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छत्रपति शिवाजी महाराज जयंती : शिवाजी ने रखी थी मराठा साम्राज्य की नींव,जानें महाराज की शौर्य गाथाएं

नई दिल्लीः छत्रपति शिवाजी महाराज की जयंती हर साल 19 फरवरी को पूरे देश में मनाई जाती है. जो लोग छत्रपति शिवाजी महाराज के आदर्श को मानते हैं और वे इस दिन को काफी खास तरीके से मनाते हैं. उन्होंने सिर्फ 15 वर्ष की उम्र में जान की परवाह किए बिना मुगलों पर आक्रमण किया था. तो चलिए जानते हैं इस दिन का इतिहास.

छत्रपति शिवाजी महाराज का जन्म

हर साल 19 फरवरी को छत्रपति शिवाजी महाराज की जयंती मनाई जाती है. इनका जन्म 19 फरवरी 1630 को शिवनेरी दुर्ग में मराठा परिवार में हुआ था. शिवाजी महाराज का नाम शिवाजी भोंसले था. इनके पिता का नाम शाहजी भोंसले और माता का नाम जीजाबाई था. शिवाजी के पिताजी अहमदनगर सलतनत में सेनापति थे. वहीं माता की रुचि धार्मिक ग्रंथों में थी, जिसका प्रभाव शिवाजी के जीवन पर भी पड़ा. जिस दौर में महाराज शिवाजी का जन्म हुआ था. उस समय देश में मुगलों का आक्रमण चरम पर था. महाराज शिवाजी ने ही मुगलों के खिलाफ युद्ध का बिगुल बजाया.

1674 में मराठा साम्राज्य की स्थापना की

भारतीय इतिहास में कई ऐसे पराक्रमी राजा हुए जिन्होंने मातृभूमि की रक्षा के लिए जान की बाजी तक लगा दी लेकिन कभी दुश्मनों के आगे घुटने नहीं टेके। जब भी ऐसे राजाओं की बात होती है तो हमारी जुबां पर पहला नाम छत्रपति शिवाजी महाराज का ही आता है। उन्होंने मुगलों के विरुद्ध देशवासियों के मनोबल को मजबूत किया और ढलती हिन्दू तथा मराठा संस्कृति को नई संजीवनी दी। उन्होंने कौशल और योग्यता के बल पर मराठों को संगठित कर कई वर्ष औरंगजेब के मुगल साम्राज्य से संघर्ष किया। 1674 में उन्होंने मराठा साम्राज्य की स्थापना की, रायगढ़ में उनका राज्याभिषेक हुआ और वह छत्रपति बने।

माता के मार्गदर्शन में बीता शिवाजी का बचपन

शिवाजी का जन्म 19 फरवरी, 1630 को शिवनेरी दुर्ग में एक मराठा परिवार में हुआ था. उनका नाम शिवाजी भोंसले था. उनके पिता जी शहाजीराजे भोंसले एक शक्तिशाली सामंत राजा कुल में जन्मे थे. उनके पिता अहमदनगर सलतनत में सेनापति थे. उनकी माता जिजाबाई जाधवराव कुल में उत्पन्न असाधारण प्रतिभाशाली महिला थी. शिवाजी महाराज के चरित्र पर माता-पिता का बहुत प्रभाव पड़ा. उनका बचपन उनकी माता के मार्गदर्शन में बीता. उनकी माता की रुचि धार्मिक ग्रंथों में थी. उन्होंने राजनीति और युद्ध की शिक्षा ली थी.

शिवाजी के जीवन पर माता-पिता का बहुत प्रभाव पड़ा

शिवाजी के जीवन पर माता-पिता का बहुत प्रभाव पड़ा। माता जीजाबाई एक साहसी, राष्ट्रप्रेमी और धार्मिक प्रवृत्ति की महिला थीं। उन्होंने अपने वीर पुत्र में बचपन से ही राष्ट्रप्रेम और नैतिकता की भावना कूट-कूट कर भरी जिसकी वजह से शिवाजी अपने जीवन के उद्देश्यों को हासिल करने में सफल होते चले गए और कई दिग्गज मुगल निजामों को पराजित कर मराठा साम्राज्य की नींव रखी। पिता शाहजी राजे भोसले ने पत्नी जीजाबाई और पुत्र शिवाजी महाराज की सुरक्षा और देखरेख की जिम्मेदारी दादोजी कोंडदेव के मजबूत कंधों पर छोड़ी थी। इनसे ही शिवाजी महाराज ने राजनीति एवं युद्ध कला की शिक्षा ली थी।

मुगलों के खिलाफ बजाया युद्ध का बिगुल

शिवाजी महाराज बचपन से ही उस युग के वातावरण और घटनाओं को भली प्रकार समझने लगे थे. उनके हृदय में स्वाधीनता की लौ प्रज्वलित हो गयी थी. उन्होंने कुछ स्वामिभक्त साथियों का संगठन किया. उस समय देश में मुगलों का आक्रमण चरम पर था. महाराज शिवाजी ने ही मुगलों के खिलाफ युद्ध का बिगुल बजाया. उन्होंने सिर्फ 15 वर्ष की उम्र में जान की परवाह किए बिना मुगलों पर आक्रमण किया था. इस आक्रमण को गोरिल्ला युद्ध की नीति कहा गया.

भारत में मराठा साम्राज्य की नींव रखी

भारत के एक महान राजा एवं रणनीतिकार थे जिन्होंने 1674 ई. में पश्चिम भारत में मराठा साम्राज्य की नींव रखी. इसके लिए उन्होंने मुगल साम्राज्य के शासक औरंगजेब से संघर्ष किया. सन् 1674 में रायगढ़ में उनका राज्याभिषेक हुआ और वह छत्रपति बनें. लेकिन इसके कुछ साल बाद ही एक गंभीर बीमारी के कारण 3 अप्रैल 1680 को उनकी मृत्यु हो गई. शिवाजी के बाद इनके पुत्र संभाजी ने राज्य का कार्यभार संभाला.

शिवाजी महाराज का वैवाहिक जीवन

शिवाजी का विवाह सन् 14 मई 1640 में सइबाई निंबाळकर (सई भोसले) के साथ लाल महल, पुणे में हुआ था. सई भोसले शिवाजी की पहली और प्रमुख पत्नी थीं. वह अपने पति के उत्तराधिकारी संभाजी की मां थीं. शिवाजी ने कुल 8 विवाह किए थे. वैवाहिक राजनीति के जरिए उन्होंने सभी मराठा सरदारों को एक छत्र के नीचे लाने में सफलता प्राप्त की.

बचपन में किले जीतने का खेल खेला करते थे

बचपन में ही वह अपने आयु के बालकों को इकट्ठा कर उनके नेता बन कर युद्ध करने और किले जीतने का खेल खेला करते थे। इसके बाद वह वास्तव में किलों को जीतने लगे जिससे उनका प्रभाव धीरे-धीरे पूरे देश में पड़ने लगा और उनकी ख्याति बढ़ती चली गई। कम सैनिकों के बावजूद छापामार युद्ध में उनका कोई सानी नहीं था।

3 अप्रैल,1680 को निधन

शिवाजी ने मुगल जनरल अफजल खां को चतुराई से मार डाला। वहीं शाइस्ता खान किसी तरह जान बचाकर भाग सका लेकिन शिवाजी महाराज के साथ हुई लड़ाई में उसको अपनी 4 उंगलियां खोनी पड़ीं। मुगल शासक औरंगेजेब से समझौते के बाद शिवाजी महाराज 9 मई, 1666 को अपने ज्येष्ठ पुत्र संभाजी और कुछ सैनिकों के साथ मुगल दरबार में पधारे। औरंगजेब ने शिवाजी महाराज और उनके बेटे को बंदी बना लिया लेकिन शिवाजी महाराज चतुराई से 13 अगस्त, 1666 को अपने बेटे के साथ फलों की टोकरी में छिपकर आगरा के किले से भाग निकले और 22 सितंबर, 1666 को रायगढ़ पहुंच गए।अपने जीवन के आखिरी दिनों में वह अपने राज्य को लेकर काफी चिंतित रहने लगे थे, जिसकी वजह से उनका स्वास्थ्य बिगड़ता चला गया और लगातार 3 सप्ताह तक तेज बुखार में रहे, जिसके बाद 3 अप्रैल,1680 को उनका निधन हो गया।

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