की मां साहूकारनी के घर गई और उससे पूछा कि तुमने सकट चौथ के लिए कुछ बोला था.
साहूकारनी बोली हां मैंने तिलकुट बोला था. उसके बाद साहूकारनी ने फिर कहा हे सकट चौथ महाराज अगर मेरा बेटा घर वापस आ जाए, तो मैं ढाई मन का तिलकुट करूंगी. इस पर गणपति ने फिर से उसे एक मौका दिया और उसके बेटे को वापस भेज दिया. इसके बाद साहूकारनी के बेटे का धूमधाम से विवाह हुआ. साहूकारनी के बेटे और बहू घर आ गए. तब साहूकारनी ने ढाई मन तिलकुट किया और बोली है सकट देवता, आपकी कृपा से मेरे बेटे पर आया संकट दूर हो गया और मेरा बेटा व बहू सकुशल घर पर आ गए हैं. मैं आपकी महिमा समझ चुकी हूं. अब मैं हमेशा तिलकुट करके आपका सकट चौथ का व्रत करूंगी. इसके बाद सारे नगरवासियों ने तिलकुट के साथ सकट व्रत करना प्रारंभ कर दिया.
सकट चौथ व्रत कथा 2
एक बार गणेशजी बाल रूप में चुटकी भर चावल और एक चम्मच दूध लेकर पृथ्वी लोक के भ्रमण पर निकले। वे सबसे यह कहते घूम रहे थे, कोई मेरी खीर बना दे, कोई मेरी खीर बना दे। लेकिन सबने उनकी बात पर ध्यान नहीं दिया। तभी एक गरीब बुढ़िया उनकी खीर बनाने के लिए तैयार हो गई। इस पर गणेशजी ने घर का सबसे बड़ा बर्तन चूल्हे पर चढ़ाने को कहा। बुढ़िया ने बाल लीला समझते हुए घर का सबसे बड़ा भगौना उस पर चढ़ा दिया।गणेशजी के दिए चावल और दूध भगौने में डालते ही भगौना भर गया। इस बीच गणेशजी वहां से चले गए और बोले अम्मा जब खीर बन जाए तो बुला लेना। पीछे से बुढ़िया के बेटे की बहू ने एक कटोरी खीर चुराकर खा ली और एक कटोरी खीर छिपाकर अपने पास रख ली। अब जब खीर तैयार हो गई तो बुढ़िया माई ने आवाज लगाई-आजा रे गणेशा खीर खा ले।तभी गणेश जी वहां पहुंच गए और बोले कि मैंने तो खीर पहले ही खा ली। तब बुढ़िया ने पूछा कि कब खाई तो वे बोले कि जब तेरी बहू ने खाई तभी मेरा पेट भर गया। बुढ़िया ने इस पर माफी मांगी। इसके बाद जब बुढ़िया ने बाकी बची खीर का क्या करें, इस बारे में पूछा तो गणेश जी ने उसे नगर में बांटने को कहा और जो बचें उसे अपने घर की जमीन गड्ढा करके दबा दें।अगले दिन जब बुढ़िया उठी तो उसे अपनी झोपड़ी महल में बदली हुई और खीर के बर्तन सोने- जवाहरातों से भरे मिले। गणेश जी की कृपा से बुढ़िया का घर धन दौलत से भर गया। हे गणेशजी भगवान जैसे बुढ़िया को सुखी किया वैसे सबको खुश रखें।
सकट चौथ व्रत कथा 3
किसी नगर में एक कुम्हार रहता था। एक बार जब उसने बर्तन बनाकर आंवा लगाया तो आंवा नहीं पका। हारकर वह राजा क़िया के लड़के की बारी आई। बुढ़िया के लिए वही जीवन का सहारा था। लेकिन राजआज्ञा के आगे किसी की नहीं चलती। दुःखी बुढ़िया सोच रही थी कि मेरा तो एक ही बेटा है, वह भी सकट के दिन मुझसे जुदा हो जाएगा। बुढ़िया ने लड़के को सकट की सुपारी और दूब का बीड़ा देकर कहा, ‘भगवान् का नाम लेकर आंवां में बैठ जाना। सकट माता रक्षा करेंगी।’बालक को आंवा में बैठा दिया गया और बुढ़िया सकट माता के सामने बैठकर पूजा करने लगी। पहले तो आंवा पकने में कई दिन लग जाते थे, पर इस बार सकट माता की कृपा से एक ही रात में आंवां पक गया था। सवेरे कुम्हार ने देखा तो हैरान रह गया। आंवां पक गया था। बुढ़िया का बेटा भी सुरक्षित था और अन्य बालक भी जीवित हो गए थे। नगरवासियों ने सकट की महिमा स्वीकार की तथा लड़के को भी धन्य माना। तब से आज तक सकट की विधि विधान से पूजा की जाती है।
सकट चौथ व्रत कथा 4
यह है कि एक अबर माता पार्वती ने अपने मैल से एक बालक का निर्माण किया जिसे विनायक नाम दिया। उस बालक को द्वार पर खड़ा कर माता पार्वती स्नान के लिए चली गईं।जब भगवान शिव वहां आए तो बालक विनायक ने उन्हें अंदर जाने से रोक दिया तब क्रोध में आकर शिव जी ने उस बालक का शीश धड़ से अलग कर दिया। इसका पता जब माता पार्वती को चला तो वह बहुत क्रोधित हो गईं और रौद्र रूप धारण कर लिया।तब भगवान शिव ने हाथी का शीश विनायक के धड़ पर लगाया और उन्हें दोबारा जीवित किया। गज मस्तक होने के कारण माता पार्वती के यह पुत्र गजानन यानी कि श्री गणेश कहलाये। जिस दिन यह घटना हुई उस दिन माघ माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि थी।इसलिए संतान की उन्नति के लिए सकट चौथ यानी कि सकट चतुर्थी के दिन श्री गणेश की पूजा के साथ-साथ माता पार्वती की पूजा भी की जाती है और इस दिन माताएं अपने बच्चों के लिए व्रत करती हैं।एक नगर में एक बुजुर्ग माता हुआ करती थीं जिनका एक बेटा और बहु थे। बूढी अम्मा को आंखों से दिखता नहीं था लेकिन वह परम गणेश भक्त थीं। एक बार उनकी भक्ति से प्रसन्न होकर उन बूढ़ी अम्मा को गनेह्स जी नेदार्ष्ण दिए और से वर मांगने को कहा।हालांकि बूढ़ी अम्मा को गणेश जी दिखाई तो नहीं दिए लेकिन वह उनकी उपस्थिति महसूस कर पा रही थीं। जब गणेश जी ने बूढ़ी अम्मा से वरदान मागने को कहा तब बूढ़ी अम्मा ने गणेश जी से वरदान में सिर्फ औ सिर्फ उनकी भक्ति ही मांगी।यह देख गणेश जी प्रसन्न हुए कि बूढ़ी अम्मा चाहती तो अपने घर परिवार के लिए बहुत कुछ मांग सकती थीं और अपनी आंखों की रौशनी मांग सकती थीं लेकिन उन्हेओं गणेश भक्ति को चुना। तब गणेश जी ने उन बूढ़ी अम्मा को संसार के सभी सुख प्रदान किये।साथ ही, श्री गणेश ने उन बूढ़ी अम्मा को वरदान दिया कि उनका बेटा और बहु सदैव उनकी सेवा करते रहेंगे और उन्हें जल्दी ही पोते-पाती का सुख भी प्राप्त होगा। इसी के बाद से माघ माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को सकट चौथ का व्रत रखा जाने लगा।
आपके शहर में चंद्रदोय का समय
दिल्ली – 9 बजकर 10 मिनट
लखनऊ – 8 बजकर 59 मिनट
अमृतसर – 9 बजकर 18 मिनट
अहमदाबाद – 9 बजकर 32 मिनट
आगरा – 9 बजकर 9 मिनट
उज्जैन – 9 बजकर 19 मिनट
गाजियाबाद – 9 बजकर 9 मिनट
गुरुग्राम – 9 बजकर 11 मिनट
पटना – बजकर 39 मिनट