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World Leprosy Day 2024 : क्या है कुष्ठ रोग?क्या होते हैं शुरुआती लक्षण, जानें सबकुछ


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नई दिल्लीः कुष्ठ रोग एक ऐसी बीमारी है जिसके बारे में समाज में अलग-अलग तरह की भ्रांतियां, मिथक और गलत जानकारियां फैली हुई हैं। परिणामस्वरूप, लोग इन गलत जानकारियों के आधार पर कुष्ठ रोग के मरीजों के बारे में गलत धारणाएं (Stigmas related to leprosy in hindi) बना लेते हैं और उनसे दूर रहते हैं। गौरतलब है कि कुष्ठ रोग को छूत की बीमारी मानकर लोग हमेशा से कुष्ठ रोग के मरीजों का तिरस्कार करते रहे हैं और उनसे दूरी बनाकर रखते आए हैं।कुष्ठ रोग, वैश्विक स्तर पर गंभीर स्वास्थ्य समस्या रही है। बीमारी के बारे में लोगों में बढ़ी जागरूकता और उपचार की सहज उपलब्धता के चलते इसके मामलों में अब काफी कमी आई है। कुष्ठ रोग की व्यापकता 1980 के दशक में 50 लाख से अधिक मामलों से घटकर साल 2020 में 1.30 लाख के करीब रह गई है। हालांकि अब भी कई हिस्सों में ये रोग बड़ी चुनौती बनी हुई है।

कुष्ठ रोग यानी हान्सेंस डिजीज

इस बीमारी को ‘हान्सेंस डिजीज’ (Hansen’s Disease) भी कहा जाता है, जिसे नॉर्वियन चिकित्सक, गेरहार्ड हेनरिक आर्मोर हेंसन (Gerhard Henrik Armauer Hansen) के नाम पर रखा गया है। इन्होंने उस समय की प्रचलित धारणा को खारिज कर दिया था कि कुष्ठ रोग (Leprosy Disease) एक वंशानुगत बीमारी थी। उन्होंने लोगों को बताया कि यह बीमारी वंशानुगत नहीं, बल्कि एक बैक्टीरिया के कारण होती है। ”विश्व कुष्ठ दिवस” (world leprosy day) का उद्देश्य इस दृष्टिकोण को बदलना है और इस तथ्य के बारे में सार्वजनिक जागरूकता बढ़ाना है कि कुष्ठ रोग (Leprosy Disease) को अब आसानी से रोका और ठीक किया जा सकता है। (ways to prevent leprosy in hindi)

विश्व कुष्ठ दिवस 2024 का थीम

विश्व कुष्ठ दिवस 2024 का थीम है “कुष्ठ रोग को हराओ” है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) कहता है, कुष्ठ रोग से जुड़े कलंक को मिटाने और रोग से प्रभावित लोगों को उपचार के लिए प्रेरित करने और उनकी गरिमा को बढ़ाना के लिए ये दिन महत्वपूर्ण है।

घटी है रोगियों की संख्या

विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, दुनियाभर में कुष्ठ रोग से संक्रमित अधिकांश मामले अफ्रीका और एशिया में हैं। अमेरिका में हर साल लगभग 100 लोगों में इसका निदान किया जा रहा है। भारत में भी कुष्ठ बड़ी समस्या रही है। यहां साल 2014-15 में कुष्ठ रोग के 1,25,785 मामलों की तुलना में 2021-22 में यह घटकर 75,394 रह गई है। रोग को लेकर देश में चलाए गए व्यापक जागरूकता अभियान का सकारात्मक असर देखा जा रहा है।

कुष्ठ रोग के बारे में जानिए

कुष्ठ एक संक्रामक रोग है जो विशेषकर हाथ-पैर या त्वचा पर गंभीर विकृत घाव का कारण बनता है, कुछ लोगों में ये तंत्रिकाओं की क्षति का कारण भी बनता है। कुष्ठ रोग सदियों से चली आ रही बीमारी है, लेकिन यह बहुत संक्रामक नहीं होता है। अनुपचारित कुष्ठ रोग से पीड़ित किसी व्यक्ति की नाक और मुंह से निकलने वाली बूंदों के निकट और बार-बार संपर्क में आने के कारण ही इसका संक्रमण फैलने का खतरा रहता है। वयस्कों की तुलना में बच्चों में कुष्ठ रोग होने की आशंका अधिक होती है।

क्या है कारण

यह संक्रामक रोग संक्रमित व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में फैलता है। इस रोग से ग्रस्त व्यक्ति अगर खुली हवा में खांसता है, तो बैक्टीरिया आसपास की हवा में तरल पदार्थ की सूक्ष्म बूंदों के रूप में फैल जाता है और आसपास मौजूद व्यक्ति को संक्रमित करता है। यह संक्रमण इस बात पर भी निर्भर करता है कि सामने मौजूद व्यक्ति की रोग प्रतिरोधक क्षमता कितनी मजबूत है। यानी कमजोर रोग प्रतिरोधक क्षमता वाले व्यक्ति को यह जल्दी संक्रमित करता है। ध्यान देने वाली बात यह है कि यह संक्रमित व्यक्ति से हाथ मिलाने या उससे गले मिलने से नहीं फैलता है। न ही यह कुष्ठ रोग से संक्रमित गर्भवती मां से उसके होने वाले बच्चे में फैलता है।

दो प्रकार हैं प्रमुख

यह रोग मुख्य रूप से दो प्रकार का होता है। पहला ट्यूबरक्युलॉइड और दूसरा लेप्रोमेटस। कुष्ठ रोग के ज्यादातर प्रकार इन्हीं दोनों के मिश्रण होते हैं। इन दोनों ही प्रकारों में त्वचा पर घाव उभरता है। लेप्रोमेटस को अधिक गंभीर माना जाता है, जिसमें शरीर के प्रभावित हिस्से का मांस बढ़ने लगता है। यानी वहां गांठ बनने लगती है।

कुष्ठ रोग के लक्षण और कारण

यह बीमारी धीरे-धीरे सामने नजर आती है। किसी-किसी में इसके लक्षण (symptoms of leprosy in Hindi) एक साल में दिखने लगते हैं, तो कई बार सालों तक लक्षण नजर नहीं आते हैं। कुछ निम्न लक्षणों से पहचानें कुष्ठ रोग से कहीं आप तो नहीं हो रहे ग्रस्त, इन लक्षणों के दिखने पर चिकित्सक को दिखाएं। इस तरह समय पर और जल्द उपचार शुरू किया जा सकेगा जिससे इस बीमारी को गम्भीर होने से रोका जा सकता है।कुष्ठ रोग मुख्य रूप से त्वचा को प्रभावित करता है। कुछ लोगों में इसके कारण मस्तिष्क और रीढ़ की हड्डी के बाहर की नसों से संबंधित समस्याएं भी हो सकती हैं। मुख्य लक्षणों में विकृत रूप से त्वचा में घाव, गांठ या उभार हो सकते हैं। घावों में पीलापन अधिक देखा जाता है। रोग बढ़ने पर भौहें/पलकें गायब होने, दर्द, लालिमा और जलन की दिक्कत भी बढ़ जाती है।कुष्ठ रोग धीमी गति से बढ़ने वाले माइकोबैक्टीरियम लेप्राई (एम. लेप्री) नामक बैक्टीरिया के कारण होता है।

छूने से फैल जाएगा कोढ़?

डर्मेटोलॉजिस्ट डॉक्टर आकृति गुप्ता के मुताबिक, सिर्फ रोगी की त्वचा के स्पर्श से कुष्ठ रोग नहीं होता है। दरअसल आकस्मिक या कुछ समय तक त्वचा के स्पर्श से कुष्ठ रोग के जीवाणु नहीं फैलते हैं, जैसेः हाथ मिलाना या गले लगना या फिर बस में अगल-बगल बैठना।माना जाता है कि प्रभावित व्यक्तियों के साथ लंबे समय तक संपर्क के दौरान नाक और मुंह से निकलने वाली बूंदों के माध्यम से कुष्ठ रोग फैलता है। अब यह अधिकतर मामलों में पूरी तरह से ठीक होने वाली बीमारी है।

फिर कैसे फैलता है कोढ़?

कुष्ठ रोग माइकोबैक्टीरियम लेप्री (एम. लेप्री) नामक बैक्टीरिया के धीमी गति से बढ़ने वाले प्रकार के कारण होता है। यह बिल्कुल स्पष्ट नहीं है कि कुष्ठ रोग कैसे फैलता है। डॉक्टर आकृति गुप्ता ने बताया कि जब कुष्ठ रोग से ग्रस्त व्यक्ति खांसता या छींकता है, तो वे एम. लेप्री बैक्टीरिया युक्त बूंदों को फैला सकता है।कुष्ठ रोग को प्रसारित करने के लिए संक्रमित व्यक्ति के साथ निकट शारीरिक संपर्क आवश्यक है। यह किसी संक्रमित व्यक्ति के साथ आकस्मिक संपर्क से नहीं फैलता है, जैसे हाथ मिलाना, गले मिलना, या भोजन के दौरान, बस में या टेबल पर उनके बगल में बैठने से।

कुष्ठ का उपचार

  • कुष्ठ रोग का उपचार संभव है और ये इसके प्रकार पर निर्भर करता है। संक्रमण को ठीक करने के लिए एंटीबायोटिक्स का उपयोग किया जाता है, आमतौर पर 6 महीने से एक साल तक इलाज चल सकता है। हालांकि अगर रोगी को तंत्रिकाओं में क्षति की समस्या है तो इसके लिए अन्य उपचार को प्रयोग में लाया जाता है।
  • पिछले दो दशकों में इस बीमारी से पीड़ित 16 मिलियन (1.6 करोड़) लोग ठीक हो चुके हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन कुष्ठ रोग से पीड़ित सभी लोगों का निःशुल्क उपचार प्रदान करता है।
  • कुष्ठ रोग लाइलाज नहीं है। इसका इलाज मल्टी-ड्रग थेरेपी या एमडीटी (MDT), एंटीबायोटिक्स आदि के जरिए संभव है, जो इस संक्रमण को कम करती है। भारत में भी इसका निःशुल्क इलाज मौजूद है, लेकिन जागरूकता और जानकारी की कमी के कारण लोग इलाज नहीं कराते हैं।
  • जिन लोगों को कुष्ठ रोग होता है, यदि उन्हें सही इलाज मिले, तो वे इस संक्रमण से मुक्त हो सकते हैं। कुष्ठ रोगी ठीक होने के बाद बिल्कुल आम लोगों की तरह स्वस्थ जीवन जी सकते हैं।

जनवरी महीने के हर आखिरी रविवार को ”विश्व कुष्ठ दिवस’ मनाया जाता है

जनवरी महीने के हर आखिरी रविवार को ”विश्व कुष्ठ दिवस” (World Leprosy Day ) मनाया जाता है, लेकिन भारत में यह दिवस 30 जनवरी को सेलिब्रेट किया जाता है। इस दिन की शुरुआत 1954 में फ्रांसीसी परोपकारी (French philanthropist) और लेखक राउल फोलेरे (Raoul Follereau) द्वारा की गई थी, ताकि इस घातक बीमारी के बारे में वैश्विक जागरूकता बढ़ाई जा सके। साथ ही लोगों तक इस तथ्य को पहुंचाया जा सके कि इस रोग को रोके जाने के साथ ही इसका इलाज (treatments of leprosy in hindi) भी संभव है। भारत में ‘विश्व कुष्ठ दिवस” (world leprosy day) की तारीख को भारतीय स्वतंत्रता सेनानी महात्मा गांधी जी की हत्या की वर्षगांठ (30 जनवरी, 1948) के दिन पर रखा गया। ऐसा इसलिए, क्योंकि गांधी जी ने अपने जीवनकाल के दौरान, कुष्ठ रोग से पीड़ित लोगों की बेहतरी की दिशा में अथक प्रयास किए थे।

इलाज कराने में ना करें देर 

यदि किसी को कुष्ठ रोग हुआ है, तो उनका इलाज तुरंत कराना चाहिए। इलाज में देरी करने से शरीर अपंग होने का रिस्क बढ़ जाता है। नर्व्स भी कई बार क्षतिग्रस्त हो जाते हैं, जिससे हाथों, पैरों की उंगलियां टेढ़ी-मेढ़ी और गलने लगती हैं। आंखों की पलकें, भौहों के बाल गिरने लगते हैं। लिम्ब (Limbs) पर असर होता है। संक्रमण अधिक बढ़ने से ग्लूकोमा, अंधापन, किडनी से संबंधित समस्याएं आदि कई शारीरिक समस्याएं हो सकती हैं। ऐसे में जितनी जल्दी हो, इसका इलाज शुरू कर देना चाहिए।

उपचार के बिना या कुष्ठ रोग को अनदेखा करने पर त्वचा, नसों, हाथ, पैर और आंखों को स्थायी रूप से नुकसान पहुंचा सकता है। जैसे-

  1. अंधापन या ग्लूकोमा
  2. इरिटिस
  3. बालों का झड़ना
  4. बांझपन
  5. चेहरे की विकृति (स्थायी सूजन, धक्कों और गांठों सहित)
  6. पुरुषों में स्तंभन दोष और बांझपन
  7. ​​किडनी का खराब होना
  8. मांसपेशियों में कमजोरी, जिसके कारण हाथ पंजे जैसे हो जाते हैं या अपने पैरों को मोड़ने में सक्षम नहीं हो पाते हैं
  9. आपकी नाक के अंदर स्थायी क्षति
  10. आपके मस्तिष्क और रीढ़ की हड्डी के बाहर की नसों को स्थायी क्षति, जिसमें हाथ और पैर शामिल हैं

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