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विज्ञान

मंगल ग्रह पर पानी के साक्ष्य कटाव की उच्च दर मिला


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नई दिल्ली – मंगल ग्रह की जलवायु और इतिहास के बारे में गहन शोध जारी है। हाल के एक अध्ययन में वैज्ञानिकों ने दिखाया है कि क्रेटर और अन्य जगहों की सतह पर तलछट का अध्ययन करके मंगल के इतिहास और उसकी प्राचीन रहने की क्षमता का पता लगाया जा सकता है। शोध से पता चला है कि कैसे मंगल कई तीव्र और तीव्र क्षरण के दौर से गुजरा था, जिसके प्रमाण अभी भी तलछट के रूप में बने रहेंगे।

अब मंगल पर रहने योग्य रहने के और पुख्ता सबूतों की जरूरत है, जो वहां से लाए गए नमूनों से मिल सकते हैं। जियोलॉजी जर्नल में प्रकाशित यह अध्ययन उस अवधि का जिक्र करता है जब प्राचीन मंगल ग्रह की जलवायु में क्षरण बहुत अधिक था। इससे पता चलता है कि ये वो दौर थे जब लाल ग्रह की सतह पर पानी बहता था।

इस अध्ययन के प्रमुख लेखक और मोनाश यूनिवर्सिटी के स्कूल ऑफ अर्थ एटमॉस्फियर एंड एनवायरनमेंट के डॉ एंड्रयू गन का कहना है कि अगर हम जानना चाहते हैं कि मंगल पर जीवन था या नहीं, तो हमें इसकी तलछटी चट्टानों के रिकॉर्ड को समझना होगा।

प्रत्येक अध्ययन या तो कुछ नया जोड़ता है या यह किसी पुराने विश्वास को खारिज या समर्थन भी करता है। ऐसे तमाम शोधों का मकसद यह समझना है कि कैसे मंगल एक आधुनिक पृथ्वी जैसा ग्रह होने के बाद आज रहने योग्य ग्रह बन गया है। मंगल के एक नए भूवैज्ञानिक अध्ययन में नए सबूत मिले हैं जो बताते हैं कि मंगल के पूरे इतिहास में कटाव की उच्च दर कब देखी गई थी। भूगर्भीय मानचित्र, जलवायु सिमुलेशन और उपग्रह डेटा सहित डेटा की एक श्रृंखला के आधार पर, मंगल ग्रह के क्रेटर रेत जमा के आकार का अनुमान लगाया, जो स्रोत उन्हें उत्पन्न करता है। उन्होंने मंगल ग्रह पर अपरदन के समय और नियंत्रण को संश्लेषित करके और समझने की कोशिश करके डेटा का विश्लेषण किया।

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