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विज्ञान

मीनपंख से विकसित हुआ था इंसान का मध्य कान


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नई दिल्ली – शुरुआती रीढ़दार जानवरों में एक पूरी सांसों के लिए छिद्र वाली यानि श्वास रंध्र (spiracle) मीनपंख (Gills) जरूर मौजूद रही होगी. रीढ़धारियों (Vertebrates) में श्वासरंध्र उनके विकासक्रम में एक अनसुलझे रहस्य की तरह रही जिसकी पड़ताल वैज्ञानिक एक सदी के ज्यादा समय से कर रहे हैं. लेकिन अब चीन में मिले एक नए जीवाश्म अध्ययन ने खुलासा किया है कि मानव का मध्य कान Middle Ear of Man) का विकास मछलियों के मीनपंख से ही हुआ है.

इस अध्ययन के नतीजे फ्रंटियर्स इन इकोलॉजी एंड इवोल्यूशन में पिछले महीने ही प्रकाशित हुए हैं. शोध के प्रथम लेखक और प्रोफेसर गाई झुइकुन के मुताबिक इंस्टीट्यूट के शोधकर्ताओं ने पिछले 20 सालों में 43.8 करोड़ साल पुरना शुयू मछली का 3डी ब्रेनकेस जीवाश्म और 41.9 करोड़ साल पुरानी गेलास्पिड मछलीका जीवाश्म मिला जिसके पहले ब्रैंकिल चैंबर में गिल के तुतु पूरी तरह संरक्षित थे.

मानव का मध्य कान में तीन कंपन हड्डियां होती हैं. जो ध्वनि कंपनों को आंतरिक कान तक पहुंचती हैं जहां से तंत्रिकाएं मस्तिष्क तक ध्वनि संवेदनाएं पहुंचा कर हमें सुनने का अहसास देती हैं. अब चाइनीज एकेडमी ऑफ साइंसेस के इंस्टीट्यूट ऑफ वर्टिबरेट पेलिएन्टोलॉजी एंड पेलियोएंथ्रोपोलॉजी (IVPP) के वैज्ञानिकों और उनके साथियों ने इस रहस्य से संबंधित संकेत चीन में गेलेयास्पिड जीवाश्म में पाए हैं.

मस्तिष्ट के ढांचो का निर्माण किया जिसमें शुयू मछली के कपाल की शरीर रंचना की विस्तार से खुलासा हो सका. इस उंगली के सिरे के आकार की खोपड़ी में पांच मस्तिष्क भागों, संवेदी अंग और खोपड़ी की तंत्रिकाएं एवं खोपड़ी में खून की नसें शामिल थीं.

श्वासरंध्र (spiracle) कुछ मछलियों में हर आंख के पीछे एक छेद होता है जो मुंह में जाकर खुलता है. शार्क और सभी रे में यह श्वासरंध्र पानी को मुंह से मींनपंखों तक पहुंचाने के लिए जिम्मेदार होते हैं. श्वासरंध्र प्रायः जीव के शीर्ष पर लगा होता है जिससे जानवर तब भी सांस ले पाता है जब वह अवसादों में दबा होता है.

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