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ISRO रचा इतिहास लॉन्च किया मिशन XPoSat, ब्लैक होल का रहस्य खोलेगा ISRO


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नई दिल्ली – देश के लोग पूजा-अर्चना के साथ साल 2024 के पहले दिन की शुरुआत कर रहे थे तो वहीं दूसरी तरफ भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) में भी लोग दुआ मांग रहे थे. हालांकि ये दुआ नए साल के लिए नहीं बल्कि इसरो की ओर से लिखी जा रही नई इबारत के लिए थी, जो उसने 1 जनवरी को एक्स-रे पोलेरिमीटर सैटेलाइट’ (एक्सपोसैट) मिशन के प्रक्षेपण के साथ पूरी की है.श्रीहरिकोटा से एक्सपीओसैट मिशन के प्रक्षेपण के बाद इसरो के चीफ एस. सोमनाथ ने इसकी लॉन्चिंग टीम के सदस्यों को संबोधित किया. उन्होंने मिशन के प्रक्षेपण की सराहना करते हुए कहा कि नए साल की शुरुआत पीएसएलवी के एक रोमांचक और सफल मिशन के साथ हुई है और यह एक सफल मिशन होगा.

10 करोड़ से ज्यादा ब्लैक होल

हमारी आकाशगंगा मिल्की वे में 10 करोड़ से ज्यादा ब्लैक होल हो सकते हैं.हालांकि, इनका पता लगाना बेहद कठिन होता है.मिल्की वे के बीच में एक बहुत बड़ा ब्लैक होल है जिसका नाम Sagittarius A* है.ब्लैक होल पर अध्ययन करने के लिए भारतीय अंतरिक्ष एजेंसी इसरो सोमवार को ने मिशन XPoSat लॉन्च किया है.माना जा रहा है कि इसके जरिए ब्लैक होल से जुड़ी कई नई जानकारियां सामने आएंगी और ब्रह्मांड के कई रहस्य खुलेंगे।किसी ब्लैक होल की सबसे पहली तस्वीर साल 2019 में इवेंट होराइजन टेलीस्कोप से ली गई थी. धरती से करीब पांच करोड़ प्रकाश वर्ष दूर एम87 नामक गैलेक्सी के बीच में मौजूद इस ब्लैक होल की तस्वीर ने दुनिया भर के वैज्ञानिकों को हैरान कर दिया था.ब्लैक होल्स की तीन परत होती हैं। ये आउटर और इनर इवेंट होराइजन और सिंगुलेरिटी हैं.इवेंट होराइजन किसी ब्लैक होल की बाउंड्री होती है. इसे ब्लैक होल का मुंह भी कहा जाता है. अगर कोई पदार्थ इवेंट होराइजन में पहुंच जाता है तो वह वापस नहीं निकल सकता.

कैसे बनते हैं ब्लैक होल्स

ब्लैक होल दो तरीके से बनते हैं.पहले तरीके के अनुसार जब किसी बहुत बड़े तारे का पूरा ईंधन यानी हाइड्रोजन खत्म हो जाता है तो उसमें एक विस्फोट होता है, जिसके बाद वह एक बहुत घना ऑब्जेक्ट बनता है जिसे ब्लैक होल कहा जाता है.हालांकि, हर तारा फटने के बाद ब्लैक होल नहीं बनाता.जिन तारों के मरने के बाद ब्लैक होल बन सकता है उनका द्रव्यमान हमारे सूर्य से 8 से 10 गुना ज्यादा होता है.इनके फटने के बाद बने ब्लैक होल को स्टेलर मास ब्लैक होल कहते हैं।इसके अलावा ब्लैक होल बनने का दूसरा कारण अंतरिक्ष में गैसों का सीधा टकराव हो सकता है. इस प्रक्रिया से बनने वाले ब्लैक होल बहुत ज्यादा विशाल होते हैं और इनका द्रव्यमान हमारे सूर्य से 1000 से एक लाख गुना गुना तक अधिक हो सकता है.

अंतरिक्ष तल से भरी सफल उड़ान

पीएसएलवी ने यहां पहले अंतरिक्ष तल से सुबह नौ बजकर 10 मिनट पर उड़ान भरी थी. प्रक्षेपण के लिए 25 घंटे की उलटी गिनती खत्म होने के बाद 44.4 मीटर लंबे रॉकेट ने चेन्नई से करीब 135 किलोमीटर दूर इस अंतरिक्ष तल से उड़ान भरी और इस दौरान बड़ी संख्या में यहां आए लोगों ने जोरदार ढंग से तालियां बजायीं.

क्या है XPoSat मिशन का मकसद?

बता दें कि इसरो ने सोमवार को PSLV-C58 XPoSat मिशन लॉन्च किया है. XPoSat का मकसद अलग-अलग एस्ट्रोनॉमिकल सोर्सेज जैसे ब्लैकहोल, न्यूट्रॉन स्टार्स, एक्टिव गैलेक्टिक न्यूक्लियाई, पल्सर विंड नेबुला आदि से निकलने वाली रेडिएशन की स्टडी करना है.

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