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न्यूनतम वेतन की जगह होगा लिविंग वेज सिस्टम -जाने क्या है फायदा


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नई दिल्ली – केंद्र सरकार देश में न्यूनतम वेतन यानी मिनिमम वेज (Minimum Wage) की व्यवस्था खत्म करने की तैयारी में है.इसकी जगह अगले साल से देश में जीवनयापन वेतन यानी लिविंग वेज (Living Wage) की व्यवस्था लागू करने का प्लान है. सूत्रों के मुताबिक सरकार ने इस व्यवस्था की रूपरेखा बनाने के लिए अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) से तकनीकी सहायता मांगी है.लिविंग वेज वह न्यूनतम आय होती है जिससे कोई मजदूर अपनी बुनियादी जरूरतों को पूरा कर सकता है.इसमें आवास, भोजन, स्वास्थ्य देखभाल, शिक्षा और कपड़ें शामिल हैं.आईएलओ ने इसी महीने की शुरुआत में इसे मंजूरी दी थी.सरकार का दावा है कि यह बुनियादी न्यूनतम वेतन से अधिक होगा.एक वरिष्ठ सरकारी अधिकारी ने ईटी को बताया कि हम एक साल में न्यूनतम वेतन से आगे जा सकते हैं.

हाल ही में इंटरनेशनल लेबर ऑर्गनाईजेशन (ILO) ने भी लिविंग वेज सिस्टम की वकालत की थी. आईएलओ ने इस संबंध में जरूरी कदम उठाने के निर्देश दिए थे. आईएलओ चाहती है कि लिविंग वेज के जरिए इस सिस्टम को और स्पष्ट किया जाए. अब इकोनॉमिक टाइम्स ने एक वरिष्ठ भारतीय अधिकारी के हवाले से दी रिपोर्ट में कहा है कि भारत मिनिमम वेज सिस्टम (Minimum Wage System) को लिविंग वेज सिस्टम (Living Wage System) में बदलने की प्रक्रिया 2025 में करने वाला है. भारत में करीब 50 करोड़ मजदूर हैं. इनमें से 90 फीसदी असंगठित क्षेत्र में काम करते हैं. इनमें से अधिकतर को मिनिमम वेज नहीं मिल पाते.

आईएलओ के गवर्निंग बॉडी की 14 मार्च को जिनेवा में संपन्न हुई 350वीं बैठक में न्यूनतम वेतन से जुड़े सुधारों को मंजूरी दी गई। भारत में 50 करोड़ से वर्कर हैं और उनमें से 90% असंगठित क्षेत्र में हैं. उन्हें रोजाना कम से कम 176 रुपये या उससे अधिक मजदूरी मिलती है.यह इस बात पर निर्भर करती है कि आप किस राज्य में काम कर रहे हैं.हालांकि राष्ट्रीय स्तर पर न्यूनतम वेतन में 2017 से कोई संशोधन नहीं किया गया है.यह राज्यों के लिए बाध्यकारी नहीं है और इसलिए कुछ राज्यों में इससे भी कम मजदूरी मिल रही है.साल 2019 में पारित वेतन संहिता को अभी लागू किया जाना बाकी है.इसमें एक वेज फ्लोर का प्रस्ताव है जो सभी राज्यों पर बाध्यकारी होगा.

भारत में फिलहाल मिनिमम वेज सिस्टम लागू है. इसके तहत प्रति घंटे की वेतन की गणना की जाती है. भारत में विभिन्न राज्यों में यह राशि प्रति घंटा के हिसाब से अलग-अलग तय की गई है. किसी भी कर्मचारी को इससे कम पैसा नहीं दिया जा सकता. महाराष्ट्र में यह राशि 62.87 रुपये और बिहार में 49.37 रुपये प्रति घंटा है. अमेरिका में यही रकम 7.25 डॉलर (605.26 रुपये) है. भारत में असंगठित सेक्टर में काम करने वालों को मिनिमम वेज भी बहुत मुश्किल से मिल पाते हैं. सरकार भी इन सेक्टर में बहुत कार्रवाई नहीं कर पाती है.

यदि सामान्य शब्दों में लिविंग वेज सिस्टम को समझा जाए तो इसमें रोटी, कपड़ा और मकान से एक कदम आगे जाकर सोचा जाता है. लिविंग वेज में वर्कर के सामाजिक उत्थान के लिए आवश्यक कई जरूरी चीजों के बारे में भी ध्यान दिया जाता है. इस सिस्टम में ध्यान दिया जाता है कि वर्कर और उसके परिवार को सामाजिक सुरक्षा के साधन भी मिलें. लिविंग वेज सिस्टम में लेबर को मूलभूत जरूरतों से ऊपर जाकर घर, भोजन, स्वास्थ्य देखभाल, शिक्षा और कपड़े जैसी कई जरूरतें शामिल होती हैं.

भारत आईएलओ का संस्थापक सदस्य है और 1922 से इसके गवर्निंग बॉडी का स्थायी सदस्य है.अधिकारियों ने कहा कि सरकार 2030 तक सस्टेनेबल डेवलपमेंट गोल्स (SDG) को हासिल करने की दिशा में काम कर रही है.एक धारणा यह है कि न्यूनतम वेतन को जीवनयापन वेतन से बदलने से लाखों लोगों को गरीबी से बाहर निकालने के भारत के प्रयासों को गति मिल सकती है.अधिकारी ने कहा, ‘हमने लिविंग वेज के कार्यान्वयन से होने वाले सकारात्मक आर्थिक परिणामों के लिए क्षमता निर्माण, डेटा के व्यवस्थित संग्रह और साक्ष्य के लिए आईएलओ से मदद मांगी है.

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