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बॉम्बे हाई कोर्ट : खत्म हो रही संयुक्त परिवार की व्यवस्था,माता-पिता के रहते संपत्ति पर बच्चे नहीं जता सकते हक’


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नई दिल्ली – संयुक्त परिवार प्रणाली को लेकर बॉम्बे हाईकोर्ट ने अपनी टिप्पणी में कहा, संयुक्त परिवार प्रणाली खत्म होने के कारण समाज में बुजुर्गों की देखभाल नहीं हो पा रही है। अदालत ने मंगलवार को एक व्यक्ति को अपनी मां के घर को 15 दिन में खाली करने का आदेश दिया, जिस पर उसने और उसकी पत्नी ने अवैध रूप से कब्जा कर रखा था।

माता-पिता के रहते संपत्ति पर बच्चे नहीं जता सकते हक’

दरअसल सीनियर सीटिजन मेनटिनेंस ट्रिब्यूनल ने सितंबर, 2021 में बेटे को मां का मुलुंड घर खाली करने का निर्देश दिया था। ट्रिब्यूनल के आदेश के खिलाफ बेटे ने हाई कोर्ट में याचिका दायर की थी। बेटे ने दावा किया था कि मकान उसके माता-पिता का है, इसलिए घर पर उसका कानूनी हक है। इस पर कोर्ट ने कहा कि माता-पिता के जीवनकाल के दौरान बच्चे उनकी संपत्ति पर कोई कानूनी अधिकार नहीं जता सकते हैं। जस्टिस गिरीश कुलकर्णी और जस्टिस फिरोदोश पुनिवाला की बेंच ने सुनवाई के बाद कहा कि संयुक्त परिवार की व्यवस्था विलुप्त होने की वजह से बुजुर्गों की परेशानी बढ़ रही है। बुजुर्ग खासतौर से विधवा महिला को एकाकी जीवन जीने को मजबूर होना पड़ता है। अक्सर उनको भावनात्मक उपेक्षा का सामना करना पड़ता है। अपने ही बच्चे द्वारा अस्वीकार किया जाना उनके लिए आघात का कारण बनता है।

बड़ी संख्या में बुजुर्गों की देखभाल उनके परिवार द्वारा नहीं की जा रही

पीठ ने कहा, “संयुक्त परिवार प्रणाली के खत्म होने के कारण, बड़ी संख्या में बुजुर्गों की देखभाल उनके परिवार द्वारा नहीं की जा रही है। इसके परिणामस्वरूप, कई बुजुर्ग व्यक्ति, विशेष रूप से विधवा महिलाएं अब अपने जीवन के अंतिम वर्ष अकेले बिताने को मजबूर हैं और भावनात्मक उपेक्षा का शिकार हो रहे हैं तथा भौतिक व वित्तीय सहायता की कमी से जूझ रहे हैं।”यह आदेश उपमंडल अधिकारी और वरिष्ठ नागरिक रखरखाव न्यायाधिकरण के अध्यक्ष के सितंबर 2021 के आदेश के खिलाफ दिनेश चंदनशिवे द्वारा दायर याचिका पर पारित किया गया था, जिसमें उन्हें उपनगरीय मुलुंड में अपनी बुजुर्ग मां लक्ष्मी चंदनशिवे के आवास को खाली करने का निर्देश दिया गया था।

‘मां का कानूनी कार्यवाही का सहारा लेना दुर्भाग्यपूर्ण’

मामले से जुड़ी बुजुर्ग महिला के मुताबिक, 2015 में पति के निधन के बाद उसके बेटे और उससे मिलने के लिए आए थे। फिर वे घर से वापस जाने के बजाय मां को प्रताड़ित करने लगे। परेशान मां को घर खाली करना पड़ा और दूसरे बेटे के यहां सहारा लेना पड़ा। इस स्थिति पर बेंच ने कहा कि यह बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है कि जीवन के अंतिम वर्षों में बेटे-बहू के खिलाफ कानूनी कार्यवाही का सहारा लेना पड़ रहा है, जबकि जीवन के इस पड़ाव पर मां को बेटे और उसके परिवार के स्नेह और प्रेम की जरूरत थी।

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