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देश का अबतक का सबसे बड़ा रेस्क्यू ऑपरेशन,सिलक्यारा टनल में फंसे 41 मजदूर बहार निकालना


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नई दिल्ली – उत्तराखंड के उत्तरकाशी में सुरंग में फंसे सभी श्रमिकों को सही-सलामत बाहर निकाल लिया गया। पिछले 17 दिन से इसके लिए रेस्क्यू अभियान चलाया जा रहा था। अभियान की कामयाबी के बाद राष्ट्रीय आपदा प्रतिक्रिया बल (NDRF) ने केक काट कर जश्न मनाया। उत्तरकाशी सुरंग से सभी मजदूरों को सफलतापूर्वक निकालने पर एनडीआरएफ के डीआइजी मोहसिन शाहिदी ने कहा कि फंसे हुए 41 श्रमिकों को बचाना अपने आप में एक बड़ी चुनौती थी। उन्होंने बताया कि अंतिम चरण में यह एनडीआरएफ और एसडीआरएफ का एक संयुक्त ऑपरेशन था। इसमें कई एजेंसियां सम्मिलित थीं।

देश-दुनिया के विशेषज्ञों ने दिन-रात की मेहनत

देश-दुनिया के विशेषज्ञों ने दिन-रात एक कर इस अभियान को मकाम तक पहुंचाया। 13 नवंबर 1989 को पश्चिम बंगाल के महाबीर कोल्यारी रानीगंज कोयला खदान जलमग्न हो गई थी। इसमें 65 मजदूर फंस गए थे। इनको सुरक्षित बाहर निकालने के लिए खनन इंजीनियर जसवंत गिल के नेतृत्व में टीम बनाई गईं।उन्होंने सात फीट ऊंचे और 22 इंच व्यास वाले स्टील कैप्सूल को पानी से भरी खदान में भेजने के लिए नया बोरहॉल बनाने का आइडिया दिया। दो दिन के ऑपरेशन के बाद आखिरकार सभी मजदूरों को सुरक्षित बाहर निकाल लिया गया था। उस अभियान में गिल लोगों को बचाने के लिए खुद एक स्टील कैप्सूल के माध्यम से खदान के भीतर गए थे।

ऑस्ट्रेलियाई सुरंग विशेषज्ञ अर्नोल्ड डिक्स हुई प्रशंसा

ऑस्ट्रेलियाई सुरंग विशेषज्ञ अर्नोल्ड डिक्स (Arnold Dix) की प्रशंसा की जा रही है। भारत में ऑस्ट्रेलियाई उच्चायुक्त फिलिप ग्रीन और प्रधानमंत्री एंथोनी अल्बानीज ने भी डिक्स के समझदारी की सराहना की जिसके कारण सभी फंसे हुए श्रमिकों को सुरक्षित निकाला गया।फिलिप ग्रीन ने ‘X’ (पूर्व में ट्विटर) पर लिखा, ‘यह एक बहुत बड़ी उपलब्धि है। उत्तराखंड में सुरंग में फंसे सभी 41 श्रमिकों को सफलतापूर्वक निकालने के लिए अधिकारियों को धन्यवाद। ग्रीन ने ऑस्ट्रेलिया के प्रोफेसर अर्नोल्ड डिक्स की विशेष सराहना की, जिन्होंने मैदान पर महत्वपूर्ण तकनीकी सहायता प्रदान की।’

41 मजदूरों के खिलखिलाते चेहरे

उत्तरकाशी की टनल में फंसे मजदूरों के सामने सबसे बड़ी चुनौती धैर्य बनाए रखने की थी, 17 दिन तक वह लगातार इस परीक्षा में पास हुए. सुरंग से बाहर निकलते वक्त सभी 41 मजदूरों के खिलखिलाते चेहरे उस जीत के गवाह थे जो वे हर पल मौत से लड़कर जीते थे। सिर्फ मजदूर ही नहीं सलाम तो उन रक्षकों को भी करना चाहिए तो इन 17 दिनों तक बिना रुके, बिना थके फंसे मजदूरों को बचाने के लिए जुटे रहे। सामने मुश्किलों का पहाड़ था, पल-पल पर बाधाएं थीं, लेकिन न डिगे न हौसला छोड़ा और मिलकर मुश्किलों का पहाड़ चीर सभी 41 जिंदगियां बचा लीं। सुरंग में फंसे मजदूरों की जिंदगी और मौत के बीच 70 मीटर की दीवार थी, दरअसल सिलक्यारा टनल के 200 मीटर अंदर सुरंग धंसी थी, यह हिस्सा कच्चा था, 12 नवंबर को जब मजदूर फंसे तब सुरंग का 60 मीटर हिस्सा गिरा था। राहत टीम एक्टिव हुई और मलबा हटाने का काम शुरू किया तो 10 मीटर सुरंग और धंस गई. ऐसे राहत टीम और मजदूरों के बीच कुल दूरी 70 मीटर हो गई थी। राहत टीम पहले तो समझ ही नहीं पा रही थी कि क्या किया जाए, फिर पाइप से मजदूरों को निकालने की तैयारी हुई, लेकिन चुनौती यही थी कि आखिर मजदूरों तक पहुंचा कैसे जाए।

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