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पोस्टपर्टम डिप्रेशन क्या है?अधिकतर महिलाओं को होती है यह समस्या-जानिए


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नई दिल्लीः मातृत्व को संसार का सबसे बड़ा सुख माना जाता है। यह नई जिम्मेदारियों का समय भी होता है, जिसके साथ कई तरह की शारिरिक और मानसिक स्वास्थ्य की स्थिति में बदलाव भी आ जाता है। बच्चे के जन्म के उत्साह और खुशी से लेकर भय और चिंता तक, प्रसव काल कई तरह की भावनात्मक चुनौतियों वाला समय माना जाता है। इसी वजह से अक्सर महिलाओं में पोस्टपार्टम डिप्रेशन की समस्या देखने को मिलती है।

गर्भावस्था से लेकर प्रसव तक महिला को कई तरह की चुनौतियों का सामना करना पड़ता है

मां बनना किसी भी महिला के लिए एक सुखद अनुभव होता है. डिलीवरी के बाद महिला के शरीर में कई तरह के परिवर्तन होते हैं. गर्भावस्था से लेकर प्रसव तक महिला को कई तरह की चुनौतियों का सामना करना पड़ता है और इस दौरान उसमें शारीरिक, मानसिक, भावनात्मक और व्यावहारिक तौर पर बदलाव देखने को मिलते हैं. प्रसव के बाद महिलाओं में होने वाली समस्याओं में अवसाद भी एक बड़ी समस्या है. प्रसव के बाद महिलाओं में होने वाले अवसाद को पोस्टपार्टम अवसाद कहा जाता है और इसके लक्षण प्रसव के करीब 4 सप्ताह बाद दिखने लगते हैं.

अधिकतर महिलाओं को होती है यह समस्या

जिस नन्ही सी जान का माँ को नौ महीने बेसब्री से इंतज़ार था, आखिर वो इस दुनिया में आ ही गया। उस प्यारे से, नन्हे से बच्चे के आने से तो माँ के मन में केवल ख़ुशी की तरंगे लहरनी चाहिए! तो फिर नई माँ को हो रही यह गंभीर उदासी क्या हैं?इसे पोस्टपर्टम डिप्रेशन कहा जाता है। बच्चे के जन्म के बाद आपके जीवन में एक आधारभूत परिवर्तन आता है और आपको कई प्रकार के नए अनुभव होते हैं। कई महिलाओं के लिए यह चिंता और अवसाद का कारण भी बन जाता है। नई जिम्मेदारियों के कारण कई मानसिक और शारीरिक उतार-चढ़ाव आते हैं, जिससे डिप्रेशन या गंभीर उदासी की सम्भावना पैदा हो जाती है। आधुनिक दौर में यह समस्या काफ़ी तेजी से बढ़ रही है।

बेबी ब्लू के रूप में भी जाना जाता है

इस अनुभव को बेबी ब्लू के रूप में भी जाना जाता है, जिसमें मिजाज में बदलाव, चिंता और सोने में कठिनाई, नींद की कमी और चिड़चिड़ापन जैसी कई तरह की समस्याएं हो सकती हैं। आमतौर पर प्रसव के बाद पहले दो से तीन दिनों के भीतर ही इस तरह के अनुभव होने शुरू हो सकते हैं, वहीं कुछ महिलाओं में ऐसी दिक्कतें लंबे समय तक भी बनी रह सकती हैं, जिसपर गंभीरता से ध्यान देने की आवश्यकता होती है। प्रसवोत्तर अवसाद या पोस्टपार्टम डिप्रेशन, कोई कमजोरी नहीं है, बल्कि महिलाओं में यह काफी सामान्य है। इस दौरान उनके विशेष ख्याल रखने की आवश्यकता होती है। आइए महिलाओं के जीवन से जुड़ी पोस्टपार्टम डिप्रेशन की इस समस्या को विस्तार से समझते हैं।

पोस्टपार्टम डिप्रेशन क्यों होता है?

स्वास्थ्य विशेषज्ञों के मुताबिक पोस्टपार्टम डिप्रेशन का कोई एक कारण नहीं है, यह कई तरह के शारीरिक और भावनात्मक समस्याओं के संयोजन के कारण होने वाली समस्या है। बच्चे के जन्म के बाद आपके शरीर में हार्मोन (एस्ट्रोजन और प्रोजेस्टेरोन) के स्तर में बदलाव को इसका प्रमुख कारण माना जाता है। इस स्थिति में थायरॉयड ग्रंथि द्वारा उत्पादित हार्मोन्स का भी स्तर तेजी से गिरने लगता है जिसके कारण थकावट, सुस्ती और उदासी महसूस हो सकती है। इसके अलावा नवजात शिशु की देखभाल को लेकर बढ़ी आपकी चिंता को भी पोस्टपार्टम डिप्रेशन का कारण माना जाता है।

पोस्टपार्टम डिप्रेशन में क्या समस्याएं होती हैं?

पोस्टपार्टम डिप्रेशन के लक्षण एक महिला से दूसरी में अलग हो सकते हैं, यह मुख्यरूप से स्थिति के कारकों पर निर्भर करता है। सामान्यतौर पर अवसाद में इस तरह की समस्याएं अधिक देखने को मिलती हैं।बच्चे के साथ भावनात्मक संबंध बनाने में कठिनाई महसूस होना। भूख न लगना या सामान्य से अधिक खाना। अनिद्रा या बहुत अधिक सोना। अत्यधिक थकान या ऊर्जा में कमी। उन गतिविधियों में कम रुचि और आनंद लेना, जो आप पहले पसंद किया करते थे। चिड़चिड़ापन और गुस्सा बढ़ना। स्पष्ट रूप से सोचने, ध्यान केंद्रित करने या निर्णय लेने की क्षमता में कमी महसूस होना। बेचैनी, गंभीर चिंता और पैनिक अटैक।

  1. भावनात्मक अस्थिरता
    गर्भावस्था के दौरान और उसके बाद की स्वास्थ्य समस्याओं के कारण बीमारी, सामाजिक अलगाव, या अन्य स्वास्थ्य समस्याओं से तनाव संभव है, जिसके कारण भावनात्मक अस्थिरता आ सकती है। इसके कारण पोस्टपर्टम डिप्रेशन पैदा हो सकता है।
  2. हार्मोनल परिवर्तन
    गर्भावस्था के दौरान या प्रसव के बाद हार्मोनल परिवर्तन अनुभव किया जाता है। गर्भावस्था के समय, प्रोजेस्टेरोन और एस्ट्रोजेन हार्मोन के स्तर सामान्य से अधिक होते हैं। डिलीवरी के बाद यह स्तर अचानक सामान्य हो जाता है। इस अचानक हुए परिवर्तन से डिप्रेशन हो सकता है।
  3. स्वयं की उपेक्षा
    अपर्याप्त आहार, नींद में कमी, नशीली दवाओं के दुरुपयोग और थायरॉइड हार्मोन के कम स्तर जैसे शारीरिक कारक भी पोस्टपर्टम डिप्रेशन का कारण बन सकते हैं।
  4. आनुवांशिक बीमारी
    परिवार में मानसिक स्वास्थ्य बीमारी का इतिहास होने से भी पोस्टपर्टम डिप्रेशन हो सकता है।अप्रत्याशित पोस्टपर्टम डिप्रेशन कुछ महीनों या उससे भी अधिक समय तक चल सकता है और यदि यह लम्बे समय तक चलता है तो कई अन्य गंभीर समस्याओं में परिवर्तित हो सकता है।पोस्टपर्टम डिप्रेशन मानसिक स्वास्थ्य पर प्रभाव डालता है। साथ ही इसका प्रभाव शारीरिक स्वास्थ्य पर भी नजर आता है। डिप्रेशन के रोगी में मोटापा, दिल का दौरा और लम्बी बीमारी का खतरा बढ़ सकता है। अगर आप सचेत रहें और डिप्रेशन के लक्षणों को पहचानें और समय पर इसका डॉक्टर से इलाज कराएं तो इस समस्या से निजात पाई जा सकती है। एक सकारात्मक मानसिकता ऐसी समस्याओं से लड़ने में हमेशा सहायक होती है।

पोस्टपार्टम डिप्रेशन को कैसे ठीक किया जाता है?

यदि प्रसव के बाद आपको भी इस तरह की समस्याओं का अनुभव होता है तो इस बारे में किसी चिकित्सक से सलाह जरूर ले लेनी चाहिए। यदि यह समस्याएं थायरॉयड या किसी अंतर्निहित बीमारी के कारण हो रही है तो इसमें इलाज की आवश्यकता होती है। पोस्टपार्टम डिप्रेशन के सामान्य लक्षणों के लिए मनोचिकित्सा (टॉक थेरेपी या मानसिक स्वास्थ्य परामर्श/काउंसिलिंग) और दवा या दोनों की जरूरत हो सकती है। इस स्थिति में उपचार न लेने से समस्याओं के बढ़ने का जोखिम होता है।

पोस्टपार्टम डिप्रेशन में इन बातों का रखें ध्यान

पोस्टपार्टम डिप्रेशन के लक्षणों को ठीक करने के लिए उपचार के साथ-साथ आपको अपनी जीवनशैली में भी बदलाव करने की आवश्यकता होती है। इसके लिए दिनचर्या में शारीरिक गतिविधि को शामिल करें। इसके साथ पर्याप्त आराम करने की भी कोशिश करें। स्वस्थ भोजन करें और शराब-धूम्रपान जैसे नशे से बचें। प्रसव के बाद महसूस होने वाली भावनात्मक समस्याओं के बारे में परिवार और दोस्तों से बात करें। सकारात्मक सोच रखें इससे परेशानी से जल्द निकलने में मदद मिलती है।

प्रसवोत्तर अवसाद उपचार

अवसाद एक ऐसी बीमारी जिसका उपचार इस बात पर निर्भर करता है कि अवसाद के लक्षण और उसके प्रकार कितने गंभीर हैं. इसके उचार में मनोचिकित्सक की मदद ली जा सकती है. अवसाद रोधी दवाओं का प्रयोग या फिर भावनात्मक रूप से मजबूत बनाने के लिए समूह का निर्माण किया जाता है. अवसाद के गंभीर मामलों के लिए, ब्रेक्सानोलोन (ज़ुल्रेसो) नामक एक नई दवा दी जा सकती है.यदि आप स्तनपान करा रही हैं, तो यह न सोचें कि आप अवसाद, चिंता या मनोविकृति की दवा नहीं ले सकतीं. इस संबंध में आप अपने एक्सपर्ट से बात करें. डॉक्टर की देखरेख में कई महिलाएं स्तनपान कराते समय दवा लेती हैं. यह आपके और आपके डॉक्टर के बीच किया जाने वाला निर्णय है.

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