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खालिस्तानियों को पाल-पोस रहा है कनाडा,इंदिरा गांधी के परमाणु टेस्‍ट से सीधा है कनेक्‍शन


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नई दिल्लीः भारत और कनाडा के बीच रिश्‍ते तनावपूर्ण हो गए हैं। इसका उदाहरण कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो ने सोमवार को हाउस ऑफ कॉमन्स में दिया। उन्‍होंने संसद को बताया कि भारत सरकार के एजेंट 18 जून को खालिस्तानी आतंकी हरदीप सिंह निज्‍जर की हत्‍या में शामिल हो सकते हैं। खालिस्‍तानी पिछले 45 साल से कनाडा में पनप रहे हैं लेकिन इसके बाद भी यहां की सरकार हाथ पर हाथ धरे बैठे रहती है। वैसे जस्टिन ट्रूडो से किसी बात की उम्‍मीद रखना बेकार है क्‍योंकि वह इस मसले पर अपने पिता की विरासत को आगे बढ़ा रहे हैं। जस्टिन के पिता पियरे ट्रूडो भी देश के प्रधानमंत्री रहे हैं। उन्होंने उस खालिस्‍तानी आतंकी को भारत प्रत्‍यर्पित करने से इनकार कर दिया था जो एयर इंडिया पर सन् 1985 में हुए हमले का मास्‍टरमाइंड था।

कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो ने हाल ही में जी20 समिट के लिए भारत का दौरा किया था। लेकिन यह दौरा उनके लिए विवादों से भरा रहा। पीएम मोदी की तरफ से जी20 नेताओं को दिए गए डिनर में ट्रूडो नहीं गए। साथ ही ट्रूडो का भारत के प्रति वैसा रूख नहीं दिखा, जैसा कि अन्य देशों के द्वारा देखने को मिला। पीएम मोदी ने दो टूक करते हुए कनाडा में भारत के लिए नफरत फैला रहे खालिस्तानी समर्थकों पर लगाम कसने के लिए कहा, लेकिन जवाब में ट्रडो ने कहा कि उनका देश शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शन की स्वतंत्रता की हमेशा रक्षा करेगा।

कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो ने हाल ही में जी20 समिट के लिए भारत का दौरा किया था। लेकिन यह दौरा उनके लिए विवादों से भरा रहा। पीएम मोदी की तरफ से जी20 नेताओं को दिए गए डिनर में ट्रूडो नहीं गए। साथ ही ट्रूडो का भारत के प्रति वैसा रूख नहीं दिखा, जैसा कि अन्य देशों के द्वारा देखने को मिला। पीएम मोदी ने दो टूक करते हुए कनाडा में भारत के लिए नफरत फैला रहे खालिस्तानी समर्थकों पर लगाम कसने के लिए कहा, लेकिन जवाब में ट्रडो ने कहा कि उनका देश शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शन की स्वतंत्रता की हमेशा रक्षा करेगा।

हालांकि, ट्रूडो निशाने पर उस समय आ गए जब G20 समिट की समाप्ति के बाद उनको वापस कनाडा जाना था, लेकिन उनका विमान खराब हो गया। फिर विमान को ठीक करवाया गया और ट्रूडो 2 दिन दिल्ली रूकने के बाद कनाडा के लिए रवाना हुए। ट्रूडो को लगा कि भारत का दौरा करने के बाद कनाडा में उनका भव्य स्वागत होगा, लेकिन वहां के ना सिर्फ लोगों ने उनकी क्लास लगाई, बल्कि वहां के मीडिया ने भी ट्रूडो की जमकर फजीहत की। फजीहत होना लाजमी भी है क्योंकि ट्रूडो शायद यह भूल गए कि वो भारत जैसे बड़े देश के साथ रिश्ते खराब कर रहे हैं। कनाडा की आबादी जहां 4 करोड़ है तो भारत की आबादी 140 करोड़ है। भारत हर मामले में कनाडा के कई गुना आगे है। ऐसे में भारत को नजरअंदाज कर कनाडा रिश्ते खराब करने पर तुला हुआ है।

कनाडा में सिखों के बसने का सिलसिला 20वीं सदी के पहले दशक में शुरू हुआ। इतिहासकारों की मानें तो ब्रिटिश कोलंबिया से गुजरते हुए ब्रिटिश सेना के सैनिक वहां की उपजाऊ भूमि देखकर आकर्षित हो गए। 1970 के दशक तक, सिखों की मौजूदगी कनाडा में बहुत कम थी। लेकिन 1970 के दशक में यह बदल गया। भारत ने मई 1974 में राजस्थान में पोखरण परमाणु परीक्षण किया। इससे कनाडा की सरकार नाराज हो गई। कनाडा का मानना था कि उसने भारत को शांति के मकसद से परमाणु ऊर्जा के लिए रिएक्‍टर्स दिए हैं। भारत ने CANDU टाइप के रिएक्‍टर्स का प्रयोग किया था। उस समय पियरे ट्रूडो कनाडा के पीएम थे खफा हो गए और भारत के साथ कनाडा के रिश्‍ते खराब हो गए। जिस समय यह सब हो रहा था, उसी समय भारत में खालिस्‍तान आंदोलन को हवा मिल रही थी।

कई सिखों ने राजनीतिक उत्पीड़न का हवाला देते हुए कनाडा में शरणार्थी का दर्जा मांगा। एयर इंडिया बॉम्बिंग का मास्‍टरमाइंड खालिस्तानी आतंकवादी तलविंदर सिंह परमार भी उनमें से ही एक था। कई रिपोर्ट्स के मुताबिक सन् 1982 में जब भारत में इंदिरा गांधी की सरकार थी, तो कनाडा से परमार के प्रत्यर्पण की मांग की गई। परमार पर पुलिस अधिकारियों की हत्या का आरोप था। लेकिन पियरे ट्रूडो के नेतृत्व वाली सरकार ने अनुरोध को मानने से इनकार कर दिया। कनाडा के जर्नलिस्‍ट टेरी मिलेवस्की ने अपनी किताब ‘ब्लड फॉर ब्लड’ में इस बारे में विस्‍तार से लिखा है।

उन्होंने लिखा, ‘पिछले 40 सालों में खालिस्तानी आतंकवादियों के लिए एक स्प्रिंगबोर्ड के रूप में कनाडा की तुलना पाकिस्तान से नहीं की जा सकती है, लेकिन इसने उन्हें अनुकूल कानूनी और राजनीतिक माहौल का बड़ा लाभ प्रदान किया है। खालिस्तानी चुनौती के लिए कनाडा की नम्र प्रतिक्रिया सन् 1982 से ही भारत का निशाना बनी हुई है जब इंदिरा गांधी ने पीएम पियरे ट्रूडो से इसके बारे में शिकायत की थी। इससे बहुत कुछ हासिल नहीं हुआ है।’ कनाडा के राजनयिकों को अपने भारतीय समकक्षों को जो बहाना देना पड़ता था वह राजशाही से जुड़ा हुआ होता। वो बताते कि राष्ट्रमंडल देशों के बीच प्रत्यर्पण प्रोटोकॉल लागू नहीं होंगे क्योंकि भारत महारानी को सिर्फ राष्ट्रमंडल के प्रमुख के रूप में मान्यता देता है, देश के प्रमुख के तौर पर नहीं।

परमार आगे चलकर खालिस्तानी आतंकी संगठन बब्बर खालसा का मुखिया बना जिसने जून 1985 में कनिष्क नामक एयर इंडिया के विमान में ब्‍लास्‍ट करवाया था। हमले में कुल 329 लोग मारे गए जिनमें से 280 कनाडाई नागरिक थे। परमार ने धमकी दी थी कि भारतीयविमान आसमान से गिराए जाएंगे। सन् 1984 में परमार के साथी अजायब सिंह बागरी ने 50,000 हिंदुओं को मारने की प्रतिज्ञा की। आज भी पियरे ट्रूडो को कनाडा के सबसे भयानक आतंकी हमले का दोष दिया जाता है।

यही नहीं…कनाडा के सस्केचेवान प्रांत की सरकार के प्रीमियर (प्रमुख) स्कॉट मो ने ट्रूडो पर भारत के साथ संबंधों को नुकसान पहुंचाने का गंभीर आरोप लगाया है। उन्होंने साफ आरोप लगाया कि प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो भारत और कनाडा के बीच का व्यापार खराब कर रहे हैं। अब इन सब चीजों के बीच ट्रूडो ने तीन चीजों दांव पर लगा दी हैं। सबसे पहले उन्होंने अपनी निजी साख दांव पर लगा दी है। कनाडा की आर्थिक नीति भी भारत के साथ रिश्ते खराब करते हुए दांव पर लगा दी है। साथ ही घरेलू स्तर पर आर्थिक स्थिति दांव पर लगा दी है। अब ये सब चीजें हो रही हैं खालिस्तान के कारण…ट्रूडो का खालिस्तान के प्रति कड़ा रवैया ना दिखना कई सवाल खड़े करता है। मौजूदा समय भारत दुनिया की चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है।

एक तरफ जहां भारत से कई देश दोस्ती करने के लिए हाथ बढ़ाना पसंद कर रहे हैं तो वहीं ट्रूडो का नजरिया भारत के प्रति इसके उलट नजर आता है। अब सवाल उठता है कि क्या इसका कारण एक छोटे चरमपंथी गुट यानी कि खालिस्तान को सपोर्ट करना है। आखिर क्यों खालिस्तानियों को कनाडा पाल-पोस रहा है। यह सवाल कनाडा का मीडिया भी उठा रहा है, क्योंकि वो जानता है कि भारत से रिश्ते खराब होना उनके लिए सही नहीं है….फिलहाल कनाडा में दो मु्द्दे हैं। एक बड़ती महंगाई तो दूसरा भारत के साथ हो रहे खराब रिश्ते। कनाडा पहले से ही चीन के साथ अपने रिश्ते खराब कर चुका है। ऐसे में वहां के नागरिक अपने पीएम ट्रूडो की नीतियों के खिलाफ बोलने लगे हैं।

इसमें कोई शक नहीं कि जस्टिन ट्रूडो वोट बैंक को ध्यान में रखते हुए खालिस्तान का समर्थन करने वाले गुट का विरोध नहीं कर रहे हैं। कनाडा में भारतीय मूल के 24 लाख लोग हैं। इनमें से करीब 7 लाख सिख ही हैं। सिखों की ज्यादा संख्या ग्रेटर टोरंटो, वैंकूवर, एडमोंटन, ब्रिटिश कोलंबिया और कैलगरी में है। चुनाव के दौरान ये हमेशा बड़े वोट बैंक की तरह देखे जाते हैं। यहां तक कि वहां के मेनिफेस्टो में इस कम्युनिटी की दिक्कतों पर जमकर बात होती है।

कनाडा की सड़कों पर सरेआम भारत के खिलाफ खालिस्तानी समर्थकों का रोष देखने को मिलता है। लेकिन ट्रडो की सरकार कुछ भी नहीं कर पाती। इसका कारण यह है कि ट्रूडो की सरकार और सिख संगठनों दोनों को ही एक-दूसरे की जरूरत है। इसका एक उदाहरण यह है कि साल 2019 में चुनाव के दौरान जस्टिन ट्रूडो की लिबरल पार्टी मेजोरिटी से 13 सीट पीछे थी। तब सरकार को न्यू डेमोक्रेटिक पार्टी ने सपोर्ट दिया, जिसके लीडर जगमीत सिंह धालीवाल हैं। जगमीत खालिस्तानी समर्थक है, जिसका वीजा साल 2013 में भारत रिजेक्ट कर चुका है। सिखों की यही पार्टी ब्रिटिश कोलंबिया को रूल कर रही है। इससे साफ है कि ट्रूडो के पास एंटी-इंडिया आवाजों को नजरअंदाज करने के अलावा कोई विकल्प नहीं है।

कनाडा की सियासत में सिख समुदाय का दबदबा है। जब 2021 में वहां चुनाव हुए थे तो ट्रूडो की लिबरल पार्टी को सबसे ज्यादा सीटें हासिल हुई थी, लेकिन वह सदन में बहुमत से दूर थे। तब 17 भारतवंशियों ने जीत दर्ज की थी। कहीं न कहीं ट्रूडो को साफ नजर आता है कि सत्ता में बने रहना है तो यहां बसे सिख समुदाय के साथ नम्र रहना पड़ेगा। खालिस्तानी समर्थकों के खिलाफ अगर कनाडाई सरकार उतरती है तो वह खुद का ही नुकसान मानती है।

हर साल ऑपरेशन ब्लू स्टार के मौके पर कनाडा में सिख एक जगह जमा होते हैं। वह सफेद साड़ी में एक महिला के पोस्टर पर लाल रंग लगाते हैं, जिसपर लिखा होता है- दरबार साहिब पर हमले का बदला। ये पोस्टर कथित तौर पर भूतपूर्व पीएम इंदिरा गांधी का होता है, जिन्होंने मिलिट्री ऑपरेशन का आदेश दिया था ताकि खालिस्तानी लीडर भिंडरावाले का राज खत्म किया जा सके। अब सवाल यह है कि किसी एक देश में दूसरे देश के प्रति लोग कैसे इस तरह की नफरत फैला सकते हैं। कैसे एक देश के लोग दूसरे देश को तोड़ने की बात कह सकते हैं, लेकिन लेकिन कनाडा में हर साल ये आयोजन होता है और सरकार की नाक के नीचे होता है।

आप यह जानकर हैरान रह जाएंगे कि भारत और कनाडा के बीच फरवरी 1987 में प्रत्यर्पण संधि हो चुकी है। फैसला हुआ था कि दोनों देश एक-दूसरे के अपराधियों को अपने यहां शरण नहीं दे सकते, लेकिन ये ट्रीटी उतनी प्रभावी नहीं क्योंकि कई चरमपंथी कनाडा में खुलेआम घूम रहे हैं लेकिन कनाडाई सरकार उन्हें भारत नहीं भेज रही।

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