Close
बिजनेस

फिर घटी भारतीय रुपए की वैल्यू, 9 महीने के निचले स्तर पर

नई दिल्ली – भारतीय रुपया लगातार कमजोर हो रहा है। दरअसलक कोविड-19 संक्रमण के बढ़ते मामलों के बीच देश के कुछ भागों में लॉकडउन लगाये जाने की आशंकाओं से निवेशकों की धारणा प्रभावित रही, जिससे सोमवार को विदेशीमुद्रा विनिमय बाजार में रुपए में लगातार छठे कारोबारी सत्र में गिरावट दर्ज की गई। रुपए में कमजोरी का असर इकोनॉमी से लेकर आम आदमी पर पड़ता है। इससे पेट्रोल और डीजल की कीमतें बढ़ती हैं जिसका सीधा असर आपके बजट पर होता है।

रुपए में लगातार छठे कारोबारी सत्र में गिरावट आई। इन छह दिन में रुपए में 193 पैसे की गिरावट दर्ज की गई। सोमवार को अमेरिकी डॉलर के मुकाबले रुपया 75.05 रुपए प्रति डालर पर बंद हुआ। यह पिछले वर्ष 16 जुलाई के बाद का सबसे निचले स्तर पर बंद हुआ। 16 जुलाई को यह 75.18 रुपए प्रति डॉलर पर बंद हुआ था।

रुपया कमजोर या मजबूत क्यों होता है?
रुपये की कीमत पूरी तरह इसकी मांग एवं आपूर्ति पर निर्भर करती है। इस पर आयात एवं निर्यात का भी असर पड़ता है। दरअसल हर देश के पास दूसरे देशों की मुद्रा का भंडार होता है, जिससे वे लेनदेन यानी सौदा (आयात-निर्यात) करते हैं। इसे विदेशी मुद्रा भंडार कहते हैं। समय-समय पर इसके आंकड़े रिजर्व बैंक की तरफ से जारी होते हैं। विदेशी मुद्रा भंडार के घटने और बढ़ने से ही उस देश की मुद्रा पर असर पड़ता है। अमेरिकी डॉलर को वैश्विक करेंसी का रुतबा हासिल है। इसका मतलब है कि निर्यात की जाने वाली ज्यादातर चीजों का मूल्य डॉलर में चुकाया जाता है। यही वजह है कि डॉलर के मुकाबले रुपये की कीमत से पता चलता है कि भारतीय मुद्रा मजबूत है या कमजोर।

रुपए में कमजोरी से इम्पोर्टेड गुड्स महंगे हो जाएंगे। डॉलर के मुकाबले रुपए में गिरावट की वजह से सामानों के आयात के लिए ज्यादा कीमत चुकानी पड़ेगी, जिससे इम्पोर्टेड गुड्स के दाम बढ़ जाएंगे।

इसे एक उदाहरण से समझें –
मान लें कि हम अमेरिका से कुछ कारोबार कर रहे हैं। अमेरिका के पास 68,000 रुपए हैं और हमारे पास 1000 डॉलर। अगर आज डॉलर का भाव 68 रुपये है तो दोनों के पास फिलहाल बराबर रकम है। अब अगर हमें अमेरिका से भारत में कोई ऐसी चीज मंगानी है, जिसका भाव हमारी करेंसी के हिसाब से 6,800 रुपये है तो हमें इसके लिए 100 डॉलर चुकाने होंगे।

अब हमारे विदेशी मुद्रा भंडार में सिर्फ 900 डॉलर बचे हैं। अमेरिका के पास 74,800 रुपये। इस हिसाब से अमेरिका के विदेशी मुद्रा भंडार में भारत के जो 68,000 रुपए थे, वो तो हैं ही, लेकिन भारत के विदेशी मुद्रा भंडार में पड़े 100 डॉलर भी उसके पास पहुंच गए। अगर भारत इतनी ही राशि यानी 100 डॉलर का सामान अमेरिका को दे देगा तो उसकी स्थिति ठीक हो जाएगी। यह स्थिति जब बड़े पैमाने पर होती है तो हमारे विदेशी मुद्रा भंडार में मौजूद करेंसी में कमजोरी आती है। इस समय अगर हम अंतर्राष्ट्रीय बाजार से डॉलर खरीदना चाहते हैं, तो हमें उसके लिए अधिक रुपये खर्च करने पड़ते हैं।

Back to top button