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जानें क्‍यों जरूरी है सोशल मीडिया डिटॉक्‍स, इसके फायदों के साथ जानिए कैसे बनाएं एप्स से दूरी


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नई दिल्लीः प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सोमवार रात सभी सोशल मीडिया अकाउंट्स को छोड़ने की बात की तो इस फैसले के कारणों पर कयासबाजी शुरू हो गई. कुछ यूजर्स ने कहा कि वह सोशल मीडिया पर बढ़ती जा रही निगेटिविटी से दूर रहने के लिए ऐसा कर रहे हैं तो कुछ ने कहा, वह थोड़े समय के दूरी बनाकर मन को शांत रखना चाहते हैं. इस दौरान सोशल मीडिया पर एक शब्‍द ‘सोशल मीडिया डिटॉक्‍स’ बार-बार नजर आ रहा था. सोशल मीडिया डिटॉक्‍स के बारे में जानने से पहले हम आपको बता दें कि इस समय देश में टेलीफोन इस्तेमाल करने वालों की संख्या 118.35 करोड़ से ज्यादा है. इनमें मोबाइल यूजर्स की संख्या 116.1 करोड़ से ज्यादा है. वहीं, लैंडलाइन उपभोक्ताओं की संख्या 2.17 करोड़ है.

देश में 63 करोड़ लोग करते हैं इंटरनेट का इस्‍तेमाल

देश में टेलीफोन घनत्व की बात करें तो प्रति 100 की आबादी पर 90.11 टेलीफोन यूजर्स हैं. इनमें 88.46 मोबाइल और 1.65 लैंड लाइन यूजर्स हैं. सबसे ज्यादा टेलीफोन वाला राज्य दिल्ली है. जहां घनत्व 100 लोगों पर 174.8 कनेक्‍शन का है. देश के शहरी हिस्से में 100 लोगों पर मोबाइल घनत्‍व 155.49 है. वहीं, ग्रामीण भारत में ये आंकड़ा 57.13 का है. लैंडलाइन के मामले में शहरी क्षेत्र में 4.46 और गांव में 0.34 टेलीफोन कनेक्शन हैं. देश में कुल इंटरनेट इस्तेमाल करने वालों की संख्या 63.67 करोड़ है. इनमें शहरी क्षेत्र में 40.97 करोड़ और ग्रामीण क्षेत्र में 22.70 करोड़ लोग इंटरनेट चलाते हैं. इंटरनेट इस्‍तेमाल करने वाले लोग किसी न किसी सोशल मीडिया प्‍लेटफॉर्म का इस्‍तेमाल जरूर करते हैं

युवाओं में अवसाद का कारण बन रहा सोशल मीडिया

सोशल मीडिया का बहुत ज्‍यादा इस्तेमाल करना या आदी होना हमें बीमार कर रहा है. सोशल मीडिया शुरुआत में एकदूसरे से आसानी से जुड़ने का साधन था. वहीं, अब ये अवसाद (Depression) और चिंता (Anxiety) का जरिया बन गया है. सोशल मीडिया आज हमारे निजी जीवन, रिश्ते और स्वास्थ्य (Health) के लिए भी खतरनाक साबित हो रहा है. कुछ अध्ययनों में बताया गया है कि सोशल मीडिया किशोरों और युवाओं में अवसाद का कारण बन रहा है. 25 वर्ष से कम उम्र के 75% युवा डिप्रेशन की चपेट में हैं. ये हमारी नींद पर भी असर डाल रहा है. ऐसे में सोशल मीडिया मानसिक तनाव (Tension) का भी बड़ा कारण बन रहा है. लिहाजा, जरूरी है कि हम सोशल मीडिया के ज्‍यादा इस्‍तेमाल से पड़ने वाले निगेटिव इफेक्ट को डिटॉक्स करें.

आभासी दुनिया में ज्‍यादा सहज हैं तो डिटॉक्‍स जरूरी

अब सवाल उठता है कि सोशल मीडिया डिटॉक्‍स क्‍या है? जब हम सोशल मीडिया के जरिये जरूरत से ज्‍यादा अपनी भावनाओं, अपनी गतिविधियों, खुशियों, तकलीफों को साझा करने लगते हैं और व्‍यवहारिक जीवन में लोगों से कटने लगते हैं तो मान लीजिए कि डिटॉक्‍स की जरूरत आ गई है. सोशल मीडिया की आभासी दुनिया से कटकर वास्‍तविक जीवन में लोगों से मिलना-जुलना, परिवार को ज्‍यादा समय देना, अपनों की बातों को आमने-सामने बैठकर सुनना और उन्‍हें अपनी सुनाना ही सोशल मीडिया डिटॉक्‍स है. मोबाइल का कम से कम इस्‍तेमाल कर वास्‍तविक जीवन से जुड़े रहना ही सोशल मीडिया डिटॉक्‍स है. जब आप अकेले रहकर सोशल मीडिया के जरिये लोगों से जुड़े रहने में ज्‍यादा सहज महसूस करने लगें तो मान लीजिए आपको डिटॉक्‍स की जरूरत है. कुछ लोग इस कारण अपनों से दूर होते जाते हैं और अकेलेपन के कारण असुरक्षा की भावना से घिरने लगते हैं.

अलग होने लगता है ऑनलाइन-ऑफलाइन व्‍यक्तित्‍व

सोशल मीडिया डिटॉक्‍स के लिए सबसे जरूरी है कि आप अपने स्‍मार्ट फोन (Smart Phones) का कम से कम या बहुत ही ज्‍यादा जरूरी होने पर इस्‍तेमाल करें. अगर आपको नींद के समय भी मोबाइल पर काम करते रहने, सुबह उठते ही मोबाइल चेक करने की आदत है तो तुरंत सोशल मीडिया डिटॉक्‍स के लिए कदम उठाना जरूरी है. कई लोगों में सोशल मीडिया पर लगे रहने के कारण भूख की कमी (Loss of Appetite) या ज्‍यादा खाने की आदत (Overeating) पड़ जाती है. वहीं, कुछ लोग सोशल मीडिया के इस्‍तेमाल के दौरान शराब, तंबाकू का ज्‍यादा इस्‍तेमाल करने लगते हैं. देर रात तक सोशल मीडिया पर व्‍यस्‍त रहने के कारण कुछ लोगों को सुबह उठने में भी खासी दिक्‍कत होती है. सोशल मीडिया के बहुत ज्‍यादा इस्‍तेमाल के कारण कुछ लोगों के ऑनलाइन और ऑफलाइन व्‍यक्तित्‍व बिलकुल अलग नजर आते हैं. ऐसे लोगों को बिना देरी किए सोशल मीडिया डिटॉक्‍स को अपनाना चाहिए.

जरूरत से ज्‍यादा जानकारी बनती है तनाव का कारण

सोशल मीडिया पर कुछ लोग ज्‍यादा लाइक्‍स (Likes) के चक्‍कर में वही लिखते हैं, जो दूसरों को अच्छा लगता है. ऐसे में धीरे-धीरे उनकी अपनी पहचान (Identity), सोच (Thinking) और व्‍यक्तित्‍व (Personality) खोने लगता है. लाइक और कमेंट के चक्कर में कुछ लोग सेल्फ सेंट्रिक होने लगते हैं. इसका असर उनकी असल जिंदगी में भी साफ नजर आने लगता है. सोशल मीडिया पर मिलने वाली जरूरत से ज्‍यादा जानकारी या फर्जी सूचनाएं (Fake Information) मानसिक शांति को नुकसान पहुंचती हैं. अधिक जानकारी, गपशप, गलत खबरें पहले तनाव और बाद में डिप्रेशन का कारण बन जाती है.

डिटॉक्‍स के लिए क्‍या करें और क्‍या होंगे फायदे

  • डिटॉक्स के लिए सोशल मीडिया का सीमित इस्तेमाल करें. दिनभर में 1-2 घंटे या जरूरत पड़ने पर ही यूज करें. काम करते वक्त मोबाइल से दूर रहें. अपने परिवार, दोस्तों के साथ अधिक समय बिताएं. एक्सरासइज और योग जरूर करें. गेम्स और इस्तेमाल नहीं किए जाने वाले ऐप्स को डिलिट कर दें. इसके अलावा व्हाट्सएप, फेसबुक, ट्विटर जैसी सोशल साइट्स पर कम समय बिताएं. ज्‍यादा से ज्‍यादा किताबें पढ़ें. परिवार के साथ घूमने जाएं.
  • सोशल मीडिया डिटॉक्स के बाद सबसे पहले आपको सही समय पर गहरी नींद आएगी. इससे आपको तनाव कम होगा. दिमाग शांत होगा और आप ज्‍यादा एनर्जेटिक महसूस करेंगे. आप खुद को ज्‍यादा समय दे पाएंगे और आपको सेल्‍फ रियलाइजेशन का वक्‍त मिलेगा. इससे आपके आत्‍मविश्‍वास में बढ़ोतरी होगी और काम में ज्‍यादा मन लगेगा. तनावमुक्‍त होने और अच्‍छी नींद से कई तरह की बीमारियां दूर रहेंगी. आप अपने परिवार को ज्‍यादा समय देकर रिश्‍ते खराब होने से बचा पाएंगे.
  • जब भी आपको अपने सोशल मीडिया के फ़ीड को देखते हुए या देखने के बाद मूड में निगेटिविटी नजर आने लगे तो इसका मतलब है कि आपको सोशल मीडिया डिटॉक्स की जरूरत है। यदि आपको अपनी फ़ीड चेक करते हुए या करने के बाद कुछ ऐसा महसूस हो, तो सोशल मीडिया से दूरी बना लेना उचित है –
  • जलन, असुरक्षा जैसे भाव महसूस होने लगे
  • यदि आपको गुस्सा आने लगे
  • रात में नींद कम आने लगे
  • बार-बार फोन की ओर हाथ बढ़ने लगे
  • जब दोस्त/फैमिली शिकायत करने लगे कि यार तुम तो बहुत ज्यादा फोन पर रहते हो।

क्या हैं सोशल मीडिया डिटॉक्स के फायदे

शोध कहते हैं कि सोशल मीडिया डिटॉक्स से लोगों की मेंटल हेल्थ में व्यापक सुधार आया है। इससे फिजिकल हेल्थ में भी सुधार देखा गया है। आइए विस्तार से सोशल मीडिया डिटॉक्स के फायदे के बारे में जानते हैं।

मूड में सुधार

सोशल मीडिया से दूरी बना लेने पर लोगों के मूड में आश्चर्यजनक तरीके से बदलाव पाया गया है। शोध बताते हैं कि जब लोग सोशल मीडिया से दूरी बना लेते हैं, तो उन्हें बेहतर महसूस होता है।

कम एंजायटी

सोशल मीडिया डिटॉक्स का एक बड़ा फायदा एंजायटी का कम हो जाना है।

फोकस का बढ़ना

अमुमन जब लोगों को समझ नहीं आता कि वे क्या करें, तो उनका हाथ अपने आप मोबाइल फोन की ओर बढ़ जाता है। बिना किसी काम के घंटों तक स्क्रॉल करने से आपका ध्यान और कम होता जाता है। इसीलिए सोशल मीडिया डिटॉक्स आपके फोकस को बढ़ाने का काम करता है।

क्रिएटिविटी में बूस्ट

सोशल मीडिया डिटॉक्स से आपकी क्रिएटिविटी बढ़ती है। आपको फ़्री समय मिलता है और आप नई हॉबी ट्राय करते हैं।

सबसे अलग होने का डर होता है दूर

सोशल मीडिया डिटॉक्स आपको उस फीलिंग से दूर ले जाता है कि सब लोग ऐसा कर रहे हैं और मैं नहीं कर पा रही हूं। सोशल मीडिया से दूरी करके आप खुद को नियंत्रित कर सकते हैं।

मजबूत सोशल कनेक्शन

सोशल मीडिया डिटॉक्स करके आप असल में लोगों के करीब आ सकती हैं। आभासी दुनिया के लोगों से फिजिकली मिलना लगभग असंभव है। सोशल मीडिया डिटॉक्स करके आप असल जिंदगी के लोगों के साथ समय बिताने का मौका मिलता है और आपकी बॉन्ड मजबूत बनती है।

गहरी और पर्याप्त नींद

साइंस कहता है कि सोशल मीडिया के ज्यादा इस्तेमाल से नींद की क्वालिटी पर असर पड़ता है। स्क्रीन टाइम कम करने से नींद अच्छी आती है और स्वास्थ्य भी सही रहता है।

आंखें रहती हैं स्वस्थ

देर तक स्क्रीन को स्क्रॉल करने से आपकी आंखें स्क्रीन पर चिपकी रहती हैं। ऐसे में आंखों पर अतिरिक्त दबाव पड़ता है और आंखें थक जाती हैं, आंखों पर चश्मा लग जाता है। सोशल मीडिया डिटॉक्स करने से आपकी आंखों को आराम मिलता है।

सही पॉश्चर

यह शायद अजीब लग रहा होगा लेकिन बिल्कुल सच है। सोशल मीडिया डिटॉक्स करने से आपके पॉस्चर में भी सुधार आता है और गर्दन में होने वाला दर्द भी कम होता है।

कैसे करें सोशल मीडिया डिटॉक्स

सोशल मीडिया डिटॉक्स एक दिन या कुछ हफ्तों या महीने भर के लिए किया जा सकता है।

नोटिफिकेशन करें बंद : सोशल मीडिया डिटॉक्स करने का सबसे पहला चरण है नोटिफिकेशन को ऑफ कर देना।

सोशल ऐप डिलीट करना : सोशल मीडिया डिटॉक्स को शुरू करने का सबसे बढ़िया रास्ता है कि अपने फोन से सिर्फ एक सोशल ऐप छोड़कर बाकी सारे प्लेटफार्म को डिलीट कर दिया जाए।

सोशल मीडिया व्यू टाइम को सीमित करना : सोशल मीडिया ऐपटॉक्स को शुरू करने का एक बढ़िया तरीका यह है कि आप दिन के कुछ समय अपने फोन से दूरी बनाए रखें।

बॉटम लाइन

सोशल मीडिया से ब्रेक लेने को सोशल मीडिया डिटॉक्स कहा जाता है। इसके लिए कोई सेट टाइमलाइन नहीं है, आप अपने हिसाब से एक दिन, एक हफ्ता या महीना चुन सकती हैं। सोशल मीडिया से दूरी बनाने से आपको एंजाइटी से छुटकारा मिलता है और साथ ही आपके मूड और फोकस को बूस्ट मिलता है। इससे आपकी नींद भी अच्छी होती है, आंखों पर दबाव कम पड़ता है और पॉस्चर में सुधार होता है।

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