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जाने गुड़ी पड़वा क्यों मनाया जाता है और इसका महत्व


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नई दिल्ली – शक्ति की साधना का महापर्व नवरात्रि और नव संवत्सर प्रारंभ होता है. चैत्र मास की इसी शुभ तिथि को गुड़ी पड़वा पर्व मनाया जाता है जो कि इस साल 22 मार्च 2023, बुधवार को पड़ने जा रहा है. हिंदू नववर्ष की शुरू होने की खुशी में मनाया जाने वाला यह पर्व मुख्य रूप से मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र में मनाया जाता है. आइए गुड़ी पड़वा पर्व की पूजा से जुड़ी धार्मिक मान्यता, पूजा विधि और उसके शुभ मुहूर्त के बारे में विस्तार से जानते हैं.

गुड़ी पड़वा मनाने से जुड़ी एक पौराणिक कथा काफी प्रचलित है और इसके अनुसार, त्रेता युग में दक्षिण भारत में राजा बालि का शासन हुआ करता था. जब भगवान राम माता सीता को रावण की कैद से मुक्त कराने के लिए लंका की ओर जा रहे थे. उस समय दक्षिण में उनकी मुलाकात बालि के भाई सुग्रीव से हुई. सुग्रीव ने भगवान राम को अपने भाई बालि के कुशासन और आतंक के बारे में बताया और उनकी मदद मांगी. जिसके बाद भगवान राम ने बालि का वध कर उसके आतंक से सुग्रीव और प्रजा को मुक्त कराया. मान्यता है कि जिस दिन भगवान राम ने बालि का वध किया था, उस दिन चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा थी. इसलिए हर साल इस दिन को दक्षिण में गुड़ी पड़वा के रूप में मनाया जाता है और विजय पताका फहराई जाती है.

गुड़ी पड़वा की पूजा हमेशा शुभ मुहूर्त में करनी चाहिए. पंचांग के अनुसार जिस चैत्र मास के शुक्लपक्ष की प्रतिपदा तिथि पर यह पावन पर्व मनाया जाता है, वह 21 मार्च 2023 को रात्रि 10:52 बजे से शुरु होकर 22 मार्च 2023 को रात्रि 08:20 बजे समाप्त होगी. पंचांग के अनुसार इस दिन गुड़ी पड़वा की पूजा प्रात:काल 06:29 से लेकर 07:39 बजे के बीच करना अत्यंत ही शुभ रहेगा. गुड़ी पड़वा की पूजा करने से पहले तेल का उबटन लगाकर स्नान-ध्यान करने का विधान है. इसके बाद गुड़ी पड़वा की पूजा का संकल्प करें और बांस के ऊपर चांदी, पीतल या तांबे का उल्टा कलश रखकर उसे नीम के पत्ते, आम की डंठल, फूल, और सुंदर साड़ी या कपड़े से सजाएं. इसके बाद इसे अपने घर की छत या फिर अपनी खिड़की या मुख्य द्वार पर लगाएं. गुड़ी पड़वा के दिन अपने घर के मुख्य द्वार को वंदनवार आदि से सजाना चाहिए.

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