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Kho Gaye Hum Kahan Review : सोशल मीडिया की मुस्कुराते चेहरों के पीछे छिपे दर्द की कहानी


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मुंबई – फिल्म के बारे में फिल्म तीन दोस्तों अहाना (अनन्या पांडे), इमाद (सिद्धान्त चतुर्वेदी) और नील परेरा (आदर्श गौरव) के बारे में है. फिल्म शुरू होते ही स्टैंडअप कॉमेडियन इमाद तीनों के बारे में थोड़ा-थोड़ा बता देते हैं. फिल्म की कहानी आज की जनरेशन के रहने के तौर-तरीकों और उसमें सोशल मीडिया के इन्फ्लुएंस के बारे में बात करती है. अहाना और इमाद फ्लैटमेट हैं, लेकिन वो रिलेशन में नहीं हैं. अहाना, रोहन के साथ रिलेशन में है. नील परेरा इन दोनों का बचपन का दोस्त है, वो एक जिम ट्रेनर है. तीनों साथ में हैं और तीनों अपनी-अपनी उलझनों में फंसे हुए हैं.

अहम किरदार का नाम है ‘सोशल मीडिया’

फिल्म में एक कैरेक्टर और भी है जिसे फिल्म का लीड कैरेक्टर भी कह सकते हैं. उसका कोई चेहरा नहीं हैं, लेकिन फिर भी वो इन तीनों की जिंदगियों को प्रभावित करता है. फिल्म के इस अहम किरदार का नाम है ‘सोशल मीडिया’. इमाद एक स्टैंडअप कॉमेडियन है, लेकिन वो टिंडर एडिक्ट है. उसे इमोशनल इंटिमेसी से डर लगता है.अहाना के पास जॉब है, लेकिन उसका रिलेशनशिप खतरे में है. ऐसे में असुरक्षा की भावना से परेशान अहाना अपने बॉयफ्रैंड को सोशल मीडिया पर स्टॉक करती है और उसके बारे में जानने की कोशिश में है. नील परेरा एक जिम ट्रेनर है जो अपने ‘सो कॉल्ड’ रिलेशनशिप के बारे में दुनिया को बता नहीं सकता. वो अपना गुस्सा फेक प्रोफाइल बनाकर रैंडम लोगों की तस्वीरों पर भद्दे कमेंट करके निकालता है. पूरी फिल्म सोशल मीडिया के इर्द-गिर्द ही घूमती है और आज की जनरेशन के इस एडिक्शन से जुड़ी परेशानियों और उलझनों को मीनिंगफुल तरीके से बताती है.

तीन दोस्तों की है कहानी

फिल्म ‘खो गए हम कहां’ तीन दोस्तों की कहानी है। कहानी भी ऐसी जो बीती सदी की फिल्म ‘मैंने प्यार किया’ की सबसे मशहूर लाइन, ‘एक लड़का और एक लड़की कभी दोस्त नहीं हो सकते’, को अपने किरदारों के पारदर्शी चरित्र चित्रण के जरिये तार तार करती चलती है। यहां एक लड़का और लड़की न सिर्फ दोस्त हैं बल्कि एक ही फ्लैट में रहते हैं और सिर्फ दोस्त ही बने रहते हैं। तीसरा सिरा इसका एक मध्यमवर्गीय युवक है। तीनों साथ साथ बोर्डिंग स्कूल में पढ़े और साथ साथ ही जिंदगी में आगे बढ़ने की कोशिशें कर रहे हैं। नील को अपना जिम खोलना है। अहाना नौकरी छोड़कर इस जिम का बिजनेस संभालना चाहती है। और, इमाद के पास इतना पैसा है कि वह इनके इस नए स्टार्टअप में निवेश कर सकता है। इस कारोबारी कहानी के समानांतर तीनों की तीन अलग अलग कहानियां चल रही हैं।

एक्टिंग

स्टोरीटेलिंग के तरीके के अलावा इस फिल्म का सबसे अहम पार्ट फिल्म के एक्टर हैं, जिन्होंने अपने-अपने रोल को बखूबी निभाया है. सबसे पहले बात करते हैं अनन्या पांडे की. अनन्या की एक्टिंग स्किल की झलक इसके पहले की फिल्मों में दर्शकों को दिख चुकी है. इस फिल्म में उनका किरदार उनकी एक्टिंग स्किल को ठीक से निखारकर सामने लाता है. असुरक्षा की भावना से जूझ रही लड़की का किरदार उन पर फबता है. ये कहना गलत नहीं होगा कि वो फिल्मों में लंबी दूरी तय करने वाली हैं. सिद्धांत चतुर्वेदी की बात करें तो बेहद वर्सटाइल हैं. ऐसा रोल उन्होंने कभी नहीं किया. एक स्टैंडअप कॉमेडियन का हावभाव कैसा होता है, इसे उन्होंने ठीक से समझा है. ‘गली बॉय’ का एमसी शेर के किरदार से लेकर ‘इनसाइड एज’ में एक गरीब क्रिकेटर के किरदारों तक और अब ‘खो गए हम कहां’ में इमाद के रोल में वो एक-दूसरे से बिल्कुल अलग रोल में दिखे हैं. वो भविष्य में एलीट एक्टर की लिस्ट में शामिल होने की उम्मीद बढ़ाते हैं. अब बात करें आदर्श गौरव की तो आप उन्हें जिम ट्रेनर के रूप में देखते समय ये स्वीकार ही नहीं कर पाएंगे कि ये वही एक्टर है, जिसने ‘व्हाइट टाइगर’ में एक छोटे से गांव से शहर आए शख्स का किरदार निभाया था. फिल्म में सीन की जरूरत के हिसाब से कब कैसा एक्सप्रेशन जाना चाहिए, ये अगर किसी को सीखना है तो आदर्श गौरव की ये फिल्म उसके लिए ट्यूशन का काम कर सकती है. फिल्म में कल्कि कोचलिन ने भी छोटे से रोल में अच्छा काम किया है.

सामाजिक दबाव का मानसिक संतुलन

बचपन में इमाद ने जो झेला, वह उसके दिमाग में अब भी ग्रंथि बनकर कहीं फंसा हुआ है। वह दूसरों को हंसाने में अपनी खुशी तलाशता है। साथ ही डेटिंग एप पर रोज नई लड़की भी पसंद करता रहता है। फिर उससे बड़ी उम्र की एक लड़की उससे टकराती है (यहां आपको ‘दिल चाहता है’ याद आ सकती है)। दोनों एक दूसरे को लेकर गंभीर भी हुआ चाहते हैं, लेकिन दोनों की अब तक की आदतें उनके संवाद की सबसे बड़ी अड़चन बनकर सामने आती हैं। नील को लगता है कि जिस जिम में वह काम कर रहा है, वह जिम उसका भी है। लेकिन, जिम का मालिक एक दिन उसे जता देता है कि वह सिर्फ वहां का एक ‘स्टाफ’ है। अहाना का अपना अलग जीवन संतुलन बिगड़ा हुआ है। उसका बॉयफ्रेंड उससे आगे निकल चुका है। उसके जीवन में नए लोग आ चुके हैं, लेकिन वह सोशल मीडिया पर उसे ‘स्टाक’ कर रही है। नकली आईडी बनाकर अपने करीबियों पर नजर रखना, उनकी खुशियों में अपने गम के कारण तलाशना और गुस्सा जताने के लिए सोशल मीडिया पर गुमनाम ट्रोल्स बनकर अपने ही करीबियों को परेशान करना, ये सब फिल्म ‘खो गए हम कहां’ की क्षेपक कथाएं हैं।

अनन्या पांडे जैसी ही है अहाना

अनन्या पांडे ने भी फिल्म ‘खो गए हम कहां’ में पहली बार साबित किया है कि अगर किरदार उनकी शख्सीयत जैसा ही हो और उनको सहज रूप से अपना नैसर्गिक अभिनय करने दिया जाए तो काम वह भी बेहतर कर सकती हैं। एक अभिनेत्री के तौर पर अनन्या ने इस फिल्म में पहली बार दर्शकों को पूरी तरह प्रभावित करने और अपने किरदार के साथ जोड़कर रखने में सफलता पाई है। सिद्धांत चतुर्वेदी को बस इस फिल्म में ऐसा कुछ करने को नहीं मिला जो उन्होंने अपनी पिछली फिल्मों में कर न लिया हो। सिद्धांत के लिए कहानियों का चयन आने वाले समय की बड़ी चुनौती है। ‘गली बॉय’ के बाद से उनका बतौर अभिनेता करियर ठहरा हुआ सा ही दिखता है। फिल्म ‘खो गए हम कहां’ में भी उनके हिस्से बस वह आखिरी स्टैंडअप कॉमेडी सीन ही आता है, जिसमें इमाद अपने बचपन की यादों का पहली बार सबके सामने खुलासा करता है।

क्या है खो गये हम कहां की कहानी?

खो गये हम कहां की कहानी के केंद्र में तीन दोस्त हैं- आहना (अनन्या पांडेय), इमाद (सिद्धांत चतुर्वेदी) और नील (आदर्श गौरव)। तीनों मुंबई में एक साथ रहते हैं। इमाद स्टैंडअप कॉमेडियन है और इस पेशे में कुछ बड़ा करने की कोशिश में जुटा है। आहना का ब्वॉयफ्रेंड रोहन है, जिसके साथ वो सुखी भविष्य के सपने संजो रही है।नील एक आरामदायक और रंगीन जिंदगी का सपना देख रहे हैं। वो जिम इंस्ट्रक्टर है। हालांकि, यह सब इतना आसान नहीं है। इनकी अपनी समस्याएं और चुनौतियां हैं, जिनका ये सामना कर रहे हैं। तीनों इससे निपट रहे हैं, लेकिन सोशल मीडिया उनकी ख्वाहिशों के रास्ते की बाधा बनता है। फिल्म जिंदगी पर इसके प्रभाव का चित्रण है।

संपादन, सिनेमैटोग्राफी और संगीत की औसत तिकड़ी

फिल्म ‘खो गए हम कहां’ तकनीकी रूप से ठीक ठाक फिल्म है। तनय साटम की सिनेमैटोग्राफी मुंबई की नाइट लाइफ को अच्छे से कैमरे में कैद करती है लेकिन ऐसी कहानियों को कहने के लिए जिस तरह के प्रयोगात्मक फ्रेम्स की जरूरत होती है, वह यहां नहीं है। नितिन बैद का संपादन कहानी की गति के हिसाब से है और हर किरदार व परिस्थिति को उसके वजन के अनुसार समय का सही बंटवारा करते चलता है। इस फिल्म का संगीत फिल्म देखने के माहौल को सुरमयी बनाता चलता है। अंकुर तिवारी व ओएफ-सवेरा ने फिल्म का संगीत आज की पसंद के हिसाब से ही बनाया, हालांकि फिल्म देखने के बाद गाना इसका कोई याद नहीं रह जाता। फिल्म संगीत की इन दिनों यही सबसे बड़ी त्रासदी है कि इन दिनों बन रहे फिल्मी गानों को फिल्म के अलावा सुन पाना एक चुनौती है। और, मनन भारद्वाज ने फिल्म ‘एनिमल’ में जो संगीत रचा है, उसके आसपास पहुंच पाना उनके समकालीन संगीतकारों के लिए एक लंबी लकीर खींच गया है।

कैसा है स्क्रीनप्ले और कलाकारों का अभिनय?

खो गये हम कहां का लेखन डायरेक्टर अर्जुन वरैन सिंह के साथ जोया अख्तर और रीमा कागती ने किया है। फिल्म सवाल उठाती है कि अगर सोशल मीडिया ना हो तो जिंदगी कैसी होगी? जोया और रीमा के लेखन की ये खूबी रही है कि सब्जेक्ट युवाओं और मौजूदा दौर में फलते-फूलते हैं। यारी, दोस्ती और निजी दिक्कतें स्क्रीनप्ले को ट्विस्ट्स और टर्न्स देते हैं।जिंदगी ना मिलेगी दोबारा, दिल धड़कने दो, गली ब्वॉय, द आर्चीज और अब खो गये हम कहां…इन सभी फिल्मों के किरदार और समस्याएं युवा पीढ़ी के हिसाब से रखी गयी हैं।

अनन्या की ये तीसरी फिल्म

निर्देशक अर्जुन वरैन सिंह ने लेखन को रील पर उतारने में अपने हुनर का परिचय दिया है। किरदारों की रोजमर्रा की जिंदगी को उन्होंने जिस तरह दिखाया है, उससे इस पीढ़ी के दर्शक इत्तेफाक रखेंगे। फिल्म में एक सीन आता है, जब ड्राइंग रूम में बैठे तीनों किरदार अपने-अपने मोबाइल और लैपटॉप में डूबे हैं। ये सीन मौजूदा हालात को प्रतिविम्बित करने के लिए काफी है।काली पीली और गहराइयां के बाद अनन्या की ये तीसरी फिल्म है, जो सीधे ओटीटी पर उतरी है। इसे संयोग कहा जाए या कहानियों का चयन कि गहराइयां के बाद इस फिल्म में अनन्या प्रभावित करती हैं। ड्रीम गर्ल 2 की परी के मुकाबले खो गये हम कहां की आहना उन्हें ज्यादा सूट करती है।

1- सिचुएशनशिप का मतलब होता है– हुकअप, एक साथ खाना-पीना और ‘नेटफ्लिक्स एंड चिल’. इसमें एक-दूसरे के साथ इमोशनल फीलिंग शेयर नहीं करते. इसमें मेरे डैड ने कहा- ‘बेटा ये सब तो तेरी मां के साथ हमने बहुत किया है जिसे हम ‘अरेंज्ड मैरिज’ कहते हैं’- ये लाइन अप्रत्यक्ष रूप से कपल के बीच पारंपरिक रिश्तों का स्याह सच दिखाता है.

2-मेरी बचपन की दोस्त अहाना मेरी फ्लैटमेट है, लेकिन हम किसी सिचुएचनशिप में नहीं हैं. हम एक-दूसरे को स्पेस देते हैं. मेरी गर्लफ्रेंड है और उसका बॉयफ्रैंड है- ये लाइन बदलते दौर में लड़के-लड़की के बीच रिश्तों पर एक तस्वीर पेश करती है और इस बात को नकारती है कि ‘लड़का और लड़की कभी दोस्त नहीं हो सकते’.

3-सोशल मडिया पर किसी की प्रोफाइल देखकर हम इतने प्रभावित हो जाते हैं कि उसको फॉलो करने लग जाते हैं और उसे देख-देखकर हम डिप्रेशन में जाते हैं और असुरक्षित महसूस करते हैं. लेकिन फिर भी हम उसे फॉलो करते रहते हैं’- ये लाइन बताती है कि सोशल मीडिया पर दिखने वाली हर चमकदार चीज असल में सिर्फ फोटो में ही चमकदार लगती है. इसलिए इससे परेशान होकर खुद को किसी और से कंपेयर करना बंद कर दें.

4- ‘एक एवरेज इंसान अपना फोन दिन में 224 बार चेक करता है. अगर आप कोई भी एक्टिविटी दिन में 224 बार कर रहे हैं न, तो वो एक्टिविटी नहीं नशा है. हम दूसरों की जिंदगी को देखने के एडिक्टेड हो जाते हैं और हमारी आंखों में चश्मा और दिमाग में ताला लग जाता है. ये जानने की जरूरत नहीं है कि कौन दिन में क्या खा रहा है, क्या पहन रहा है.- ये लाइन सोशल मीडिया एडिक्शन पर निशाना साधते हुए संदेश देती है कि कैसे सोशल मीडिया हमें नुकसान पहुंचा रहा है.

5-मुझे इन्फ्लुएसर्स समझ नहीं आते. ये कैसा जॉब है यार? इनके बच्चे क्या बोलेंगे स्कूल में? हमारे टाइम में हम अपने पापा की जॉब के बारे में बताते थे, लेकिन आज के जमाने के बच्चे क्या बताएंगे कि उनके पापा ‘इंस्टाग्राम पर नाच-नाच के साबुन बेचते हैं’?- इस लाइन के जरिए ये संदेश देने की कोशिश की गई है कि सोशल मीडिया पर आप जिनसे प्रभावित होते हैं. असल में वो चलते-फिरते ऐड हैं, जिनसे प्रभावित होने से पहले खुद से सवाल पूछना चाहिए.

एनर्जी और युवा सोच से प्रभावित

सिद्धांत चतुर्वेदी ने गली ब्वॉय में एमसी शेर और गहराइयां के जैन के बाद इमाद को भी सहजता से निभाया है। संघर्षरत स्टैंड अप कॉमेडियन के लिए जिस तरह की बॉडी लैंग्वेज चाहिए, सिद्धांत ने उसे निभाने में कामयाबी पाई है। द व्हाइट टाइगर के बाद आदर्श गौरव की ये दूसरी ओटीटी रिलीज है।नील के किरदार की आकांक्षाओं और आजमाइशों को आदर्श गौरव ने जस्टिफाई किया है। वो इस किरदार में सहज दिखते हैं। खो गये हम कहां… अपनी एनर्जी और युवा सोच से प्रभावित करती है।

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