वट सावित्री के व्रत में सुहागिनें गलती से भी न करें ये काम
नई दिल्ली – अखंड सौभाग्य प्रदान करने वाला वट सावित्री का व्रत इस साल 19 मई, शुक्रवार को है। भारतीय परंपरा में इस व्रत का अगवा स्थान है। इस दिन सोमवती अमावस्या और शनि जयंती भी है। अपने पति की पति की लंबी आयु के लिए सुहागन स्त्रियाँ वट सावित्री व्रत रखती है।
इस व्रत में कुछ नियमों का पालन जरुरी है, नहीं तो एक गलती अखंड सौभाग्य के लिए अशुभ मानी जाती है। हिंदू धर्म में हर पूजा और उसकी कथा का विशेष महत्व होता है, इसलिए वट सावित्री व्रत में कथा का जरुर श्रवण करें। कथा को अधूरा न छोड़े. जब कथा चल रही हो तो अपने स्थान से उठना भी नहीं चाहिए, इससे पूजा व्यर्थ चली जाती है। व्रत के दिन देर तक न सोएं नहीं, साथ ही इस दिन एक ही समय सोना चाहिए। इस दिन भजन कीर्तन करने और भगवान के स्मरण में व्यतीत करें। सावित्री व्रत में सुहागिनें सोलह श्रृंगार कर वट वृक्ष की पूजा करती है। सौभाग्यवती होने और पुत्र प्राप्ति के लिए ये व्रत बहुत खास महत्व रखता है। इस दिन महिलाएं गलती से भी काले, नीले और सफेद रंग के वस्त्र और चूड़ियां न पहनें। काला रंग नकारात्मकता का प्रतीक होता है। सुहाग के लिए पूजा में काला रंग नहीं पहनना चाहिए।
वट सावित्री पूजा में वट वक्ष पर कच्चा सूत बांधा जाता है। शास्त्रों के अनुसार इस दिन ऐसे परिक्रमा करें कि अपना पैर दूसरों को न लगे। ऐसा होने पर परिक्रमा खंडित मानी जाती है और उसका फल नहीं मिलता। शादी के बाद पहली बार स्त्रियों को वट सावित्री व्रत ससुराल में नहीं मायके में करना चाहिए। सुहाग की सामग्री आदि भी मायके से ही इस्तेमाल में लेनी चाहिए। इस दिन कई लोग बरदग के पेड़ से जुड़े उपाय करते है लेकिन व्रती को इस दिन गलती से भी बरगद की टहनियां नहीं तोड़नी चाहिए, क्योंकि इसे मां सावित्री का प्रतीक माना जाता है।