x
भारत

हजारों वर्षों से बर्फ में दबे ‘जॉम्बी वायरस’,48000 साल से छिपे हैं बर्फ के नीचे


सरकारी योजना के लिए जुड़े Join Now
खबरें Telegram पर पाने के लिए जुड़े Join Now

नई दिल्ली – कोरोना महामारी का दौर अभी लोग भूल भी नहीं पाए हैं कि एक नई महामारी का खतरा धरती पर मंडराने लगा है. हाल ही में वैज्ञानिकों ने हजारों वर्षों से बर्फ में दबे ‘जॉम्बी वायरस’ से नई महामारी फैलने की आशंका जताई हैं. वैज्ञानिकों ने चेतावनी देते हुए कहा है क‍ि गर्म हो रही पृथ्वी, शिपिंग, माइनिंग जैसी मानवीय गतिविधियों में हो रही इस वृद्धि से जल्द ही साइबेरिया में पर्माफ्रॉस्ट में फंसे प्राचीन ‘जॉम्बी वायरस’ बाहर निकल सकते हैं और नई महामारी का कारण बन सकते हैं. बता दें कि पर्माफ्रॉस्ट पृथ्वी की सतह पर या उसके नीचे स्थायी रूप से जमी हुई परत को कहते हैं. इस परत में मिट्टी, बजरी और रेत होती है, जो आमतौर पर बर्फ से एक साथ बंधी होती है.

साइबेरियाई पर्माफ्रॉस्ट से लिए गए नमूनों से कुछ वायरस

इस वायरस के खतरों को अच्छे से समझने के लिए एक वैज्ञानिक ने पिछले साल साइबेरियाई पर्माफ्रॉस्ट से लिए गए नमूनों से कुछ वायरस को फिर जिंदा किया गया था.ये वायरस जमीन में जमे हुए हजारों साल बिता चुके हैं.ऐक्स-मार्सिले यूनिवर्सिटी के आनुवंशिकीविद् जीन-मिशेल क्लेवरी ने कहा, ‘फिलहाल महामारी के खतरों का विश्लेषण उन बीमारियों पर केंद्रित है, जो दक्षिणी क्षेत्रों में उभर सकती हैं और फिर उत्तर में फैल सकती हैं.उत्तर में उभर कर दक्षिण में फैलने वाली बीमारियों पर फोकस नहीं है और मेरा मानना है कि यह भूल है.उत्तर में ऐसे वायरस हैं जो नई महामारी शुरू कर सकते हैं.

विश्वविद्यालय के आनुवंशिकीविद् जीन-मिशेल क्लेवेरी ने गार्जियन

विश्वविद्यालय के आनुवंशिकीविद् जीन-मिशेल क्लेवेरी ने गार्जियन के हवाले से कहा कि फिलहाल, महामारी के खतरों का विश्लेषण उन बीमारियों पर केंद्रित है जो दक्षिणी क्षेत्रों में उभर सकती हैं और फिर उत्तर में फैल सकती हैं. उन्‍होंने कहा, इसके विपरीत, उस प्रकोप पर बहुत कम ध्यान दिया गया है जो सुदूर उत्तर में उभर सकता है और फिर दक्षिण की ओर बढ़ सकता है और मेरा मानना है कि यह एक भूल है. वहां ऐसे वायरस हैं जो मनुष्यों को संक्रमित करने और एक नई बीमारी का प्रकोप शुरू करने की क्षमता रखते हैं.इस पर सहमति जताते हुए रॉटरडैम में इरास्मस मेडिकल सेंटर के वायरोलॉजिस्ट मैरियन कूपमैन्स ने कहा कि ‘हम नहीं जानते कि पर्माफ्रॉस्ट में कौन से वायरस मौजूद हैं, लेकिन मुझे लगता है कि इस बात का वास्तविक जोखिम है कि पोलियो के एक प्राचीन रूप के कारण बीमारी फैलने की संभावना हो सकती है. पर्माफ्रॉस्ट उत्तरी गोलार्ध के पांचवें हिस्से को कवर करता है और यह मिट्टी से बना होता है. यहां लंबे समय तक शून्य से काफी नीचे तापमान होता है. वैज्ञानिकों ने पता लगाया है कि कुछ परतें सैकड़ों-हजारों वर्षों से जमी हुई हैं.

मिला था 48,500 साल पुराना वायरस

पिछले साल इससे जुड़ी जांच के बाद पब्लिश की गई जानकारी में पता चला सात अलग-अलग साइबेरियाई स्थानों से कई वायरस संक्रमण फैलाने में सक्षम थे.एक वायरस का नमूना 48,500 साल पुराना है. क्लेवरी ने कहा, ‘जिन वायरस को हमने अलग किया था, वे केवल अमीबा को संक्रमित करने में सक्षम थे और मनुष्यों के लिए कोई खतरा नहीं थे.लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि वर्तमान में पर्माफ्रॉस्ट में जमे वायरस ऐसा करने में सक्षम नहीं हो सकते.उत्तरी गोलार्ध का पांचवां हिस्सा पर्माफ्रॉस्ट से ढका है। यह एक टाइम कैप्सूल जैसा है, जिसमें कई प्राचीन जीवों के अवशेष समेत ममीकृत वायरस हैं.

Back to top button